शिक्षा का मौलिक अधिकार
देने के बावजूद जमीनी
हकीकत क्या है ?यह सवाल
उत्तर-प्रदेश जैसे पिछडे राज्यों
के सन्दर्भ में और अधिक
प्रश्न खड़े करता है | यह
देखना महत्त्वपूर्ण होगा कि
केंद्र सरकार इन आने वाली
जमीनी दुश्वारियों से कैसे
जमीनी दुश्वारियों से कैसे
निपटती है?
केंद्र सरकार ने देश में 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का संवैधानिक अधिकार देने का कानूनी बंदोबस्त भले ही कर दिया हो लेकिन इससे उत्तर प्रदेश सरीखे 'बीमारू' राज्य की चिंताएं बढ़ गई हैं। बेसिक शिक्षा के वर्तमान मौजूदा ढांचे को देखते हुए सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दिलाने की डगर पर चलना उत्तर-प्रदेश के लिए बेहद चुनौती-पूर्ण और दुश्वारियों भरा अनुभव होगा।
बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधानों पर अमल करने के लिए सूबे में तात्कालिक तौर पर 7000 नये स्कूलों और 90,000 कक्षाओं की जरूरत होगी जबकि एक लाख स्कूलों को चहारदीवारी से घेरना पड़ेगा। अधिनियम गत 27 अगस्त को सरकारी गजट में अधिसूचित हो चुका है। केंद्र सरकार इस अधिनियम के तहत आदर्श नियमावली बना रही है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा-6 के अनुसार इस एक्ट के लागू होने के तीन वर्ष के अंदर ऐसे सभी क्षेत्रों में जहां स्कूल नहीं हैं, निर्धारित मानक के अनुसार विद्यालय बनाने होंगे। अधिनियम की इस धारा पर अमल करने के लिए सूबे में 7000 और स्कूलों की जरूरत होगी। राज्य सरकार के वर्तमान मानक के अनुसार 300 या उससे अधिक आबादी के एक किमी के दायरे में एक प्राथमिक विद्यालय होना चाहिये। वहीं 800 या अधिक जनसंख्या वाले इलाके में दो किमी की परिधि में एक उच्च प्राथमिक स्कूल होना चाहिये। अभी प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित 1,44,500 स्कूल हैं। इनमें 1.02 लाख प्राथमिक स्कूल और तकरीबन 42500 उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं|
अधिनियम के परिशिष्ट में स्पष्ट उल्लेख है कि प्रत्येक स्कूल में हर शिक्षक के लिए एक कक्षा होनी चाहिये। हर स्कूल में एक कमरा ऐसा भी होगा, जिसका इस्तेमाल आफिस या स्टोर या प्रधानाध्यापक के कक्ष के रूप में किया जाएगा। इस प्रावधान को अमली जामा पहनाने के लिए राज्य में 90,000 अतिरिक्त कक्षाओं की जरूरत महसूस की जा रही है। अधिनियम के परिशिष्ट में सभी स्कूलों को सुरक्षा की दृष्टि से चहारदीवारी या बाड़ से घेरे जाने का भी प्रावधान है। इस लिहाज से प्रदेश में तकरीबन एक लाख स्कूलों के इर्दगिर्द चहारदीवारी बनानी पड़ेगी।
अधिनियम में कहा गया है कि प्रत्येक स्कूल में बच्चों के लिए स्वच्छ पेयजल की सुविधा होनी चाहिये। गौरतलब है कि अभी भी सूबे के 4200 स्कूल पेयजल की सुविधा से महरूम हैं। हर स्कूल में बालक और बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय होने चाहिये। प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित तकरीबन 10,500 स्कूलों में बच्चों के लिए शौचालय नहीं है।
(प्रस्तुत तथ्य साभार- दैनिक जागरण)
आप का प्रयास बहुत सराहनीय है आप को और आप के ब्लाग को शुभकामनायें
ReplyDeleteउपलब्ध एवं प्रस्तावित इन्फ्रास्ट्रक्चर को संज्ञान में लिए बगैर जब तक वाहवाही और वोट के लिए सरकारी घोषणाएँ की जाती रहेंगी, तब तक यही होता रहेगा.
ReplyDeleteसरकार को चुनौती स्वीकार करना चाहिए।
ReplyDeleteनए कलेवर में पोस्ट बड़ी अच्छी लग रही है. बाकी समस्या तो समझ में आई ही.
ReplyDeleteकठिन तो कुछ भी नही, कठिन तो मुर्तिया बनवानी थी, लेकिन इन नेताओ का पेट तो भरे, बहुत सुंदर बात कही आप ने काश ऎसा पुरे देश मै हो जाये.
ReplyDeleteधन्यवाद