चॉक-डस्टर : एक खोते युग की कहानी?

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चॉक-डस्टर: एक खोते युग की कहानी? 


चॉक ने सिखाई थी मेहनत की रीत,
डस्टर ने मिटाए थे गलतियों के गीत।

पुराने सरकारी स्कूल का एक क्लासरूम। दीवारों पर पड़ी दरारें, खिड़कियों पर जमी धूल, और कोनों में चुपचाप पड़े चॉक-डस्टर। बरसों से कक्षा के केंद्र रहे चॉक-डस्टर अब उदास हैं। पहले, उनकी हर सुबह बच्चों की चहचहाहट और शिक्षक के आत्मविश्वास से भरपूर हाथों की गवाही देती थी। पर अब, एक कोने में रखे स्मार्ट बोर्ड ने जैसे उनकी दुनिया छीन ली हो।  


"क्या दिन थे वो!" चॉक ने डस्टर से कहा।  
"मुझे याद है, जब शिक्षक मुझे उठाकर बोर्ड पर पहली लाइन लिखते थे। बच्चे मेरी हर सफेद लकीर को ध्यान से देखते थे। मैं स्याही की तरह नहीं बहता था, न ही बिजली पर निर्भर था। बस शिक्षक के विचार और मेरा साथ, और पूरी कक्षा में ज्ञान फैल जाता था।"  

डस्टर ने सहमति में सिर हिलाया। "और जब मैं तुम्हारे लिखे को मिटाता था, तो बच्चे अगले पाठ के लिए उत्साहित हो जाते थे। मेरा काम छोटे बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाना था। शिक्षक के हर नए पाठ के साथ मैं खुद को कक्षा का हिस्सा महसूस करता था।"  

 
लेकिन समय बदला। नए 'टीएलएम' (टीचिंग लर्निंग मैटेरियल) और स्मार्ट क्लास गैजेट्स ने धीरे-धीरे कक्षा में अपनी जगह बना ली। अब शिक्षक के हाथ में चॉक की जगह रिमोट होता है, और बोर्ड पर लिखाई की जगह एनिमेशन और ग्राफिक्स ने ले ली है। बच्चे अब स्क्रीन पर ध्यान देते हैं, और चॉक-डस्टर एक कोने में पड़े धूल खा रहे हैं।  

चॉक ने एक गहरी सांस ली। "अब मुझे कोई नहीं छूता। शिक्षक मुझे अनदेखा करते हैं।"  
डस्टर ने धीरे से कहा, "मुझे तो लगता है कि मेरी ज़रूरत ही खत्म हो गई है। पहले बच्चे मुझे लेकर खेलते थे, मुझसे सवाल मिटाते थे। अब मैं बस एक कोने में पड़ा रह जाता हूं।"  


चॉक और डस्टर ने अपनी यादें साझा कीं। उन्हें वो दिन याद आए जब बच्चों की कड़ी मेहनत के निशान उनके छोटे-छोटे हाथों पर सफेद चॉक के दाग छोड़ जाते थे। शिक्षक की गुस्से से लिखी रेखाएं, बच्चों के रटे हुए उत्तर, और डस्टर की धूल भरी हरकतें – ये सब अब बस यादें बनकर रह गए।  

लेकिन यह सिर्फ चॉक-डस्टर की नहीं, बल्कि उस युग की कहानी है जो सरलता और सहजता से भरा था। टीएलएम और स्मार्ट क्लास तकनीक ने शिक्षा को आसान और आकर्षक बना दिया है, लेकिन उसके साथ ही उस आत्मीयता को छीन लिया है जो चॉक-डस्टर के साथ जुड़ी थी।  


डस्टर ने आखिरकार कहा, "शायद हमारा समय खत्म हो गया हो, लेकिन क्या हम कभी वापस नहीं आएंगे?"  
चॉक ने मुस्कुराकर कहा, "हो सकता है कि हमें याद किया जाए। हो सकता है कि कभी कोई शिक्षक फिर से हमें उठाए और हमें वही पुराना महत्व दे।"  

क्लासरूम में एक बच्चे की हंसी गूंजी। शिक्षक ने एक पुराना चॉक उठाया और बोर्ड पर कुछ लिखा। चॉक-डस्टर के लिए यह छोटा-सा पल उनकी खोई हुई दुनिया की झलक था। शायद यह संकेत था कि सरलता और परंपरा कभी-कभी आधुनिकता की चमक के पीछे भी जिंदा रहती है।  


चॉक और डस्टर भले ही कोने में पड़े हों, लेकिन उनकी कहानी हमेशा यादों में जिंदा रहेगी – एक युग की निशानी, जिसे स्मार्ट क्लास की चमक भी फीका नहीं कर सकती।

चॉक से जुड़े थे अनगिनत ख्वाब,
डस्टर के संग मिटे थे कई हिसाब।

✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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