गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय ।

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दरअसल, गुरु का अर्थ ही होता है-बडा, यानी जो हर मायने में बडा है। और इसे और ज्यादा गहरे अर्थो में कहें, तो गुरु का अर्थ है, जो हमें गुर या कोई गुण सिखाते हैं।  प्रस्तुत है दूसरी कड़ी.....





गुरु  की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय ।
कहैं  कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय ।।

व्यवहार में भी साधु (शिष्य) को गुरु के आज्ञानुसार ही आना जाना चाहिए। सदगुरु का मानना है कि सच्चा संत वही है, जो जन्म और मरण से पार होने के लिए साधना करता है।




गुरु पारस को अन्तरो, जानत है सब संत ।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत ।।

गुरु और पारस पत्थर में अंतर है, यह सब संत महात्मा जानते हैं। हम सब जानते हैं कि पारस पत्थर तो लोहा को ही सोना बनाता है; जबकि गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेते हैं।



आजकल 'कबीर' पर कुछ अध्ययन मनन चल रहा है और उसका परिणाम है यह पोस्ट और आगे "कबीरवाणी" और "गुरु" लेबल के अंतर्गत आगे आने वाली क्रमिक पोस्ट्स। समय के प्रवाह में शायद इसी बहाने इनपर कुछ नया विमर्श मिल सके इस आशा के साथ "गुरु" केंद्रित कबीरवाणी आगे भी क्रमशः प्रस्तुत की जायेगी। कबीर की गुरु भक्ति उस चरम बिदु पर थी जहाँ उन्होंने कहा है-
"गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय।"

क्रमशः  जारी ...

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16Comments
  1. सच है, न जाने कितने लोहा जैसे व्यक्तियों को पारस होते देखा है, गुरु की कृपा से।

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  2. बिन गुरु लहै न ज्ञान,जौ किन होइ बिरंचि सम!

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  3. बिलकुल सही कहा आपने गुरदेव

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  4. aapaka aabhar suder abhiwyakti ke liye

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  5. लेकिन शहरों के स्कूलों मे आज गुरू लोगों की महत्ता कोई ख़ास नहीं रह गई है

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  6. गुरू की खोज बड़ी बात है। सत गुरू का मिलना बड़ी बात है। गुरू मिल जाने पर भी कबीर दास कहते हैं....
    राम-नाम कै पटतरै, देबे कौं कछु नाहिं
    क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं

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  7. इधर भी इस सार्थक प्रविष्टि के अगले एपीसोड्स का इंतज़ार , क्रमशः जारी...

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  8. baat guru-mahima ki hai.....so prarambhik-guruji ko

    abhar-cha-pranam.

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  9. @संतोष त्रिवेदी
    फूलइ फरइ न बेत जदपि सुधा बरषहिं जलद।
    मूरुख हृदयँ न चेत जौं गुर मिलहिं बिरंचि सम॥

    (बादल अमृत-सा जल बरसाते हैं तो भी बेंत फूलता-फलता नहीं। ठीक इसी प्रकार ब्रह्मा के समान ज्ञानी गुरु भी मिलें तो भी मूर्ख के हृदय में ज्ञान नहीं होता।)



    @काजल कुमार
    जानकारी के ठेलम ठेल युग में क्या गुरु क्या शिक्षक??
    क्या शहर ...क्या गाँव ??

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  10. @देवेन्द्र पाण्डेय
    सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड।
    तीन लोक न पाइए, अरु इकइस ब्रह्मंड।।

    (सात द्वीप, नौ खण्ड, तीन लोक, इक्कीस ब्रह्मांडों में सदगुरु के समान हितकारी किसी को नहीं पा सकते )

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  11. आप सब के अंदर के गुरुत्व को हमारा भी नमन !

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  12. भाई जी ,आज के अति आधुनिक माहौल में गुरू और शिष्य दोनों अपने-अपने कर्तव्यों से विमुख हो गए हैं!आपने कबीर के बहाने , क्षीण हो चुकी गुरू -शिष्य परंपरा को फिर रेखांकित करके बहुत ही अच्छा प्रयास किया है!आशा है आप कबीर के क्रांतिकारी सामाजिक विचारों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करके एक नया आयाम देंगे!

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  13. यह तो हमने मिडिल में पढा था मास्साब:)

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  14. kakar pathar jod kar masjid lai banaye ta char mulla bang de kiya bahra hua khuday

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  15. jis guru se bhrm na mite ,sanshay chitt n jay
    so GURU jhutha janiye tyagat der n lay //

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