देश में एक पाठक्रम लागू करने के अभियान को जोर का झटका

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देश में एक पाठक्रम लागू करने के मानव संसाधन विकास मंत्रालय व नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क (NCF-2005) के अभियान को जोर का झटका लगा है। राष्ट्रीय पाठक्रम के तहत पहले चरण में एनसीईआरटी ने विज्ञान, गणित और हिंदी की किताबें तैयार कीं लेकिन उसकी विषयवस्तु और भाषा को लेकर विवाद खड़ हो गया है। सरकार के सभी बदलाव पहले सीबीएसई स्कूलों में लागू होते हैं लेकिन इस बार मामला उलटा नजर आ रहा है। सीबीएसई स्कूलों ने एनसीईआरटी की नई किताबें पढ़ने से मना कर दिया है।
(प्रस्तुत समाचार साभार : अमर उजाला, कानपुर  )

अकेले इलाहाबाद क्षेत्रीय कार्यालय से जुड़े  466 स्कूलों के विज्ञान , गणित  और हिंदी शिक्षकों ने इन पुस्तकों  में बिंदुवार खामियां गिनाई हैं। सीबीएसई के 105 मास्टर ट्रेनर्स  ने बोर्ड की पाठ्यक्रम  समिति को किताब के पन्नों के साथ अपनी आपत्तियां भेजी हैं। उनका कहना है कि विज्ञान , गणित  में 35 फीसदी से ज्यादा हिस्सा आईआईटी स्तर का है और उसकी शब्दावली बहुत  कठिन और उदासीन  है जो विद्यार्थी पढ़ना नहीं चाहेंगे।

यूपी बोर्ड के मास्टर ट्रेनर्स  ने किताबों की विषयवस्तु और शब्दों के चयन पर आपत्ति की है। उनका कहना है कि सरकार और नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क (NCF-2005) ने पाठ्यक्रम  सरल और रुचिकर बनाने को कहा था, एनसीईआरटी की पहले की किताबों में ऐसा होता भी था , लेकिन इस बार लेखन या संपादन के स्तर पर भारी गड़बड़ियां  हैं। विज्ञान  में रोचकता एकदम गायब है और जो टॉपिक प्रतियोगी परीक्षाओं में नहीं पूछे जाते, उन्हें ज्यादा तवज्जो दी गई है।

यूपी बोर्ड पाठ्यक्रम  समिति में रह चुके डॉ. अर्जुनदास, डॉ. प्रेमप्रकाश, देवधर त्रिपाठी, बीके अवस्थी ने नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क (NCF-2005), मानव संसाधन विकास मंत्री और एनसीईआरटी की पाठ्यक्रम समिति को लिखकर भेज दिया है कि 9वीं से 12वीं के लिए उनका कोर्स किसी भी तरह छात्रों के लिए फिट नहीं है। सीबीएसई के विषय विशेषज्ञ पैनल में तीन साल से नामित सुधा बरनवाल की टिप्पणी है कि संदर्भ पुस्तकों के बिना छात्र विषय-वस्तु  को समझ नहीं पाएंगे।

कई शिक्षकों ने बताया कि राष्ट्रीय पाठक्रम की किताबें तैयार करने से पहले न तो शोध किया गया, न ही क्षेत्रीय विषय विशेषज्ञों के साथ बैठक। उनका कहना है कि सीबीएसई ने जबरिया किताबें लागू कराईं तो भी क्लास में दूसरी पुस्तकों से ही पढ़ाई  कराएंगे।

क्या    है    परेशानी?
     
  • परिभाषा, सूत्र और संदर्भों में जो शब्दावली इस्तेमाल की गई है, वह शिक्षकों की समझ से भी परे है|
  • गणित में सूत्र समझाने के लिए जो उदाहरण दिए गए हैं, वे और उलझाने वाले हैं|
  • साइंस और मैथ्स में न्यूमेरिकल्स आईआईटी स्तर के हैं जो 11वीं, 12वीं में कतई उपयुक्त नहीं हैं|
  • हिंदी में मेघालय, नगालैंड, असम की कहानियों में स्थानीय बोली का इस्तेमाल तो किया , परन्तु उनके अर्थ नहीं दिए गए |

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16Comments
  1. All this is sponsored criticism only initiated by vested interests. NCERT books are better on most accounts than any of the private publisher's who are milking the education industry for a long time and see the ongoing changes as risk to their own interests.

    Not only the points given in the report untrue, but in stark opposition to the reality.

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  2. साइंस और मैथ्स में न्यूमेरिकल्स आईआईटी स्तर के हैं जो 11वीं, 12वीं में कतई उपयुक्त नहीं हैं|

    तो आप सहमत है वो आईआईटी स्तर के न्यूमेरिकल्स, विद्यार्थियो को 11वीं, 12वीं के बाद किसी कोचिग इन्सीट्यूट से सीखने चाहिये? मेरे हिसाब से ये तो एक अच्छा निर्णय होना चाहिये.. हो सकता है इससे आईआईटी कोचिग सन्स्थानो पर रोक लगे जिन्होने आईआईटी के नाम पर लूट मचायी हुयी है...

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  3. पहले छात्र रोचक शैली में विषय की बुनियादी बातें सीख ले, आई आई टी की तैयारी बुनियाद बनाने के बाद भी की जा सकती है. सीधे ही पाठ इतने कठिन कर दिए जाएँ तो कन्फ्यूज़न के सिवा कुछ नहीं रहेगा. विषय पर पकड़ बननेकी बात तो दूर है.

    ऐसा भी नहीं की यह कदम आईआईटी की तैयारी कर रहे छात्रों की सहायता के लिए है. एक तो हर बच्चे का लक्ष्य इंजीनियरिंग नहीं होता. हर शिक्षक भी इंजीनियरिंग की तैयारी नहीं करा सकता. फिर हर एक पर एकदम सीधे इतना कठिन सिलेबस थोपने का क्या मतलब है? जबकि इस मोड़ पर थ्योरी से ज्यादा छात्र की रचनात्मकता और विवेचना शक्ति बढ़ने पर फोकस होना चाहिए.

    क्या ऐसा है की इस सिलेबस से सभी छात्र इतने जानकार हो जायेंगे की हर किसी का आईआईटी में सिलेक्सन हो जाए?

    पहले आठवी तक जनरल प्रोमोशन. (जब पास - फेल का दबाव नहीं रहेगा तो पढ़ेगा कौन?). अधिकतर छात्र कमज़ोर रह जायेंगे.

    फिर नौवी से बारहवी एकदम कठिन सिलेबस. जिसे खुद शिक्षकों को समझने में दिक्कत हो. ये दोनों निर्णय आपस में जुड़े हुए हैं.

    यह मानाने के पर्याप्त कारण हैं की यह निर्णय सरकार ने अमेरिका के दबाव में लिया है. सिलेबस कठिन करने से शिक्षा का स्तर गिरेगा, क्योंकी छात्रों की विषय पर पकड़ ही कमज़ोर रह जाएगी. भारत पहले से ही शिक्षित वर्ग में रचनात्मकता की कमी से जूझ रहा है. हमारे संस्थानों की दुनिया भर में आलोचना होती है की हम केवल रट्टू तोते/ तकनिकी मजदुर निकालते है.

    वहीँ अमेरिका और यूरोप में सारा फोकस छात्रों की रचनात्मकता और विवेचना शक्ति (क्रिटिकल थिंकिंग) बढ़ाने पर है. स्कूल स्तर तक थ्योरी जहाँ तक हो सके सरल रखी जाती है. विशेष प्रतिभा वाले छात्रों के लिए अलग स्कूल हैं.

    भारत में इसका उल्टा क्यों हो रहा है?

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  4. साइंस की हिंदी मीडियम की पुस्तकें इतनी कठिन होती हैं की उनकी भाषा समझने में ही छात्र परेशान रहता है. साइंस समझना तो दूर की बात है.

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  5. पाठ्यपुस्तकों के निर्माताओं और शिक्षाविदों को समझाने के फिल्म-निर्माताओं को केवल उनके लिए "थ्री-ईडियट", "तारे ज़मीन पर" जैसी फिल्मो का निर्माण करना चाहिए. लेकिन यह मुझे संदेह है कि वह सफल होगी!

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  6. इस मामले में मैं ab inconvenienti ji की बात से सहमत हूँ. पर मुझे आश्चर्य हो रहा है. एन.सी.ई.आर.टी. का पैनल तो हमेशा अच्छा होता है. उनके पाठ्यक्रम की पुस्तकें भी सरल होती हैं. फिर इस बार ऐसा क्या हो गया कि उन्होंने इतनी गलतियाँ कर दीं कि सी.बी.एस.ई. वालों ने उनकी किताबें पढ़ने से मना कर दिया.

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  7. प्रयास ईमानदार हो तो कोई कठिनाई नहीं आएगी .. बच्‍चों को पढाना इतना कठिन भी नहीं .. आई आई टी के स्‍तर को बनाने के लिए कोचिंग की कोई आवश्‍यकता नहीं होनी चाहिए .. अपनी प्रशंसा के लिए कोचिंग सेंटर वाले बच्‍चें को समझाने की जगह सबकुछ रटा डालते हैं .. प्रोफेसर भी अपेक्षाकृत कम प्रतिभावानों के आई आई टी में प्रवेश की बात स्‍वीकारते हैं .. यहां तक कि विद्यार्थी आई आई टी कॉलेजों की परीक्षा में फेल भी हो जाते हैं .. गरीब प्रतिभावान बच्‍चों के लिए भी हमें चिंतन करना चाहिए !!

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  8. आपका मुझे इस ब्लॉग जगत में वाहिद ब्लॉग ऐसा लगता है जो एक आन्दिलन दिखाई देता है.

    आपने हमज़बान का लिंक दिया है.आभार!

    शहरोज़

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  9. सुधरते सुधरते सुधरेंगे ।

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  10. @ Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)

    भाई पहले सरल सवाल तो हल करना सीख लें. फिर आईआईटी लेवल के करें! और इससे तो उस छात्र को भी सीधे आईआईटी लेवल के सवाल हल करना पड़ेंगे जिसकी इंजीनियरिंग पढने की कोई योजना नहीं है. और क्या स्कूल में बिना बुनियाद पक्की किये सीधे कठिन सवाल कराने से छात्र इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए कोचिंग जाना छोड़ देंगे?

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  11. संगीता पुरी जी की टिपण्णी से सहमत है जी

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  12. @ab inconvenienti: पूरी सहमती. नयी पुस्तकें कैसी है देखि नहीं गयी तो कहना मुश्किल है. पर उन छात्रों का क्या जो ११-१२वी में गणित पढना चाहते हैं कॉमर्स के saath ? या फिर आई आई टी की तैयारी नहीं करनी जिन्हें...

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  13. @ab inconvenienti: आपका कहना जायज है।
    वैसे आईआईटी एन्ट्रेन्स मे कोई ऎसी भी चीज़ नही पूछी जाती कि उससे इतना डरा जाय.. सरल सवाल वहा भी होते है बस कुछ जगह रट्टा काम नही आता..
    बस मै इतना कहना चाहता था - मैने UP Board से पढाई की है और जब मैने आईआईटी का सिलेबस देखा था तो लगा था कि कितना कुछ तो मेरे लिये एकदम नया था.. हमारे यहा सबसे पहले ये अलग अलग बोर्ड की परम्परा गलत है..इन सबका इन्टीग्रेशन होना चाहिये.. और सबका सिलेबस सेम होना चाहिये क्यूकि ज्यादातर All India Entrance मे CBSE का ही सिलेबस फ़ालो होता है...

    दूसरी बात अगर ऐसे सवाल रहेगे तो छात्रो का लेवल घटेगा नही.. बल्कि बढेगा ही..

    @अभिषेक ओझा
    आपकी बात सही है.. मुझे याद है UP Board के हाई स्कूल मे गणित के दो टाईप थे.. और अन्य विषय वालो को हल्की गणित दी जाती थी जिसे ’गणित भाग एक’ के नाम से जानते थे..ऐसा यहा भी किया जा सकता है..

    बाकी मैने भी नयी पुस्तके नही देखी है..जो भी लिखा है वो मास्साब का लिखा देखकर ही लिखा है...

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  14. पूरे देश में एक पाठ्यक्रम लागू होना ही चाहिए। लेकिन यदि एनसीईआरटी की किताबों को लेकर आपत्तियां हैं तो उन्‍हें गंभीरता से लेकर उनका निराकरण भी होना चाहिए। जब कोई पुस्‍तक शिक्षकों के लिए ही बोधगम्‍य नहीं है तो छात्र उसे कैसे समझ पाएंगे।

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  15. 11th or 12th me IIT ZEE evm any prtiyogi pariksha ke star ke prashna hona achcha hai,ya fir in parikshaon ka level 12th tak rahe .

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