दो लोग दो बातें
मशहूर विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन ने सलाह दी है कि हाईकोर्ट के फैसले को मानकर मामले को खत्म किया जाए। उन्होंने कहा कि "स्ट्रक्चर बड़ा नहीं होता, बड़ी चीज इंसान और उनके ताल्लुकात होते हैं। 60 साल से कड़वाहट चली आ रही है इसे खत्म होना चाहिए। अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिमों के पक्ष में जाता है तो भी बात खत्म नहीं होगी। 1985 में शाह बानो मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुस्लिमों ने नहीं माना और खूब धूम मचाई। हिंदू यह भी कह सकते हैं कि मुसलमानों ने हाईकोर्ट का फैसला नहीं माना तो हम सुप्रीम कोर्ट की बात क्यों मानें। समाधान यह है कि जो है उसे मान लो।"
वहीं अब तक फैसले से पहले मुंह खोलने से बच रहे और अब तक हाईकोर्ट के फैसले को मानने की सलाह देने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव अचानक तड़प उठे कि, "उच्च न्यायालय के फैसले से मुस्लिम खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं"।
अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को लेकर जब आम जनता के स्तर पर संयम और सतर्कता का परिचय दिया जा रहा हो; तब यह जानना कितना दुखद और आश्चर्यजनक है कि राजनेता आउट ऑफ़ कंट्रोल हुए जा रहे हैं। मुलायम सिंह यादव का यह बयान आग में पेट्रोल छिड़कने जैसा ही है| अगली कड़ी में रामविलास पासवान ने भी इस नतीजे पर पहुंचने में देर नहीं लगाई कि फैसला अल्पसंख्यक मुस्लिम सम्प्रदाय को निराश करने वाला है।
मौजूदा माहौल में ये सर्वथा गैरजरूरी और बेबुनियाद बयान हैं। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि आगे आगे कुछ और नेता भी उनका अनुसरण करते दिखेंगे। इससे यही स्पष्ट हो रहा है कि कैसे हमारे नेता अपने छुद्र राजनीतिक हितों औए उद्देश्यों की पूर्ति के चक्कर में जानबूझकर सामजिक सदभाव के लिए खतरा पैदा करने का काम करते हैं।
आखिर ऐसे कुत्सित सोंच वाले नेताओं पर कौन अंकुश लगाएगा जो समाज में विषवमन के लिए तैयार हैं? यह सही है कि हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने की स्पष्ट घोषणा हो चुकी है, फिर भी गैर जरुरी रूप से यह माहौल बनाने की कोशिश हो रही है कि जैसे मामले का अंतिम निर्णय आ चुका है। ऐसी सस्ती हरकत उन उम्मीदों को धुल-धूसरित करने के लिए पर्याप्त है जिसके अधीन यह माना जा रहा है कि बदली हुई आज की परिस्थिति में अयोध्या विवाद को बातचीत से हल करने के नए सिरे से प्रयास परवान चढ़ सकते हैं। जाहिर है कि कहीं न कहीं यह कोशिश जान-बूझ कर हो रही है कि सदभाव का वह माहौल ना पैदा होने पाए जिससे दोनों पक्ष बातचीत के जरिए विवाद का हल निकालने के लिए आगे आ सकें।
गौर-तलब यह है कि जो बात इस मामले से जुड़े संगठनों और धर्मगुरुओं ने भी नहीं कही वही यदि नेता कहने लगे हैं तो इसका सीधा मतलब है कि वे खुद को समाज का ठेकेदार साबित करना चाह रहे हैं। ऐसी गंदी चाहत के पीछे वोट बैंक की राजनीति मजबूत करने की पुरानी कोशिश को नए अंदाज में किये जाने को साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है। जाहिर है ऐसी नकारात्मक कोशिशें अन्य नेताओं को भी उकसाने वाली साबित हो सकती हैं। कोई बहुत बड़ा आश्चर्य नहीं कि कल को अन्य नेतागण इस अंधी दौड़ में एक-दूसरे से होड़ लेते हुए नजर ना आएं।
जरुरी है कि सभी संगठन भी संयम का परिचय दें, क्योंकि उच्च न्यायालय के फैसले से उनका दावा मजबूत होने के या कमजोर होने के बावजूद यह बिलकुल स्पष्ट है कि हाल-फिलहाल यथास्थिति में बदलाव के कहीं कोई आसार नहीं हैं। यथास्थिति में परिवर्तन तभी हो सकता है जब या तो उच्चतम न्यायालय का फैसला उनके पक्ष में आए अथवा आम सहमति से विवाद का निपटारा हो। यह सभी समुदायों के लिए एक महान अवसर है कि वे एकजुट होकर इस महत्वपूर्ण फैसले को एकता कायम करने के एक ऐतिहासिक अवसर के रूप में बदल दें|
सामान्य रूप से मैं ब्लॉग पर पोस्ट आने के दो दिन तक कमेन्ट पर नियंत्रण नहीं रखता था|.....लेकिन विकृत और मानसिक बीमार व्यक्तिओं से आप सभी ब्लॉगवासिओं को बचाने के लिए इस पोस्ट पर नियंत्रण कर रहा हूँ|
इसे पढ़ने के बाद आज भोर में अपना लिखा हुआ सोच रहा हूँ
ReplyDeletea href="http://girijeshrao.blogspot.com/2010/10/blog-post.html">"अथ सर्वधन क्रीड़ा"/a
मास्साब,ई ससुरी 'राजनीति' का 'गुण' हवे,कि अपने मन-माफ़िक चीज़ ज़रूर निकाल लेक चही...
ReplyDeleteऐसे लोग ही हैं जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी 'स्वाहा' कर दी,इस इंतज़ार में कि कब वे हमारे भाग्य-विधाता बनें,फिर इसके लिए किसी का खून बहे,भगवन को बेचना पड़े या अपनी संतानों का सौदा करना पड़े ,उनके लिए यही राजनीतिक-धर्म है.धीरे-धीरे देखते रहें,सभी नेता इस मुद्दे कि मलाई चाटने को कूद पड़ेंगे!
यह हमारे उपर है कि हम इससे कितना बचते हैं....
मुसलमानों के अधिकतर धर्म गुरु अयोध्या का फैसला आने के बाद चुप है , या खुश हैं कि अमन शांति काएम है. शिया धर्मगुरु के करीबी रिश्तेदार जनाब शम्सी साहब ने तो १५ लाख का चंदा भी दे डाला राम मंदिर बनाए जाने के लिए.
ReplyDeletehttp://aqyouth.blogspot.com
..सुन्दर संकलित विचार प्रस्तुति -आभार प्रवीण जी
ReplyDeleteतरस तो जनता की अक्ल पर ही आता है कि मुलायम सिंह ऐसा कहकर भी हिन्दू वोट पा जाते हैं ।
ReplyDeleteमधुमक्खी ढूढ़े सुमन को, मक्खी ढूढ़े घाव,
ReplyDeleteअपनी अपनी प्रकृति है, अपना अपना चाव।
मा'साब,
ReplyDeleteसहमत हूँ!
मुलायम और सख्त कोई भी हो, सभी को आपकी प्राईमरी की कक्षा में दाखिला ले ही लेना चाहिए!
दरअसल कुछ लोग बड़े होना चाहते ही नहीं!
आशीष
--
प्रायश्चित
प्रट्रोल को पेट्रोल कर दीजिए।
ReplyDeleteऊपर का कोड भी काम नहीं कर रहा।
सबको सन्मति दे भगवान.
ReplyDeleteआपके विचारों से शत प्रतिशत सहमत।
ReplyDeleteमुलायम सिंहजी के बयान से हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ।
पहली बार आपका ब्लॉग पढ रहा हूँ । अच्छा लगा।
फ़िर आएंगे।
शुभकामाएं
जी विश्वनाथ
हिन्दु हो या मुस्लिम क्यो ना मिल कर सब से पहले इन आग लगाऊ नेताओ क ही पता साफ़ करे, ओर मिल जुल कर अपने इस देश को आगे ले जाये, अब जनता समझ दारी दिखाये ओर इन्हे अगली बार वोट तो क्या जुते भी ना दिखाये, यह सारे के सारे बुरी तरह से हारे जिस से इन कुत्तो की जमानत ही रद्द हो जाये, क्यो नही यह देशवासियो को आराम से रहने देना चाहते
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
नाम मुलायम और शब्द कठोर :)
ReplyDeleteसार्थक चिंतन ....आम जनता विवाद नहीं चाहती .. लेकिन राजनीति कि त्रासदी झेलनी पड़ती है ...वोट देने के बजाये ऐसे नेताओं को नेताओं की लिस्ट से ही हटा देना चाहिए
ReplyDeleteसच्चा आलेख |
ReplyDeleteआम जनता क्या चाहती है उसने बता दिया है |
ॐ शांति शांति शांति :
कुछ दोस्तों ने पूछा था कि इस फैसले पर आपने पोस्ट नहीं लिखी। दरअसल मुझे मालूम था इस तरह के बयान आने वाले हैं। बरसात होने पर मेंढ़क नहीं टर्रायेंगे तो कौन टर्रायेगा। मुझे पता था कि जो शांति कायम है वो उपरी तौर पर दिखाई दे रही है। मैं अगर ये बात लिखता तो माहौल को बिगाड़ने वाला कहलाता। खैर अभी तो आगाज है आगे-आगे देखिए होता है क्या। अभी तो कुछ और बयान आने वाले हैं खासकर ऐसे सो कॉल्ड धर्मनिरपेक्ष नेताओं के, लोगो के, और कट्टरपंथियों के।
ReplyDeleteआपकी हर बात सही पाता हूँ .........................वैसे ' मास्साब ' तो लाखों में पाए जाते हैं पर आपकी बात अपने खुद के तर्कों पर सही पाता हूँ .मेरा बस चलता तो आप जैसे ' प्राईमरी के मास्टर को देश का ' मास्टर जनरल ' बना देता .
ReplyDeleteआपके विचारों से शत प्रतिशत सहमत।
ReplyDeleteसही विचार हैं आपके। धन्यवाद।
ReplyDelete