आखिर पुरुषों के लिए दिवस का कोई औचित्य है?

0
आखिर पुरुषों के लिए दिवस का कोई औचित्य है? 


महिला दिवस का इतिहास निसंदेह प्रेरणादायक है—यह बराबरी और अधिकारों की लड़ाई की याद दिलाता है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि पुरुषों के लिए दिवस का कोई औचित्य नहीं है? 🤔


पुरुष दिवस का उद्देश्य न तो किसी से तुलना करना है, न ही किसी से 'बराबर' होना। यह उन भूमिकाओं, जिम्मेदारियों और संघर्षों को पहचानने का दिन है, जो पुरुष समाज और परिवार में निभाते हैं। महत्वपूर्ण सवाल है कि पुरुष किसके बराबर होना चाहता है? यह सवाल एक गहरी भ्रांति को उजागर करता है। पुरुष किसी के बराबर नहीं होना चाहता, बल्कि वह चाहता है कि उसकी भावनाओं और अस्तित्व को भी समान रूप से स्वीकारा जाए।  


अपने हर दर्द को छुपा लेते हैं, न अश्क बहाते हैं,
अपने हिस्से के सपनों को, चुपचाप दबा लेते हैं।
यही सवाल कि क्यों दिवस पुरुषों का मनाते हैं,
उसके साये में जो जीते हैं, वे ही समझ पाते हैं।


महिलाओं के संघर्ष का इतिहास हमें प्रेरणा देता है, लेकिन पुरुषों के संघर्ष की गाथाएं अक्सर चुप रहती हैं। क्या एक पिता, जिसने अपने सपनों को अपने बच्चों के भविष्य के लिए कुर्बान किया, उसका संघर्ष कोई महत्व नहीं रखता? क्या एक बेटा, जिसने अपने परिवार के लिए जीवनभर कठिन श्रम किया, उसकी कहानी ध्यान देने योग्य नहीं है?  

पुरुष दिवस उन गुमनाम कहानियों को उजागर करने का दिन है। यह हमें याद दिलाता है कि समाज को सशक्त और संतुलित बनाने के लिए, सभी की भूमिका महत्वपूर्ण है। हम समान नहीं हैं, और यही हमारा सौंदर्य है। जहां स्त्री संवेदनाओं की धारा है, पुरुष स्थिरता का पर्वत है। जहां स्त्री प्रेम का विस्तार है, पुरुष संरक्षण का कवच है।  

तो आइए, पुरुष दिवस को मनाने दें—उन तमाम पुरुषों के लिए जो बिना किसी शिकवे के हर दिन अपना सर्वस्व समर्पित करते हैं। और यह सवाल कि 'पुरुष दिवस क्यों मनाया जाता है?'—इसका उत्तर यही है: क्योंकि हर कहानी की परछाईं को भी उजाला चाहिए।


हर एक दर्द को सीने में जो दबाते हैं,  
वो लोग रात की चादर में मुस्कुराते हैं।  

न पूछिए कि वो किसके बराबर होना चाहें,  
वो हर कदम पे ज़माने को राह दिखाते हैं।  

नहीं ज़रूरत उन्हें शोहरतों की रंगत की,  
वो चुप रहकर भी हर फर्ज़ को निभाते हैं।  

जहां सवाल उठे, क्यों दिवस मनाते हो,  
वहीं सवाल का सच आईना दिखाते हैं।  

जो घर की नींव में अपने ख्वाब रखकर भी,  
हर एक दर औ दीवार के हौसले बनाते हैं।  

समर्पणों के लिए बस यादगार बन जाएं,  
पुरुष दिवस की यही रीत सिखलाते हैं।  

हर एक शेर में उनके ही रंग झलकते हैं,  
शरीके-दर्द है दुनिया, ये ‘प्रवीण’ कहते हैं।


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)