मैं नहीं चाहता कि राष्ट्रीय विद्यालयों में पढ़ाई-लिखाई बन्द करके कातना-पीजना ही सिखाया जाय या कराया जाय। मैं चाहता हूं कि विद्यार्थियों को काफी और उचित अक्षर-ज्ञान दिया जाय। मैं चाहता हूं कि वे पढ़ने-लिखने में सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों की बराबरी कर सकें।
मगर मुझे केवल अक्षर-ज्ञान से ही संतोष नहीं हो सकता। सरकारी स्कूलों में नौकरी का, मुंशीगिरी का उद्देश्य सामने रखकर केवल पढ़ना-लिखना ही सिखाया जाता है। राष्ट्रीय विद्यालयों का हेतु स्वराज्य, आजादी, स्वावलंबन है। इसलिए विद्यार्थियों को अक्षर-ज्ञान के साथ-साथ हृदय-बल और शरीर-श्रम की शिक्षा देनी चाहिए।
राष्ट्रीय स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई को साध्य समझने के बजाय उसे चरित्र बल बढ़ाने का और स्वराज्य के काम का साधन मानना चाहिए। दिल को मजबूत बनाने के लिए हृदय-बल वाले शिक्षक चाहिए। चर्खा स्वराज्य लेने का एक शक्तिशाली साधन होने के कारण, जिस राष्ट्रीय विद्यालय में चर्खे का आदर न हो, उसे मैं राष्ट्रीय हरगिज न कहूंगा।
जिस राष्ट्रीय विद्यालय में हिंदी, उर्दू सिखाना अनिवार्य न हो उससे राष्ट्र को शक्ति नहीं मिल सकती। जो राष्ट्रीय विद्यालय अछूतों का बहिष्कार करे, उस विद्यालय के बंद हो जाने में ही देश का भला है।
राष्ट्रीय विद्यालय में हिंदू, मुसलमान, पारसी, ईसाई, सभी जातियों के विद्यार्थियों को सगे भाइयों की तरह पढ़ना चाहिए। मेरे विचार से ये सारी बातें राष्ट्रीय होने के प्रतीक हैं ।
...... महात्मा गाँधी
नवजीवन 21-12-1924
बहुत सुन्दर प्रेरक विचार प्रस्तुति. आभार मास्टर जी
ReplyDeleteआज गाँधी अपने ही देश में अप्रासंगिक लगते दिख रहे हैं.
ReplyDeleteप्रेरक पोस्ट मास्साब। आभार आपका।काश हम लोगो ने बापू को सिर्फ़ सुना ही नही समझा भी होता।
ReplyDeleteprerak post. आभार..
ReplyDeleteबापू की मूल भावना से तो कोई असहमति है ही नहीं। बाकी चर्खे की सामयिकता पर सन्देह है। नये प्रतीक तलाशने होंगे।
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक पोस्ट.
ReplyDeleteआभार आपका.
रामराम.
ज्ञान जी की इस बात का अक्षरशः समर्थन कि नये प्रतीक तलाशने होंगे । बापू के विचारों के क्रमशः प्रस्तुतिकरण का आभार ।
ReplyDeleteप्रेरक आख्यान!
ReplyDeleteशिक्षा का नििश्चित लक्ष्य हो - आज की शिक्षा की सबसे बडी खामी यह हैं कि इसके सामने अनुसरण करने के लिये कोई निश्चित लक्ष्य नहीं हैं। एक चित्रकार अथवा मूर्तिकार जानता हैं कि उसे क्या बनाना हैं तभी वह अपने कार्य में सफल हो पाता हैं । आज शिक्षक को यह स्पष्ट नही हैं वह किस लक्ष्य को लेकर अध्यापन कार्य कर रहा है। सभी प्रकार की शिक्षा का एक मात्र उद्धेश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करना हैं इसके लिये वेदान्त के दर्शन को ध्यान में रखते हुए मनुष्य निर्माण की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिये।-स्वामी विवेकानन्द जी
ReplyDeleteTippnee ke liye shukriya. Prernaprad lekh padh kar achchha laga.
ReplyDeletequite realistic approach in education in India.
ReplyDeletethanks for providing mind blowing material for us.
regards and best wishes.
Dr.Bhoopendra
thanks for providing such useful material which gives an insight for quality education in real sense.
ReplyDeleteregard
s and best wishes
Dr.Bhoopendra
Rewa Mp
शोचनीय बातें हैं।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
गांधी के देश में गांधी उपेक्षा।
ReplyDeleteशोचनीय विषय।
गांधी के देश में गांधी उपेक्षा।
ReplyDeleteशोचनीय विषय।
prerk post .aaj jarurat hai ase prerk prasgi ki .
ReplyDelete्प्रवीण जी ,
ReplyDeleteगांधी जी का चिन्तन हमारे लिये हमेशा प्रासंगिक रहेगा……।
पूनम
आपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
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आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
अफ़सोस कि हमारी शिक्षा के वर्तमान नीति-निर्धारकों ने राष्ट्रपिता के विचारों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया.
ReplyDeleteप्रवीण भाई, बहुत ज्वलंत समस्या उठाई है आपने. आज जब माननीय मंत्री जी उच्च शिक्षा कोया बोझ घटाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीँ प्राईमरी शिक्षा के कौमेर्शियलाइजेशन को रोकने वाला कोई नहीं दिख रहा. २-३ साल के बच्चो पर जो पढाई का बोझ है, उसके बारे में सिर्फ समितियां बनती हैं. क्या तुक है की ३ साल के बच्चे को २० या ३० राईमस रटाई जाएँ. कोई इस तरफ भी ध्यान दे. बच्चे से बचपन छीने बिना भी उसकी औपचारिक शिक्षा शुरू की जा सकती है.
ReplyDeleteकपिल सिब्बल साहब से कहो ये पोस्ट पढें, साथ में गांधीजी कौन थे ये भी बतायें, नही तो पढना व्यर्थ जायेगा!
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