सेल्फी को स्वार्थी चित्र क्यों न कहें?

0
अपनी बात कविता के साथ में आज सेल्फी को स्वार्थी चित्र क्यों न कहें?



सेल्फी एक ऐसा चित्र है, जो हमें अपनी ही सुंदरता को दिखाता है। यह हमें याद दिलाता है कि हम कितने सुंदर हैं। लेकिन यह हमें यह भी याद दिलाता है कि हम कितने अहंकारी हैं। 


हम हमेशा खुद को दूसरों को दिखाने की कोशिश करते हैं। हम अपनी सुंदरता का प्रदर्शन करने के लिए हर तरह की कोशिश करते हैं। यह हमें दूसरों से अलग बनाता है और हमें अपनी ही दुनिया में बंद कर देता है।


सेल्फी हमें यह सोचने से रोकता है कि हम इस दुनिया का हिस्सा हैं। हम केवल अपने बारे में सोचते हैं और दूसरों के बारे में नहीं सोचते हैं। यह हमें अपनी ही दुनिया में कैद कर देता है।



सेल्फी को स्वार्थी चित्र क्यों न कहें?
हमेशा अपनी आत्म मुग्धता में मगन

स्वयं को दिखाने की चाहत में,
दुनिया से कट जाते हैं लोग

खुद को दिखाने के लिए,
लोग करते हैं हर तरह की कोशिश

सेल्फी के पीछे छिपी है,
एक बड़ी ही स्वार्थी सोच

जो हमें अपनी ही दुनिया में,
बंद कर देती है



सेल्फी हमें दिखाती है,
कि हम कितने अहंकारी हैं

और हमें याद दिलाती है,
कि हम कितने अकेले हैं

सेल्फी एक ऐसा चित्र है,
जो हमें हमारी ही दुनिया में,
घूमने के लिए प्रेरित करता है

और हमें यह सोचने से रोकता है,
कि हम इस दुनिया का हिस्सा हैं

सेल्फी हमें इस दुनिया से,
दूर ले जाती है

और हमें अपनी ही दुनिया में,
कैद कर देती है



✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)