तालियों में बदलाव ढूंढता समाज

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समाज में अब दौर आलोचना का नहीं, हर व्यक्ति की अंध-प्रशंसा का है। गलत को गलत कहना अब समाज में सबसे बड़ा अपराध बन चुका है। इस व्यंग्य में पढ़िए—कैसे तारीफें सच को निगल रही हैं, और समाज तालियों में सो रहा है, और मुफ्त में पाइए टिप्स इन सबसे निबटने की।


तालियों में बदलाव ढूंढता समाज  

समाज में कुछ गलत देखकर आवाज़ उठाना सबसे बड़ा अपराध बन गया है। जो सवाल पूछे, वह 'नेगेटिव' और जो हर गलती पर मुस्कराए, वह 'समाजसेवी'। यह तारीफों का ऐसा दौर है, जहां आलोचक को दुश्मन और चमचे को चिंतक समझा जाता है। सच अब बिकता नहीं, बस सजाया जाता है—रील, पोस्ट और स्टेटस के चमकदार पैक में।

जिसे समाज में बदलाव लाने की बेचैनी थी, अब वह भी थककर 'फीड फिलर' बन गया है। हर जन्मदिन पर प्रशंसा की औपचारिक पोस्ट, हर अपराधी के लिए "आप प्रेरणास्रोत हैं" वाली लाइनों का झूठा पुलिंदा। अब कोई भ्रष्टाचार करे, पद का दुरुपयोग करे, ग़लत काम करे—तो बस इतना कहिए, "भाई साहब बहुत व्यस्त रहते हैं समाजसेवा में।" कम से कम कोई बुरा तो नहीं मानेगा। सच बोलोगे तो कट जाओगे, तारीफ करोगे तो शेयर हो जाओगे।


तो अब सुधारक मत बनिए, प्रशंसक बन जाइए। 
हर गलती पर मुस्कराइए,  
हर अपराध पर तालियां बजाइए।  
कम से कम समाज में तनाव नहीं रहेगा,  
लोग ब्लॉक भी नहीं करेंगे!

बदलाव की उम्मीद करना अब मूर्खता है—  
क्योंकि समाज अब क्रांतिकारी नहीं रहा, बस “कमेंटकारी” रह गया है।
जहां मुद्दा नहीं, मज़ा चाहिए।  
सच नहीं, सजावट चाहिए।  
और हर वो इंसान जो आईना दिखाए,  
उसे 'फ्रेम से बाहर' कर दिया जाता है।

अब तो यही मंत्र है—“तालियों में सुधार है, सवालों में संकट।”
हां तो बाकी सोचिए मत, बस शेयर कीजिए यह पोस्ट!


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
  

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