जो गुरु बसै बनारसी, सीष समुन्दर तीर

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रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार, प्रारम्भ में ही ज्ञान शिक्षा का आश्रम स्थापित करने के लिए गुरु की आवश्यकता पड़ती है। शिक्षक तो आवेदन करते ही लाइन लगा देते हैं, पर गुरु तो फरमाइश करते ही,  नहीं मिल सकते।। प्रस्तुत है कबीर के नजरिये से सम्बंधित चौथी कड़ी.....



गुरु  सामान दाता नहीं, याचक सीष समान ।
तीन  लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्हों दान ।।

गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य की तरह कोई याचक नहीं। गुरु ने तीनों लोक की संपदा से भी बढ़कर ज्ञान का दान जो दे दिया है।




जो गुरु बसै बनारसी, सीष समुन्दर तीर ।
एक पलक बिसरे नहीं, जो गुण होय शरीर ।।

यदि गुरु बनारस (काशी) में निवास करें, और शिष्य समुद्र के नजदीक हो, यदि शिष्य के शरीर में गुरु का गुण होगा, तो वह गुरु को एक क्षण भी नहीं भूल सकता। (यहाँ बनारस और समुद्र के माध्यम से गुरु शिष्य के मध्य प्राकृतिक दूरी को बताने की चेष्ठा की गयी है।)



आजकल 'कबीर' पर कुछ अध्ययन मनन चल रहा है और उसका परिणाम है यह पोस्ट और आगे "कबीरवाणी" और "गुरु" लेबल के अंतर्गत आगे आने वाली क्रमिक पोस्ट्स। समय के प्रवाह में शायद इसी बहाने इनपर कुछ नया विमर्श मिल सके इस आशा के साथ "गुरु" केंद्रित कबीरवाणी आगे भी क्रमशः प्रस्तुत की जायेगी। कबीर की गुरु भक्ति उस चरम बिदु पर थी जहाँ उन्होंने कहा है-
"गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय।"
क्रमशः  जारी ...


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29Comments
  1. गुरु के काम से सीख लेता हुआ शिष्य कहीं भी रहे , उसके ही पास रहेगा !

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  2. जितना आपने दोहों का अर्थ लिखा है उतना ही अगर परीक्षा में हम लिख देते थे तो मास्साब लोग 10 में से 2 थमा देते थे. आज तक समझ नहीं आया कि बाक़ी 8 में वो आख़िर और क्या लिखवा लेना चाहते थे. जबकि मुझे आज भी यही लगता है बात बस इतनी ही जितनी आपने कही है ☺

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    1. काजल भाई !
      ज़माना बदल गया है ...और मास्साब भी !
      देखिये ना एक दो नहीं बहुत अधिक संख्या में दिल्ली विश्वविद्यालय में परीक्षार्थियों के लिखित परीक्षा के प्रश्नपत्रों में पूरे के पूरे नंबर आये हैं! क्यों आये हैं ??? शायद आपका यही यक्ष प्रश्न रहा हो,"बाक़ी 8 में वो आख़िर और क्या लिखवा लेना चाहते थे?"

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    2. वह भी हिन्दी में !

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  3. हा हा हा काजलकुमार जी की टिप्पणी मजेदार है ..बनारसी बने रहें !

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  4. हा हा, नम्बर पाना और मर्म समझ जाना, कभी कोई सम्बन्ध दिखा ही नहीं दोनो में।

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  5. उपस्थित श्रीमान जी ! आलेख वाचन क्रमशः जारी ...

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    1. पहले चेले आप हो जो गुरू पर भारी हो !

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  6. गुरू सीष ब्लॉगर बने, रहें सदा ही पास
    ना बिसरन का भय रहे, ना मिलने की आस।

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  7. ...आपकी इस पोस्ट-श्रंखला से एक विमर्श तो निकल ही पड़ा ! भाई लोग खूब आनंद ले रहे हैं !

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  8. vaah kya bat hai kabir ki !

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  9. कहां ओझल हो गये गुरूदेव! पीठासीन की डायरी याद कर रहे हैं का?

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  10. बहुत ही ज्ञानवर्धक प्रस्तुति

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  11. कबीर पर आप मनन करके हमें इस प्रकार लाभान्वित कर रहे हैं. सुंदर प्रस्तुति. प्रवीण जी आपका आभार.

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  12. Babur sundar. Guru Janon ko naman

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  13. बेहतरीन और गहरी पंक्तियाँ गुरु-शिष्य को समझने के लिए..

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  14. مشكوور والله يعطيك العافيه




    goood thenkss

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  15. मास्साब, अगली कड़ी कब आयेगी?

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  16. बहुत ही ज्ञानवर्धक प्रस्तुति !!

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  17. बनारसी देखा तो भागा चला आया और ज्ञानामृत से कृत्यार्थ हुआ :)

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  18. ई गर्मी में कौन ड्यूटी कर रहे हैं मास्साब की अगली कक्षा शुरू ही नहीं करी! तबियत तो ठीक है?

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  19. mahan kintu aaj k samay me aprasangik

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  20. shikshak bandhu apne ko GURU SAMJHNE KA BHRM N PALEN /
    SHIKSHK SUCHNAYENDETA HAI JABKI GURU SARI SUCHNAUEN CHHIN LETA HAI //
    SHIKSHAK PAR KA GYAN DETA HAI JABKI GURU SWA KA BHODH KARATE HAIN /

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