RTI कार्यकर्ताओं पर शिकंजा कसने के बजाय जानकारी को सहजता से उपलब्ध कराने और जनता को सशक्त बनाने की अपनी मूल जिम्मेदारी निभाए राज्य सूचना आयोग
उक्त लिंक में दी खबर में बताया गया राज्य सूचना आयोग अब ऐसे आरटीआई कार्यकर्ताओं की पहचान करने में जुट गया है, जो आयोग के अनुसार, आरटीआई को कमाई का साधन बना रहे हैं। आयोग द्वारा जारी एक सूची में 167 ऐसे कार्यकर्ताओं के नाम शामिल हैं, जिन्होंने 10 से 222 तक आरटीआई आवेदन किए हैं। आयोग इन लोगों की पृष्ठभूमि की जानकारी एकत्र कर रहा है, ताकि वास्तविक सूचना मांगने वाले और आर्थिक लाभ के लिए आरटीआई का दुरुपयोग करने वालों के बीच अंतर स्पष्ट हो सके।
हालांकि मेरे विचार से राज्य सूचना आयोग का दायित्व पारदर्शिता को बढ़ावा देना और नागरिकों को सूचना का अधिकार सुनिश्चित करना है। हालाँकि, हाल ही में आयोग ने 167 आरटीआई कार्यकर्ताओं की पहचान करने का कदम उठाया है, जो बार-बार आरटीआई आवेदन कर रहे हैं। आयोग का मानना है कि कुछ कार्यकर्ता आरटीआई के नाम पर वसूली के कार्य में लिप्त हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह कदम आरटीआई के असल उद्देश्य को प्रभावित कर सकता है?
आयोग का ध्यान असल मुद्दों पर होना चाहिए—जानकारी को सहजता से उपलब्ध कराना और जनता को सशक्त बनाना। आरटीआई कार्यकर्ता, जो बार-बार आवेदन करते हैं, एक प्रकार से उन समस्याओं की ओर इशारा कर रहे हैं जिनमें पारदर्शिता की आवश्यकता है। ऐसे में कार्यकर्ताओं पर नजर रखना या उन्हें चिह्नित करना, आरटीआई के सिद्धांतों के विपरीत प्रतीत होता है।
आयोग को समझना चाहिए कि पारदर्शिता की कमी से असंतोष बढ़ता है। कार्यकर्ताओं को चिह्नित करने की बजाय आयोग को अपनी ऊर्जा सूचना की प्रक्रिया को तेज, सरल, और प्रभावी बनाने में लगानी चाहिए। आरटीआई का असल उद्देश्य एक जवाबदेह शासन प्रणाली का निर्माण है, जिसमें जनता की भागीदारी हो। उम्मीद है कि आयोग इस दिशा में ठोस कदम उठाएगा और सूचना के अधिकार का सम्मान करेगा।