"मानव जाति" को भाषा ही, अन्य पशुपक्षियों से पृथक करती है, बच्चा यह क्षमता अर्जित करता है, भाषागत क्षमता जन्मजात नहीं होती।विद्यालयों में प्रवेश करने के बाद, शिक्षा जगत से जुड़े लोगों को भाषा-अर्जन की क्षमता के विकास का प्रयास सर्वप्रथम करना चाहिए। क्योंकि अन्य विषयों की "सम्प्राप्ति"की आधारशिला भी भाषा ही है।किन्तु फिर भी यह पाया जाता है , कि प्राथमिक स्तर पर बच्चों की पढ़ने की क्षमता पर्याप्त विकसित नहीं है, जबकि विषयगत सम्प्राप्ति-वृद्धि के लिए पुस्तकों को पढ़ने में रूचि होना तथा पढ़ने की दक्षता का होना, अत्यन्त आवश्यक है।
भाषा शिक्षण के अन्तर्गत छात्र-छात्राओं की `पठन-क्षमता´ विकसित करने तथा पुस्तकों के प्रति रूचि अभिवृद्धि के लिए कुछ अतिरिक्त करने की आवश्यकता है छात्र-छात्राओं की कक्षा-कक्ष में विषयगत सम्प्राप्ति वृद्धि के लिए यह आवश्यक प्रतीत होता है, कि पाठ्य पुस्तकों के अलावा भी बच्चों की रूचि और उत्साह अन्य पुस्तकों को पढ़ने की ओर हो। बच्चों का "सीधा सम्पर्क" पुस्तकों के साथ स्थापित करने के लिए सक्रिय पुस्तकालय की गतिविधियों से सीधे बच्चों को जोड़ा जाय । पुस्तकों में रूचि होना, उनको पढ़ना तथा संदर्भ के रूप में प्रयोग करना भी भाषागत दक्षता को विकसित करने के लिए आवश्यक होता है। छात्र-छात्राओं में पठन क्षमता के विकास के अवसर मात्र-भाषा शिक्षण में ही प्रदान नहीं, किया जाना चाहिए वरन सभी विषयों के शिक्षण में छात्र-छात्राओं को लिखित सामग्री पढ़ने के अवसर प्रदान करने की आवश्यकता होती है, बच्चों को कक्षा के भीतर कक्षा के बाहर लिखित/छपी सामग्री पढ़ने के अवसर प्रदान किये जाएँ जिससे बच्चों की विषयगत सम्प्राप्ति में अभिवृद्धि भी हो सकेगी।
बिल्कुल सही लिखा है।अक्सर आज कल देखनें में आ रहा की बच्चों में मात्र पाठय पुस्तक पढ़ लेना,तक ही उन की रूची रह गई है।बढिया विचार प्रस्तुत किए हैं।आभार।
ReplyDeleteक्या आपको नहीं लगता शिक्षक शिक्षा को रोजी रोटी कमाने का माध्यम समझते है मिशन नहीं
ReplyDeleteआपकी बाते पूरी तरह से व्यावहारिक और सामयिक हैं । लेकिन विभिन्न प्रयशेगों के लिए 'शिक्षा' को जिस तरह से 'खरगोश और चूहों' की तरह काम में लिया जा रहा है उसके चलते आशा की किरणें मुरझाती नजर आती हैं ।
ReplyDeleteविद्यालयों में पुस्तक मित्रता भी एक गतिविधि होना चाहिए। इस गतिविधि के अंक भी होने चाहिए और रेंकिंग के हिसाब से बच्चों को पुरस्कार भी मिलने चाहिए।
ReplyDeleteआप ने बिलकुल सही लिखा है, भारत मै तो रटा ही चलता है आजकल, किसी तरह से परीक्षा पास कर लो....
ReplyDeleteधन्यवाद
ये तो बिक्कुल सही बात है... मास्टर साहब !
ReplyDeleteहम तो कहेंगे बच्चों को ब्लॉग बनना सिखाना चाहिये।
ReplyDeleteशिक्षा के विकास हेतु उठाया गया आपका प्रयास सराहनीय है.
ReplyDeleteलिखते रहिये. हम आपके साथ है.
- यादों का इंद्रजाल