"क्या शिक्षक भी इंसान नहीं? क्या उनकी रुचियों और अधिकारों की न हो पहचान?"

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"क्या शिक्षक भी इंसान नहीं? क्या उनकी रुचियों और अधिकारों की न हो पहचान?"


समाज कहता आदर्श बने रहें, ये कैसा दस्तूर है,
पर शिक्षक के दिल में भी कुछ सपनों का नूर है।
गरिमा के साथ अपनी रुचियाँ बाँटे हर मोड़ पर,
ताकि शिक्षा और मानवता की चमक रहे भरपूर

आज का युग सोशल मीडिया का युग है, जिसमें हर व्यक्ति अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है, और शिक्षक भी इससे अछूते नहीं हैं। शिक्षकों के सोशल मीडिया पर गाने, नृत्य और हास्य-व्यंग्य से भरे वीडियो अक्सर देखने को मिलते हैं, जो अब विवाद का कारण बनते जा रहे हैं। इस विषय पर समाज में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हैं। एक ओर कुछ लोग मानते हैं कि शिक्षक को एक आदर्श के रूप में देखा जाना चाहिए और उनकी गरिमा को बनाए रखना आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर कुछ का मानना है कि शिक्षक भी आम इंसान हैं और उन्हें अपनी व्यक्तिगत रुचियों को सोशल मीडिया पर साझा करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए।

एक दृष्टिकोण के अनुसार, शिक्षक का प्रत्येक कार्य गरिमा का प्रतीक होना चाहिए। समाज में शिक्षक का स्थान विशेष होता है। वे न केवल ज्ञान का स्रोत हैं, बल्कि समाज में एक प्रेरणा भी हैं। उनके कार्य, उनके विचार और उनका व्यवहार सभी कुछ छात्रों और समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत करते हैं। इसलिए, यह अपेक्षा की जाती है कि वे हमेशा एक गरिमामय रूप में ही समाज के सामने आएं। सोशल मीडिया पर उनके द्वारा साझा किए गए वीडियो और अन्य सामग्री उनके आचरण को प्रतिबिंबित करते हैं, जो समाज में उनकी छवि को सकारात्मक या नकारात्मक रूप में प्रभावित कर सकती है।


हालाँकि, यह ध्यान रखना भी उतना ही जरूरी है कि शिक्षक भी मानव हैं, उनकी अपनी व्यक्तिगत रुचियाँ और इच्छाएँ होती हैं। किसी एक पेशे का चुनाव किसी व्यक्ति की सभी इच्छाओं और भावनाओं को समाप्त नहीं कर देता। शिक्षक के जीवन में भी मनोरंजन, रुचि और स्वाभाविक अभिव्यक्ति का स्थान होता है। हर इंसान को अपनी भावनाओं और रुचियों को व्यक्त करने का अधिकार है, और शिक्षक भी इससे भिन्न नहीं हैं। यह आवश्यक है कि समाज शिक्षकों को भी एक सामान्य जीवन जीने की छूट दे, जहाँ वे अपने व्यक्तिगत जीवन का भी आनंद ले सकें।

संतुलित दृष्टिकोण का समर्थन करने वाले लोग यह तर्क देते हैं कि शिक्षक का व्यवहार एक आदर्श जरूर होना चाहिए, लेकिन इसके साथ-साथ उन्हें अपनी रुचियों को गरिमा के दायरे में रहते हुए व्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। यह संतुलन उनकी जिम्मेदारियों और अधिकारों के बीच सही सामंजस्य बनाता है। जब शिक्षक अपनी रुचियों को गरिमा के साथ प्रस्तुत करते हैं, तो वे छात्रों के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि कैसे संतुलित और स्वस्थ जीवन जीया जा सकता है। यह एक महत्वपूर्ण संदेश है, जो बच्चों को भी यह समझने में मदद करता है कि जिम्मेदारियों के साथ-साथ मनोरंजन का भी महत्व है।

प्रशासनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो विभाग के पास शिक्षकों के सोशल मीडिया व्यवहार के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं होते। विवाद की स्थिति में शिक्षकों पर कठोर कार्यवाही करने का निर्णय ले लिया जाता है, जो कि केवल सस्पेंशन या अनुशासनात्मक कार्रवाई तक ही सीमित होता है। हालांकि, यह कार्यवाही अधिकांशतः औपचारिकता मात्र बनकर रह जाती है और किसी नीति पर आधारित नहीं होती। इसके विपरीत, प्रशासन को शिक्षकों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए, जिसमें गरिमा और स्वतंत्रता के संतुलन का समावेश हो, ताकि शिक्षकों को भी अपनी रुचियों का सम्मानजनक ढंग से प्रदर्शन करने का अवसर मिले।

न शिक्षक किसी मंदिर का पत्थर है, न कोई मूरत,  
वो भी इंसान है, उसकी भी है चाहतें कुछ हसरत।
गरिमा से सजी हुई है उसकी जिंदगी की किताब,
शिक्षा का वो दीप, और रुचियों का ख्वाब।


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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