102 Not Out : जिंदगी को खुलकर जीने का संदेश देती फिल्म की समीक्षा और विश्लेषण

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उमेश शुक्ला की फिल्म "102 नॉट आउट" एक पिता-पुत्र की कहानी है, जो उम्र और जिंदगी के नजरिए के मुद्दों को लेकर टकराव करते हैं। 102 साल के दत्तात्रेय वखारिया (अमिताभ बच्चन) एक जिंदादिल और खुशमिजाज व्यक्ति हैं, जो अभी भी दुनिया को नई चीजों के बारे में जानने और अनुभव करने के लिए उत्सुक हैं। दूसरी ओर, उनके 75 साल के बेटे बाबूलाल (ऋषि कपूर) बुढ़ापे से डरते हैं और अपने जीवन से खुश नहीं हैं।


फिल्म की शुरुआत में, दत्तात्रेय अपने बेटे को वृद्धाश्रम में भेजने की धमकी देते हैं, अगर वह अपनी नकारात्मक सोच को बदलने से इनकार कर देता है। बाबूलाल को इस बात से सदमा पहुंचता है और वह अपने पिता के साथ संबंधों को सुधारने के लिए कोशिश करने का फैसला करता है। दोनों एक साथ यात्रा पर निकलते हैं, जहां वे कई रोमांचक और सीखने वाले अनुभवों से गुजरते हैं।


फिल्म के दौरान, दत्तात्रेय बाबूलाल को जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देखने में मदद करते हैं। वे उसे सिखाते हैं कि बुढ़ापा एक अवधि नहीं है, बल्कि एक दृष्टिकोण है। बाबूलाल अपने पिता के साथ बिताए गए समय के दौरान धीरे-धीरे अपनी नकारात्मक सोच को छोड़ने लगता है और जीवन को अधिक सकारात्मक रूप से देखने लगता है।


"102 नॉट आउट" एक ऐसी फिल्म है जो जिंदगी को खुलकर जीने के महत्व को बताती है। यह फिल्म हमें सिखाती है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है और हम अपनी उम्र की परवाह किए बिना अपने जीवन का आनंद ले सकते हैं। फिल्म में दत्तात्रेय का किरदार एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे हम अपने जीवन में सकारात्मकता और खुशी को बनाए रख सकते हैं।



फिल्म के कुछ महत्वपूर्ण संदेश इस प्रकार हैं:


🟣 उम्र सिर्फ एक संख्या है। हम अपनी उम्र की परवाह किए बिना अपने जीवन का आनंद ले सकते हैं।

🟣 नकारात्मक सोच हमें खुश नहीं करती है। हमें सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

🟣 जीवन में रोमांच और चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए।
परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना महत्वपूर्ण है।


"102 नॉट आउट" एक अच्छी तरह से बनाई गई फिल्म है जो एक महत्वपूर्ण संदेश देती है। यह फिल्म हर उम्र के दर्शकों के लिए एक मनोरंजक और प्रेरणादायक अनुभव है।


जिंदगी कैसे जिएं

जिंदगी एक खूबसूरत उपहार है जिसे हम सभी को जीना चाहिए। लेकिन जिंदगी को कैसे जीना चाहिए, यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब हर कोई अपने लिए खोजता है।

कई लोग मानते हैं कि जिंदगी का उद्देश्य खुशी हासिल करना है। लेकिन खुशी एक ऐसी चीज है जो हम अपने कर्मों से हासिल करते हैं। अगर हम अपने जीवन को सकारात्मक रूप से जीते हैं, तो हम खुशी को पा सकते हैं।

जिंदगी को खुलकर जीने का मतलब है कि हम अपने जीवन का हर पल का आनंद लें। इसका मतलब है कि हम नई चीजें सीखें और नए अनुभवों को अपनाएं। इसका मतलब है कि हम अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं और उनके साथ संबंध बनाए रखें।


"102 नॉट आउट" फिल्म हमें सिखाती है कि जिंदगी को खुलकर जीने के लिए हमें अपनी उम्र के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए। हम अपनी उम्र की परवाह किए बिना अपने जीवन का आनंद ले सकते हैं। हमें नकारात्मक सोच को छोड़कर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। हमें जीवन में रोमांच और चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए। और हमें अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना चाहिए।


यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं कि आप अपनी जिंदगी को खुलकर कैसे जी सकते हैं:

❤️ हर दिन नए चीजें सीखें और अनुभव करें।

❤️ अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रयास करें।

❤️ अपने आसपास की दुनिया का आनंद लें।

❤️ दूसरों की मदद करें।

❤️ प्यार और दयालु बनें।

❤️ जिंदगी को खुलकर जीने से हम खुश और संतुष्ट जीवन जी सकते हैं।



✍️ समीक्षक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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