ज बसे सत्यार्थमित्र वाले सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी और संयोजक संतोष भदौरिया का इ-निमंत्रण पत्र आया था , उसके पहले ही हम पूरी तरह से अपना ब...
जबसे सत्यार्थमित्र वाले सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी और संयोजक संतोष भदौरिया का इ-निमंत्रण पत्र आया था , उसके पहले ही हम पूरी तरह से अपना बस्ता (प्राइमरी का मास्टर और क्या ले जाता?) तैयार करके आयोजन में शामिल होने को तत्पर थे | पहले सोचा कि फतेहपुर से कुछ मित्रों को भी लेते चले .....पर शायद उनको चिट्ठाकारों की इस नयी प्रजाति को देखने का कोई विशेष आकर्षण नहीं रहा होगा ; सो वह नहीं चले तो नहीं ही चले |
आयोजन स्थल के सबसे नजदीक होने के आत्मविश्वास के चलते हमने शुरू से ही बता रखा था कि हम उसी दिन अपनी व्यवस्था से संगोष्ठी स्थल पहुँच जायेंगे | सो आयोजक भी निश्चिंत और हम भी | नए और वर्चुअल दुनिया के चेहरों से मिलने का उल्लास भी था तो अपनी संकोची प्रवत्ति और धीमी शुरुवात की आदत के चलते एक अनजाना सा भय भी ढो रहे थे |
ज्ञानदत्त जी की 4164 संगम सवारी में सवार होकर हम रोकते रुकाते पहुँच गए प्रयाग रेलवे स्टेशन | चारों ओर देखते हुए कि शायद कोई चिट्ठाकार टकरा जाए ........ पर अफ़सोस अभी यह प्रजाति आम नहीं ख़ास बनी हुई जो ठहरी| चार साल अपनी पढाई के दौरान गुजारने के बाद भी हम इलाहाबाद में एकेडेमी के अन्दर एक बार भी नहीं गए थे | सो आज उसका भी श्री-गणेश !!!
इलाहाबादी स्पेशल रिक्शे में बैठ कर हम पहुंचे हम हिन्दुस्तानी एकेडेमी के द्वार तो समय हो रहा था सुबह के दस बजकर बीस मिनट |
द्वार के ठीक सामने बाहर लान में खाने -पीने की तैयारियां चल रही थीं- सो हमारा पेट भी निश्चिंत | मुख्य प्रवेश द्वार पर अच्छी खासी सजावट बड़े मन से की गयी थी | प्रवेश द्वार पर असली गेंदे की झालरें लटक रही थी | अन्दर पहुंचे तो तो सिद्धार्थ जी का सचिव सह कोषाध्यक्ष वाला आधिकारिक कमरा दिखाई पडा .....यह सोच झाँका कि अपना असली थोबडा दिखा दूँ | पर सबसे पहले टकराए प्रतापगढिया अमिताभ त्रिपाठी ...सो उन्ही को बताये अपने को प्राइमरी का मास्टर | स्वागत के भाव के पश्चात वे हमको ले गए उदघाटन सभागार में |
सिद्धार्थ जी , रवि जी , अजीत वडनेरकर और मसिजीवी ने हमारा परिचय जानकार गले लगाया और संबोधन तो वही पुराना - "अपने मास्टर जी" |बाद में हम पहुँच गए अनूप जी के पास और अपना अभिवादन ठोंका और प्रत्त्युत्तर में वही "अपने मास्टर जी" |हालांकि बीच में अजीत जी को पता नहीं कैसे मैं मास्टर कम मीडिया कर्मी जैसा समझ आया सो उन्होंने एक बार शंका जाहिर करते हुए हमको फिर से निहारा |
सभागार में मंच और मंच के पीछे साज सज्जा को अंतिम रूप दिया जा रहा था | अनूप जी अपने रवि जी के लोटपटवा (© अफलातून जी ) से अपने द्वारा उदघोषित तथाकथित सीधे प्रसारण की आड़ में रुक रुक प्रसारण में डटे दिखे | प्रोजेक्टर से मंच पर भी चिटठा - चर्चा की ताजी पोस्टें दिखाई जा रहे थीं| इसी बीच मसिजीवी जी , रवि जी , अजीत जी से हिंदी टाइपिंग - यथा इनस्क्रिप्ट , रेमिंगटन , फोनेटिक आदि की चर्चा हुई - जहाँ से निष्कर्ष निकाला कि इस वर्ष हमें इनस्क्रिप्ट टाइपिंग सीखनी है तो सीखनी ही है |
कार्यक्रम शुरू होने के ठीक पहले ज्ञानजी से भी मुलाक़ात की और आपसी मुलाकातों का बड़ा दौर चलता रहा ..... जबतक कि कार्यक्रम शुरू नहीं हो गया |
विनीत की मसिजीवी जी से निकट की गूढ़-चर्चा
अब तैयार है मंच - औपचारिक उदघाटन सत्र के लिए
अपने अजीत जी कोई कम कैमेराबाज थोड़े ही हैं सो ....कौन रोक सकेगा उनको पर लोकल मीडिया की भीड़ की धमक में वह भी ठंडे पड़ गए रवि जी की तरह |
आह मीडिया - वाह मीडिया
कुछ रह ना जाए
(पीछे सभागार में बैठे लोग कराह रहे हैं - अब तो दर्शन ले लेनो दो )
अभी और ज्यादा जगह चाहिए | मीडिया के भौकाल ने रवि जी , अजीत जी और अनूप जी को अपनी कुर्सी खिसकाने को मजबूर कर दिया |
और रवि जी के पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन में सबसे आकर्षण रूपी ट्विस्ट आया "बकरी की लेंडी" के रूप में !
(इरफान जी का दिमाग गरम हो रहा होगा? कविता ? कैसी कैसी कविता??)
ब्लॉग्गिंग के नुक्सान में राजनीति को क्या शामिल किया - विरोधी स्वर रूपी अपनी त्वरित आपत्ति जतायी अफलातून जी ने| रवि जी ने आम और ख़ास चिट्ठाकारों के विपरीत अफलातून जी के पक्ष को स्वीकार करते हुए उन्ही वहीं ठंडा कर दिया | क्या रवि जी यह कैसी चिट्ठाकारी ? थोड़ी देर तो अकड़ते ?
अगली पोस्ट में उदघाटन सत्र की चर्चा नहीं की जायेगी ........अरे इतनी चर्चा हो जो चुकी - ब्लॉग दुनिया में!
मुद्दे और सरोकारों पर अपनी बात आगी जारी रहेगी | इसे मात्र एक परिचयात्मक पोस्ट समझा जाए |ब्लॉगजगत सहित प्रिंट और इन्टरनेट मीडिया में ख़बरों के लिए ये लिंक देख सकते हैं-
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