प्रदेश भर के शिक्षा जगत में कभी यू. पी. बोर्ड की तूती बोलती थी । इसका पाठ्यक्रम सबसे कठिन और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सबसे बेहतर माना जाता था । आज हालत यह है की सूबे भर के नामचीन बड़े बड़े स्कूल और कॉलेज इस बोर्ड से अपना पुराना नाता जोड़ कर सी.बी.एस.ई. और आई.सी.एस.ई बोर्ड से गलबहियां मिलाने लगे हैं । वजह क्या है ........? क्या यह हालत अचानक हो गए हैं.......? क्या जिम्मेदार लोग इसके कारण ढूंढ रहे हैं......? या कि यह बोर्ड भी अपने प्रदेश के लिए केवल बीमारू बोर्ड बन जायेगा .......? आख़िर अच्छे कॉलेज का मतलब अच्छे मेधा को भी तो गवाना हुआ......?
जो भी हो कभी प्रतिष्ठा का केन्द्र रहे इस बोर्ड को अमूल-चूल परिवर्तन के दौर से गुजारना ही पड़ेगा ........ नहीं तो कहीं यह भी अन्य वैभवशाली गाथाओं का अगला क्रम न साबित हो ? ........ आख़िर मिथ्याभिमान के पुराने वाहक तो हम हमेशा ही रहे है । ............... सुन रहे हो मैकाले के वैचारिक संतानों?????
जाहिर है समय के हिसाब से हम अपने को नहीं बदल पाये । बदलाव के इस दौर में हम अपनी पुरानी गौरव गाथा के चक्कर नए परिवर्तन नहीं कर सके ....... जो कि अन्य परीक्षा संस्थाएं करने में सफल रही । कहीं लाल फीताशाही ने बोर्ड को भी एक सरकारी विभाग जैसा लचर -पचर संस्था का रूप तो नहीं दे दिया है ......?
जो भी हो कभी प्रतिष्ठा का केन्द्र रहे इस बोर्ड को अमूल-चूल परिवर्तन के दौर से गुजारना ही पड़ेगा ........ नहीं तो कहीं यह भी अन्य वैभवशाली गाथाओं का अगला क्रम न साबित हो ? ........ आख़िर मिथ्याभिमान के पुराने वाहक तो हम हमेशा ही रहे है । ............... सुन रहे हो मैकाले के वैचारिक संतानों?????
जो भी हो कभी प्रतिष्ठा का केन्द्र रहे इस बोर्ड को अमूल-चूल परिवर्तन के दौर से गुजारना ही पड़ेगा,नहीं तो कहीं यह भी अन्य वैभवशाली गाथाओं का अगला क्रम न साबित हो ? ...Bahut sahi likha hai apne.vajib chinta hai.कभी हमारे 'शब्दशिखर' www.shabdshikhar.blogspot.com पर भी पधारें !!
ReplyDeletemacalay ki santane kabhi nahi sunenge....inaka hosh thikane lagane ka koi aur upaye ho to bat bane...
ReplyDeleteअब और हुआ बंटाधार औपचारिक शिक्षा का !
ReplyDeleteशिक्षा बोर्ड की ही क्यों, उत्तरप्रदेश की अनेक संस्थायें आज तीसरे दर्जे में ठेले जाने को अभिशप्त हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय कहां ठहरता है आज, जिसके गुण गाते मेरे पिताजी नहीं थकते।
ReplyDeleteकहां हैं वे महान हिन्दी साहित्यकार और राजनेता...
बस चोरकटई में टापमटाप बचा है यह प्रदेश।
आज भारत मै शिक्षा भी एक धंधा बन गई है, शायद इसी कारण यह दिन भी देखना पड रहा है.
ReplyDeleteधन्यवाद
चिंता का विषय है..
ReplyDeleteयू पी बोर्ड आज भी मुश्किल माना जाताहै,-padhna bhi aur padhaana bhi..यही कारण है..बहुत से स्कूल अन्य बोर्ड का पक्ष लेते हैं.
आपकी चिन्तायें सही हैं मास्टर जी. धन्यवाद.
ReplyDeleteलगभग सभी राज्य-बोर्डों का यही हाल है. वैसे ज्ञानजी की बात गौर करने लायक है.
ReplyDeleteपहले जहाँ तक मुझे ज्ञात है की पहले शिक्षक कान्सिच्युएनसी विधान पार्षिदीय सीट नही हुआ करती थी ? अ ज शिक्षक का अधिकांश समय अपने गुट के नेता की सीट पक्की करते बीतता है, तो पढ़ाई कास्टर कैसे सुधरे ,छात्र भी काम होते थे ,तब शिक्षक का पेशा सर्व श्रेष्ठ माना जाता था , तब कोर्स भी ज़मीन से जुड़े शिक्शाविज्ञ पाठ क्रम बनाते थे रज्नितिज्ञ नही||
ReplyDeleteaapka sochna bilkul sahi hai kintu kare kya.
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