धार्मिक शिक्षा को भी विषयों की शिक्षा के बराबर ही महत्त्व देना पड़ेगा। यह सच है कि धार्मिक पुस्तकों के ज्ञान की तुलना धर्म से नहीं की जा सकती। लेकिन हमें यदि धर्म नहीं मिल सकता तो हमें अपने लड़कों को उससे घटकर दूसरी वस्तु देकर ही सन्तोष करना पडे़गा।

शिमोगा के कालेजियट हाई स्कूल के लड़कों के समक्ष भाषण करते समय पूछने पर मुझे पता चला कि लगभग सौ हिन्दू लड़कों में मुश्किल से आठ ने भगवदगीता पढ़ी थी। यह पूछने पर कि उनमें से कोई गीता का अर्थ भी समझता है, एक भी हाथ नहीं उठा। पांच-छ: मुसलमान विद्यार्थियों में से एक-एक ने कुरान पढ़ी थी, मगर अर्थ समझने का दावा एक ही कर सका।

फिर मैं समझता हूं हर प्रान्तीय भाषा में इसका एक प्रामाणिक अनुवाद होना चाहिए। वह अनुवाद ऐसा हो, जिससे गीता की शिक्षा सर्व-साधारण की समझ में आ सके। मेरी यह सलाह गीता के स्थान पर दूसरी पुस्तक रखने के बारे में नहीं है क्योंकि मैं अपनी यह राय दोहराता हूं कि हर हिन्दू बालक-बालिका को संस्कृत जानना चाहिए। पर अभी बहुत जमाने तक करोड़ों व्यक्ति संस्कृत से कोरे ही रहेंगे। केवल संस्कृत न जानने के कारण उन्हें गीता की शिक्षा से वंचित रखना आत्मघात करना होगा।
यंग इंडिया,हिन्दी नवजीवन 25-8-1927

स्कूलों में ऐसी शिक्षा दी जाये या न दी जाये किन्तु वयस्क लड़कों को अन्य विषयों की तरह धार्मिक विषय में भी स्वावलम्बन की आदत डालनी पड़ेगी। जिस प्रकार आज उनकी वाद-विवाद या चर्चा-समितियां हैं उसी प्रकार वे स्वयं ही धार्मिक वर्ग खोलें।
शिमोगा के कालेजियट हाई स्कूल के लड़कों के समक्ष भाषण करते समय पूछने पर मुझे पता चला कि लगभग सौ हिन्दू लड़कों में मुश्किल से आठ ने भगवदगीता पढ़ी थी। यह पूछने पर कि उनमें से कोई गीता का अर्थ भी समझता है, एक भी हाथ नहीं उठा। पांच-छ: मुसलमान विद्यार्थियों में से एक-एक ने कुरान पढ़ी थी, मगर अर्थ समझने का दावा एक ही कर सका।

मेरी समझ से गीता बहुत सरल ग्रंथ है अवश्य ही इसमें कुछ मौलिक प्रश्न आते हैं, जिन्हें हल करना बेशक मुश्किल है। लेकिन गीता की साधारण शिक्षा को न समझ सकना असम्भव है। इसे सभी सम्प्रदाय प्रामाणिक ग्रंथ मानते हैं। इसमें किसी प्रकार की साम्प्रदायिकता नहीं है। संक्षेप में यह सम्पूर्ण संयुक्त नीति-शास्त्र है। यों यह दर्शन-संबंधी और भक्ति-विषयक दोनों ही प्रकार का ग्रंथ है। इससे सभी लोग लाभ उठा सकते हैं। इसकी भाषा अत्यन्त सरल है।
फिर मैं समझता हूं हर प्रान्तीय भाषा में इसका एक प्रामाणिक अनुवाद होना चाहिए। वह अनुवाद ऐसा हो, जिससे गीता की शिक्षा सर्व-साधारण की समझ में आ सके। मेरी यह सलाह गीता के स्थान पर दूसरी पुस्तक रखने के बारे में नहीं है क्योंकि मैं अपनी यह राय दोहराता हूं कि हर हिन्दू बालक-बालिका को संस्कृत जानना चाहिए। पर अभी बहुत जमाने तक करोड़ों व्यक्ति संस्कृत से कोरे ही रहेंगे। केवल संस्कृत न जानने के कारण उन्हें गीता की शिक्षा से वंचित रखना आत्मघात करना होगा।
यंग इंडिया,हिन्दी नवजीवन 25-8-1927
कितने उम्दा विचार थे बापू के.
ReplyDeleteकाश, बापू के यह विचार आज अनुसरण किये जाते ! आभार ।
ReplyDeleteकितने उम्दा विचार थे महात्मा गांधी के |
ReplyDeleteलेकिन इस वक्त ऐसी बात करने वाले को तुंरत कट्टरपंथी साम्प्रदायिक करार दे दिया जाता है | इस देश में वोट बैंक की राजनीती के चलते यही एक विडम्बना है |
सत्य वचन .
ReplyDeleteअति सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
सचमुच भगवत गीता का अध्ययन सभी कर सकते हैं. इसके लिए सरल अनुवाद उपलब्ध होना चाहिए.
ReplyDeleteज्ञान का कोई धर्म नहीं होता।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
यदि कोई व्यक्ति गीता का ठीक तरह से अध्ययन करेगा तो हरेक विषय में उसकी बुद्धि प्रवेश करेगी।
ReplyDeleteजनमानस परिष्कार मंच
सुन्दर विचार।
ReplyDeleteसहमत है आप के इस लेख से ओर बापू के सुंदर विचारो से.
ReplyDeleteअच्छा, बापू के जमाने में भी भग्वद्गीता पर साम्प्रदायिक होने की कुदृष्टि डालने वाले थे। तभी तो बापू ने यह कहा होगा।
ReplyDeleteसही कह रहे हैं
ReplyDeleteस्वाधीनता संग्राम में बेधड़क जान देने वाले शहीद और अहिंसक आन्दोलन के प्रणेता दोनों का ही प्रेरणा स्रोत गीता रही है. गीता कर्मयोगियों का ग्रन्थ है और भक्तों का भी. यदि जनसेवा के लिए मैग्सेसे पुरस्कार पाने वालों का ज़िक्र हो तो एक बड़ा वर्ग उन लोगों का सामने आयेगा जिन्हें गीता से सेवा की प्रेरणा मिली. युवाओं को ऐसे ग्रन्थ की जानकारी न होना सचमुच निराशाजनक है. आचार्य विनोबा भावे के गीता प्रवचनों का ऑडियो (वाचन) मेरे ब्लॉग पर उपलब्ध है. सुनने के इच्छुक लोग यहाँ क्लिक कर सकते हैं.
ReplyDeleteपाण्डेय जी, बापू के काल में तो कुछ लोगों ने अहिंसा को भी साम्प्रदायिक बताया था, फिर गीता की तो बात ही और है. ऐसे लोगों ने फैलाया की अहिंसा के नाम पर हिन्दू विचार लादा जा रहा है.
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कई बार न्यायालयों के कई न्यायाधीशों ने यह कहा है की गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित कर देना चाहिए. पर इस्लामियत और इसाइयत से जकड़ी कांग्रेस की सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करने वाली.
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