- किसी राष्ट्र का स्वास्थ्य उसकी सम्पदा से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
- हरबर्ट स्पेन्सर
- बिना संतुलित आहार के दवाईयां किसी काम की नहीं। संतुलित आहार दवाईयों का विकल्प है।
- आयुर्वेद
- संतुलित भोजन अपने आप में औषिधयों का प्रतिस्थानी है।
- दार्शनिक हिपोक्रेटिस
- किसी भी व्यक्ति के हृदय का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है।
- एक कहावत
- आहार से संतुष्ट, संस्कार से युक्त
- एक कहावत
- सुबह का नाश्ता नृप सदृश, दोपहर का भोजन राजकुमार सदृश ,रात्रि का भोजन किसी निर्धन की भांति किया जाना चाहिए।
- एक कहावत
यही सब को आधार मानकर ही शायद मिड-डे-मील योजना की शुरुवात की गई होगी । 1995 में मध्यान्ह भोजन योजना प्रारम्भ हुयी थी। तत्समय प्रत्येक छात्र को इस योजना के अंतर्गत हर माह तीन किलोग्राम गेहूं या चावल उपलब्ध कराया जाता था। केवल खाद्यान्न उपलब्ध कराये जाने से बच्चों का स्वास्थ्य एवं उनकी स्कूल में उपस्थिति पर अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ा।
तमिलनाडू में देश की सबसे पुरानी मध्यान्ह भोजन योजना संचालित है। वहां परबच्चों को मध्यान्ह में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। बच्चों को इस योजनान्तर्गत विद्यालयों में मध्यावकाश में स्वादिष्ट एवं रूचिकर भोजन प्रदान किया जाता है। इससे न केवल छात्रों के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है अपितु वह मन लगाकर शिक्षा ग्रहण भी कर पाते हैं। इससे बीच में ही विद्यालय छोड़ने (ड्राप आउट) की स्थिति में भी सुधार आया है। भारत सरकार द्वारा निर्देशित किया गया था कि बच्चों को समस्त प्रदेशों में मध्यान्ह अवकाश में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराया जाये।
कतिपय कारणों से इस योजना के अंतर्गत पका-पकाया भोजन उत्तर प्रदेश में सितम्बर, 2004 तक नहीं दिया जा सका। विद्यालयों में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराने के संबंध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका संख्या 196/2001 पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीजबनाम यूनियन आफ इण्डिया एवं अन्य में दिनांक 28-11-2001 को भारत सरकार को निर्देशित किया था कि 3 माह के अन्दर सरकार प्रत्येक राजकीय एवं राज्य सरकार से सहायता प्राप्त प्राइमरी विद्यालयों में पका पकाया भोजन उपलब्ध कराये इस भोजन में 300 कैलोरी ऊर्जा तथा 8-12 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध होगा और यह भोजन वर्ष में कम से कम 200 दिनों तक उपलब्ध कराया जायेगा। माननीय न्यायालय ने यह भी निर्देशित किया है कि योजना के अंतर्गत औसतन अच्छी गुणवत्ता का खाद्यान्न उपलब्ध कराया जायेगा। उत्तर- प्रदेश में दिनांक 01 सितम्बर, 2004 से पका-पकाया भोजन प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराने की योजना आरम्भ कर दी गयी है। वर्तमान में भारत सरकार द्वारा मानकों में परिवर्तन करते हुए यह निर्धारित किया गया है कि उपलब्ध कराये जा रहे भोजन में कम से कम 450 कैलोरी ऊर्जा 12 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध हो। मध्यान्ह भोजन योजना कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य प्रदेश सरकार शिक्षा की विभिन्न योजनाओं में अत्यिधक पूंजी निवेश कर रही है। इस पूंजी निवेश का पूर्ण लाभ तभी प्राप्त होगा जब बच्चे कुपोषण से मुक्त होकर अपनी पूर्ण क्षमता से शिक्षा निर्बाध रूप से ग्रहण करते रहें। मध्यान्ह भोजन योजना इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण कड़ी है। इस योजना के माध्यम से शिक्षा के सार्वभौमीकरण के निम्न लक्ष्यों की प्राप्ति होगी-
तमिलनाडू में देश की सबसे पुरानी मध्यान्ह भोजन योजना संचालित है। वहां परबच्चों को मध्यान्ह में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। बच्चों को इस योजनान्तर्गत विद्यालयों में मध्यावकाश में स्वादिष्ट एवं रूचिकर भोजन प्रदान किया जाता है। इससे न केवल छात्रों के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है अपितु वह मन लगाकर शिक्षा ग्रहण भी कर पाते हैं। इससे बीच में ही विद्यालय छोड़ने (ड्राप आउट) की स्थिति में भी सुधार आया है। भारत सरकार द्वारा निर्देशित किया गया था कि बच्चों को समस्त प्रदेशों में मध्यान्ह अवकाश में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराया जाये।
कतिपय कारणों से इस योजना के अंतर्गत पका-पकाया भोजन उत्तर प्रदेश में सितम्बर, 2004 तक नहीं दिया जा सका। विद्यालयों में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराने के संबंध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका संख्या 196/2001 पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीजबनाम यूनियन आफ इण्डिया एवं अन्य में दिनांक 28-11-2001 को भारत सरकार को निर्देशित किया था कि 3 माह के अन्दर सरकार प्रत्येक राजकीय एवं राज्य सरकार से सहायता प्राप्त प्राइमरी विद्यालयों में पका पकाया भोजन उपलब्ध कराये इस भोजन में 300 कैलोरी ऊर्जा तथा 8-12 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध होगा और यह भोजन वर्ष में कम से कम 200 दिनों तक उपलब्ध कराया जायेगा। माननीय न्यायालय ने यह भी निर्देशित किया है कि योजना के अंतर्गत औसतन अच्छी गुणवत्ता का खाद्यान्न उपलब्ध कराया जायेगा। उत्तर- प्रदेश में दिनांक 01 सितम्बर, 2004 से पका-पकाया भोजन प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराने की योजना आरम्भ कर दी गयी है। वर्तमान में भारत सरकार द्वारा मानकों में परिवर्तन करते हुए यह निर्धारित किया गया है कि उपलब्ध कराये जा रहे भोजन में कम से कम 450 कैलोरी ऊर्जा 12 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध हो। मध्यान्ह भोजन योजना कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य प्रदेश सरकार शिक्षा की विभिन्न योजनाओं में अत्यिधक पूंजी निवेश कर रही है। इस पूंजी निवेश का पूर्ण लाभ तभी प्राप्त होगा जब बच्चे कुपोषण से मुक्त होकर अपनी पूर्ण क्षमता से शिक्षा निर्बाध रूप से ग्रहण करते रहें। मध्यान्ह भोजन योजना इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण कड़ी है। इस योजना के माध्यम से शिक्षा के सार्वभौमीकरण के निम्न लक्ष्यों की प्राप्ति होगी-
- प्राथमिक कक्षाओं के नामांकन में वृद्धि।
- छात्रों को स्कूल में पूरे समय रोके रखना तथा विद्यालय छोड़ने की प्रवृत्ति (ड्राप आउट) में कमी।
- निर्बल आय वर्ग के बच्चों में शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता विकसित करना।
- छात्रों को पौष्टिक आहार प्रदान करना।
- विद्यालय में सभी जाति एवं धर्म के छात्र-छात्राओं को एक स्थान पर भोजन उपलब्ध करा कर उनके मध्य सामाजिक सौहार्द, एकता एवं परस्पर भाई-चारे की भावना जागृत करना।
ब्लॉग़ की रचनाओं को पढ़कर आपके मन में कुछ ना कुछ भाव तो जागेंगे ही, बस लिख डालिए यहां अपने विचार टिप्पणी के रुप मे।
ReplyDeleteधन्यवाद!
प्राइमरी का मास्टरका पीछा करें
बेहतरीन जानकारी । लेकिन इस अच्छी योजना की जितनी दुर्गति हमारे प्रदेश में हुई है उसे देखकर तो यही लगता है कि मध्यान्ह भोजन योजना का अस्ली फ़ायदा बच्चों की सेहत को नहीं अधिकारियों और नेताओं को मिल रहा है ।
ReplyDeleteaapne bilkul sahi kahaa
Deleteतफसील से एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर आपने जानकारी दी -चित्र कहाँ से लिया ? क्या प्रोटीन की कमी को सुनिश्चित करने के लिए सप्ताह में अधिकतम दो बार मछली का एक छोटा टुकडा भी मेनू में सम्मिलित नही किया जा सकता ! जिन स्कूलों के पास थोड़ी अतिरिक्त जमीन हो वे छोटा सा तालाब बना कर मछली पाली जा सकती है -
ReplyDeleteअन्यथा न ले सरकारी टीचर मिड डे मील ,जनसँख्या ,वोटर लिस्ट ,पशु संख्या , स्कूल बिल्डिंग निर्माण और अन्य सरकारी कार्यक्रम मे व्यस्त रहते है ,पढाते कब है .
ReplyDeleteप्रवीण जी मिड डे मील कार्यक्रम के लक्ष्य तो बहुत ही अच्छे हैं.
ReplyDeleteलेकिन देखना यह है कि कितनी ईमानदारी से आज भी यह कितनी जगह सुचारू रूप से चल रहा है?
-छात्रों के स्वास्थ्य की भी समय समय पर जांच होती रहनी चाहिये.
-खाना बनाने और खिलाने का काम अध्यापकों के जिम्मे न हो कर आंगनवाडी worker आदि के हाथ में होना चाहिये.[क्यों कि सुना हैछोटी जगहों के स्कूलों में--अध्यापक ही यह कार्य करते हैं.]
जानकारी के लिए आभार.
वाह, मुझे आत्मोन्नति पर छापने के लिये कुछ उद्धरण मिल गये यहाँ!
ReplyDeleteकुछ दिनों पहले तक मिड डे मील बच्चों को खिलाने में मेरा भी हाथ हुआ करता था. अवधारणा तो अच्छी है, पर समुचित रूप से इसका पालन नहीं हो पाता.
ReplyDeleteये योजना वाकई सफल हो रही है.. और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर रही है..
ReplyDeleteरंजन
योजना का लक्ष्य और नीयत तो सचमुच में गम्भीर थी किन्तु क्रियान्वयन में घपला हुआ । निर्धारित व्यंजनों की और उनकी संख्या की उपेक्षा तथा गुणवत्ता में कमी के चलते छात्रों को वह सब नहीं मिलता जो तय किया गया था ।
ReplyDeleteशाला में बच्चों की संख्या तो बढी किन्तु बच्चों का लक्ष्य पढना नहीं, भोजन पाना रह गया है ा कई बच्चे अपने साथ उन भाई-बहनो को भी लाते हैं जो 'छात्र' नहीं हैं ।
इस योजना ने अध्यापकों को इतना व्यस्त कर दिया है कि अब शालाओं में पढाई के सिवाय बाकी ाब हो रहा है ।
अन्त में 'भारतीय चरित्र' की बात - यह योजना 'छात्रों' के अतिरिक्त अन्य लोगों का भी पेट भर रही है ।
मिड डे मील से बच्चों को तो लाभ नही पहुचा होगा उलटा आधिकारियो, ओर अन्य लोगो को जरुर लाभ पहुचा होगा, अगर सरकार बच्चो का सच मै भला करना चाहती है तो *मिड डे मील* के स्थान पर स्कुलो की फ़ीस सब के लिये माफ़ हो, किताबे भी बच्चो को फ़्रि मे मिले... ओर पढाई अनिवार्य हो, यह काम इमानदारी से हो, फ़िर देखे इस का रजल्ट, सिर्फ़ मिड डे मील से कुछ नही होने वाला इस से सिर्फ़ वोट ओर नोट ही बन सकते है.
ReplyDeletearvind ji!!
ReplyDeleteयह चित्र गूगल सर्च से उठाया है !!!!
किसी दक्षिण भारत स्थित विद्यालय का लगता है!!!
प्राइमरी का मास्टर का पीछा करें
aapki dvara di gai jankari achchi hai ,par mera sochna hai mid day meal ka jis prakar vistar kiya ja raha hai tab is yojna ka mulyakan jaroor hona chaye ,bachcho ko ghar par behtar bhojan milna chahiye or pathshalaon mai gyan .
ReplyDeleteछात्रों को केवल 3.11 रुपये मे पौष्टिक आहार प्रदान करना अध्यापकों के लिए टेढी खीर है, आज 3 रुपये मे एक चाय भी नही पिला सकते है तो खाना कैसे खिलाते होंगे।
ReplyDeleteछात्रों को केवल 3.11 रुपये मे पौष्टिक आहार प्रदान करना अध्यापकों के लिए टेढी खीर है,3 रुपये मे एक चाय भी नही पिला सकते है तो खाना कैसे खिलाते होंगे
ReplyDeleteइस योजना से सही रूप से किसे लाभ हुआ ये शोध का विषय है ।बच्चों को शिक्षित करने के लिए जिन बुनियादी चीजों की जरूरत है जैसे काॅपी और कलम, वो उनके पास नही होता ।निश्चित रूप से इस योजना मे काफी सुधार की जरूरत है ।
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