नीचे टंगा लिंक श्यामपट में चिपका है अपनी पहली ब्लॉग पोस्ट का ! जिसे देखकर अपने स्व-प्रेरित मानसिक-ब्लॉग-व्रत को तोड़ने का मन बना |
आवश्यकता आविष्कार की जननी है | बगैर ज़रूरत के किसी चीज़ का जन्म नहीं हो सकता है | हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया मे इतनी तरक्की के बावजूद पेशे से एक प्राइमरी के मास्टर का इस क्षेत्र मे उतरना कोई बड़ा आश्चर्य तो नहीं लेकिन एक बड़ा कदम माने जाने की हिमाकत तो मै कर ही सकता ही हूँ | पेशे से प्राइमरी का मास्टर होने का ऩफा नुकसान इस ब्लॉग के शुरू होने का विशुद्ध कारण है |
आज अपने इन शब्दों को आंकता हूँ ...तो नहीं लगता कि एज सच कोई बड़ा कदम था ? जिसे मै आज समझ पा रहा था | हालांकि इस दौरान हुए कुछ सकारात्मक परिवर्तनों को पूरी तरह नजरंदाज कर पाऊँ .......इतनी साफगोई कहाँ से लाऊँ ?
ब्लॉग्गिंग से क्या हो सकता है ? किस तरह का हथियार है | वर्चुअल दुनिया में कितनी धमक पैदा की जा सकती है ....और जमीनी स्तर क्या कोई नया परिवर्तन का वाहक बन सकता है "ब्लॉग" ?
आजकल अदृश्य सा रहते हुए कुछ इन्हीं जद्दोजहद से दो चार हूँ | अपनी क्षमताओं के पुनः -आंकलन में जुटा हुआ सा दिखता हूँ ...खुद को | ....पर ना जाने क्यों एक वैचारिक विखराव की समझ अपने अन्दर पाने लगा हूँ | यह वैचारिक बिखराव कहाँ और किस तरफ मुझे ले जाएगा कह नहीं सकता ?
क्या कोई रास्ता आप सुझा सकते हैं.....?
वैचारिक बिखराव होने की समझ भी तो एक बड़ी उपलब्धि है। समेटिये अब अपने को।
ReplyDeleteजो भी मनन चिन्तन करना हो, करके जल्दी लौटना है..यह उद्देश्य बना लिजिये. आराम मिलेगा. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteजब आप ब्लॉग लिखते हैं तो अपनी सम्वेदनाओं को खाद पानी देते हैं। उन्हें फलते फूलते रहना चाहिए। हिन्दी मंच के लिए यह और भी सच है क्यों कि ब्लॉग से अर्थोपार्जन या बड़ी धमक पैदा करने की सम्भावना या तो नहीं है या अत्यल्प है।
ReplyDelete@ वैचारिक बिखराव - अपनी राह स्वयं बनानी होती है। दुनिया तो बस...
कहते हैं जानी
दुनिया है फानी
पानी पे लिक्खी लिखाई
है सबकी देखी
है सबकी जानी
हाथ किसी के न आई
सुख दुःखे समे कृत्वा, ......
ReplyDeleteततो युद्धाय युज्जस्व.....
:)
ReplyDeleteआपने कभी हमे कहा था कि ऐसी चीजो का आना और जाना बहुत जरूरी है और शायद इसे ही जीवन कहते है..
करो जी इंकम गहरी
ReplyDeleteआया है ब्लॉग प्रहरी
एक बार संगीतकार स्वर्गीय नौशाद साहब से किसी ने पूछा था कि संगीत की सार्थकता क्या है?
ReplyDeleteउनका जवाब था कि क्या आपने कभी सुना है कि संगीतकार चोरी-डकैती-उचकई करते पकड़े जाते हैं ! संगीत अच्छा इन्सान बनने में मदद करता है.
ब्लागिंग से भाड़ भले ही न फोड़ा जा सके लेकिन सवाल तो खड़े करती ही है ब्लागिंग. जिन समाजें में प्रश्न नहीं किये जाते वे समाज तालाबों में बदल जाते हैं, न कि नदी में.
बहुत ही अच्छा विचार है अच्छी प्रस्तुती के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteप्रवीण जी,
ReplyDeleteआप शायद विश्वास नहीं करेंगे कि मैं आपके ब्लॉग के बारे में लगभग तीन साल से जानती हूँ, खुद का ब्लॉग शुरू करने के दो साल पहले से. उस समय आई.ए.एस. की तैयारी करने में व्यस्त होने के कारण पढ़ नहीं पाती थी, लेकिन मैं आपके बारे में जानकर बहुत-बहुत प्रभावित हुयी थी.
निस्सन्देह आपका ब्लॉग शुरू करना और शैक्षिक और शैक्षणिक सुधार जैसे विषयों पर लेखनी चलाना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है...इसे मैंने तब अनुभव किया था, जब ब्लॉगिंग की दुनिया के बारे में बहुत कम जानती थी.
ब्लॉग ज़मीनी स्तर पर कोई बदलाव ला सकता है या नहीं इस विषय में मैं कई बार गम्भीरता से ्विचार कर चुकी हूँ. मुझे तस्वीर न बहुत आशाजनक लगती है और न ही निराशाजनक...पर इतना तो है कि आप भविष्य के कर्णधारों से जुड़े हुये हैं...उन्हें टेक्नोलॉजी के बारे में बताइये...कौन सी बातें जो आने वाले दिनों में महत्त्वपूर्ण होती जायेंगी, उनके बारे में उनके नन्हे मन में बीज डालने की कोशिश कीजिये...बहुत सी ऐसी बातें हैं जो आप ज़मीनी स्तर पर कर सकते हैं...ब्लॉग को एक वैकल्पिक रूप में रखकर.
ब्लॉग सीधे-सीधे कोई भला कर सकता हो या नहीं...पर टेक्नोलॉजी के प्रसार को रोचक बनाता है...विचारों के आदान-प्रदान से सोचने-समझने की क्षमता बढ़ती है...
सोचिये कितना अच्छा हो कि बहुत से अलग-अलग जिलों के प्राइमरी और जूनियर के मास्टरों के कम्युनिटी ब्लॉग हों और वो बच्चों के शिक्षण और व्यक्तित्व के विकास के बारे में विचार-विनिमय करें...समस्या यह है कि आप अपने क्षेत्र में अपवाद बन गये हैं...और मास्टरों को इससे जोदअने की कोशिश कीजिये...
पता नहीं...मैं आपकी बात को समझ पायी हूँ या नहीं...पर अच्छे लोग पीछे हटते हैं तो उनका स्थान लेने दूसरे आ जाते हैं, जो शायद उतने गम्भीर न हों किसी मसले पर...इसलिये अच्छे लोगों को अपनी जगह डटे रहना चाहिये.
कौन कहता है आसमां मे सूराख हो नहीं सकता
ReplyDeleteएक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो!!
मैं तो बस यही सोचकर अपना काम कर रहा हूँ। बाक़ी जो होना है सो होगा।
ध्यान लगा कर बिना स्वार्थ जो भी अच्छा कर्म करेगे उस का फ़ल भी अच्छा ही होगा, यही हाल ब्लांग का है बस टिपण्णियो ओर आमदनी की तरफ़ ध्यान मत दे....
ReplyDelete@ मनोज कुमार
ReplyDeleteइसका मतलब यह तो नहीं
कि पत्थर उछाल उछाल कर
कर लें अपनी तबीयत खराब
जब पत्थर खत्म हो जाएं
तब क्या उछालें ब्लॉग पर
उछालें पोस्ट या टिप्पणियां।
मैंने अपने एक पोस्ट में लिखा था कि एक ब्लोग्गर के विचार टिपण्णी बटोरने के अलावा कुछ नहीं कर सकते :) जमीनी स्तर तो यही है.
ReplyDelete@ अनूप शुक्ल
ReplyDeleteश्रीमन जद्दोजहद जारी है !
@उड़नतश्तरी
सुझाव पर चिंतन और मनन जारी !
@गिरिजेश भैया !
ReplyDelete@ वैचारिक बिखराव - " अपनी राह स्वयं बनानी होती है "
शायद इसके आलावा कोई और चारा नहीं ........पर पता नहीं क्यों जितना दबाओ ....थोड़े थोड़े दिनों में और उबाल आने लगता है !
@@पंकज उपाध्याय
पास में जाओ तो पैमाने बदल जाते हैं ;
दूर जाओ तो हर अफसाने बदल जाते हैं|
@काजल कुमार
सहमत हूँ ! - "उत्तर की अपेक्षा प्रश्न करना अधिक महत्व रखता है।"
वैसे भी सत्य की खोज में प्रश्नों का ही महत्त्व माना जाना चाहिए !
@मुक्ति
ReplyDeleteक्या कहूँ ? तारीफ़ कुछ ज्यादा नहीं हो गयी?
दरअसल इन्ही वजहों से तो मानसिक उलझाने बढ़ने लगती है ; जिस व्यवस्था में काम कर रहे हैं .....वह "जबानी आदर्श ...और बेईमान हकीकत" की नाव है |
पता नहीं ....कैसे और कितने दिन सवार रहूंगा ?
हाँ पीछे हटने का प्रश्न नहीं है .....बस ट्रिग्गर पॉइंट में बदलाव की गुंजाइश टटोलने की जद्दोजहद है ......और शायद यह जारी भी रहे ?
चलते चलते एक मौज :-)
ज़रा मेरी सबसे पहली पोस्ट पर जाइए ....टिपियाइये भी |
फिर जोड़ कर बताइये .....कित्ते साल ब्लॉग-बुढाए हैं हम ?
बज्ज पर प्राप्त HIMANSHU MOHAN जी की टिप्पणी को चिपकाने का लोभ रोक नहीं पा रहा हूँ |
ReplyDeleteप्रवीण जी!
जैसे जैसे समझ आती जाती है, बोलती बन्द होती जाती है। फिर मन्थन होता है। फिर बोलते हैं, फिर और बड़ी चुप लगती है। फिर परिपक्वता आती है, तब पता चलता है कि हम कुछ नया रच नहीं रहे, हममें कुछ क्रिएट करने की क्षमता है ही नहीं। सब कुछ रचने वाला एक महान सर्जक है, हम तो केवल कभी-कभार उसकी बरसाई एक-आध बूँद पा कर धन्य भी हो जाते हैं और इतराने भी लगते हैं।
यहाँ से चुप टूटने का, अभिमान के रिस जाने का सिलसिला शुरू होता है और फिर यह संस्कारों पर और व्यक्ति पर निर्भर होता है कि वह आगे किस दिशा में जाता है। वैसे इसके बाद जो मुखरता आती है, वह फ़कीरों वाली होती है, जिससे अपना दु:ख कम हो - राहत मिले मगर दूसरों को सुख ही मिले। कभी सुख मिले तो दोनों हाथ बाँट डालें -दूसरों को सुख ही मिले। फिर पता चलता है कि दूसरा तो कोई है ही नहीं।
जो कुछ है - सो मैं हूँ - या मैं भी नहीं - 'वो' है।
मगर यह इशारा और गुम करने के लिए नहीं - इसलिए है कि इस प्रक्रिया से आप स्वयं गुज़र कर देखें !
इस राह पे चलना भी ख़ुद हासिले-सफ़र है
मंज़िल क़रीब है मगर दुश्वार रहगुज़र है |
अब देखिए न, आप को इशारा देने आया तो लगे हाथ शे'र कह गया - और मुझे ख़ुद अच्छा लग रहा है ये शे'र, शायद रख ही लूँ 'उसका' आशीष समझ कर।
@प्रवीण पाण्डेय
ReplyDeleteसुख॰॰दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
तस्मात् युद्धस्व कौन्तेय नैवं पापमवाप्स्यसि।।
इस गूढ दर्शन को पंo भवानी प्रसाद मिश्र ने अपने सहज सरल अन्दाज में किस तरह व्यक्त किया है॰॰॰
जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,
इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है,
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,
बड़े सुख आ जाएं घर में
तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं ।
इन्हें जोश दिया जाय प्रभु !
ReplyDeleteअच्छे लोगों को अपनी जगह डटे रहना चाहिये.
ReplyDelete[साभार मुक्ति जी]
---
ज़मीनी स्तर का मालूम नहीं हाँ ,यहाँ आना जाना वैचारिक जागरूकता बनाये रखता है.
बहुत कुछ नया पुराना जानने ,सोचने समझने के मौके देता है.
--- यहाँ अपना रास्ता खुद बनाते हुए चलना होता है...नहीं तो सामने -या तो मैदान है या फ़िर कुआँ या खाई..
****आप के लेख हमेशा से पसंद हैं.लिखते रहीये चाहे रुक रुक कर..
कौन कहता है कि परिवर्तन नहीं होगा
ReplyDeleteइतिहास के पन्नों में लिखना ही होगा
बातों से नहीं, कर्म से नाद होगा
मैदान में अब संग्राम असली आजादी का होगा
प्रवीण जी, पूरी ईमानदारी और निष्ठा से किया गया प्रत्येक कार्य परिणाम अवश्य लाता है। हाँ, उसमें समय कितना लगेगा, यह कहना कठिन होता है।
ReplyDelete.
ReplyDeleteकभी कभी विराम देकर अपने लिखे का तटस्थ भाव से पुनर्वलोकन आवश्यक है ।
तब आप स्वयँ ही अपने मार्गदर्शक होते हैं ।
आपका तकनीकी ज्ञान और सहज लेखन ब्लॉगजगत में आपकी उपस्थिति को अनिवार्य बनाता है ।
भावी पीढ़ी को भविष्य और आशा की राह दिखाने वाले पुरुष के लिये इस तरह के विषाद भाव उचित नहीं !
ब्लॉग़ की रचनाओं को पढ़कर आपके मन में कुछ ना कुछ भाव तो जागेंगे ही, चाहे वह आलोचना हो या तारीफ़ या फ़िर एक समालोचना, तो फ़िर देर किस बात की,......लिख डालिए यहां अपने विचार टिप्पणी के रुप मे। आपकी टिप्पणी का सदा स्वागत है।
ReplyDeleteधन्यवाद!
Any clause / condition for approval of comments is nowhere visible on this page.. It certainly is unfair on part of whosoever caring to put a comment here. Is n't it ?
@डा. अमर कुमार
ReplyDeleteहाँ सच है ! .....अब तक इस विषय/ दिशा में नहीं सोचा था | ........जल्दी ही कुछ बैनर जैसा टाँगने की कोशिश करूँगा |
हालांकि आज/अब तक किसी ब्लॉग पाठक की कोई टिप्पणी ना रोकी गयी है....और ना ही डिलीट की गयी है | सामान्य रूप से पोस्ट छपने के 48 घंटे तक टिप्पणी त्वरित प्रकाशित हो जाती हैं ...उसके बाद माडरेसन लागू होता है |
...... पर आपसे सहमत हूँ टिप्पणी करने से पहले टिप्पणीकर्ता को नियम अथवा शर्तें पता होनी चाहिए |(....आखिर इतना हक़ तो बनता ही है|)