उफ़ !! यह हाड़ कपाने वाली ठण्ड!! मन करता है कि केवल रजाई में दुबके पड़े रहे । बाहर हाथ भी न निकलना पड़े तो कितना अच्छा......? अपने अंग पानी में डालते ही गलने का डर ..... पर माँ और पत्नी के हाथ से गरमागरम पकोडियां , गरमागरम मटर ,आलू भरे पराठे मिलते रहे तो.......!! साथ में गरमागरम चाय काफ़ी की भी छौंक लग जाए तो क्या ठाठ !!
लेकिन ...... एक दूसरा पहलू जो स्याह भी कहा जा सकता है । नंगे बदन तो नहीं पर एक शर्ट के बजाय दो शर्ट पहन कर सर्दी भगाने का कोरा मानसिक एहसास , तो कहीं पथरा गए हाथों से घरों में बर्तन माजती , झाडू , पोंछा लगाती महिलायें । नंगे पावं रात की अँधेरी गूँज में किसी कोने में पड़े साँसों की आह । बहती नाक लिए ठिठुरे हुएबच्चे
......... क्या ख्वाहिश है इन सबकी .....क्या हो सकती इनकी खवाहिश ????
धूप के टुकड़े को पाने की कोशिश ........ किरणों को छूने की कोशिश ............ मुट्ठी में कैद करने की तड़प !!!
मैं सोच रहा हूँ........................................और आप?
aapne kisi gareeb ki mushkilon ko samjhaa...shukriyaa
ReplyDeleteमास्साब जी गजब की चारो और ठण्ड पड़ रही है . की बोर्ड पे उंगलियाँ नही चल रही है .केवल रजाई में दुबके पड़े है बहुत ही सामायिक उम्दा लिखा है
ReplyDeleteसोचने की बात ये है कि इन सर्द स्याह रातों में भी ये लोग खुशी के पल ढूँढ लेते है जो वातानुकूल कक्षों में भी बहुत लोगों से कोसों दूर रहती है।
ReplyDeleteफूल बगीचों में भी उगते हैं और दुर्गम पहाड़ी चट्टानों पर भी। और उसी तरह फुल ब्लूम में खिलते हैं।
ReplyDeleteजिन्दगी का क्या कहा जाये!
इनको अपने हिस्से की धूप तो मिलनी ही चाहिए. वो सुबह कभी तो आयेगी.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग बहुत दिनों से पढ़ रहा हूँ , आप सचमुच एक गंभीर टिप्पणीकार है.
ReplyDeleteaapka blog bahut accha hai
ReplyDeleteaise hi likhte rahiye
njoyuyyyyyyy
कर भी क्या सकते है . अपने अपने हिस्से की धूप और अपने अपने हिस्से की छाव बाट भी नही सकते
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