साल दर साल मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने वाले आईसीएसई, सीबीएसई और उप्र माध्यमिक शिक्षा परिषद से मान्यताप्राप्त गैर सरकारी स्कूलों की मनमर्जी पर लगाम कसने के लिए शासन ने आदेश जारी कर दिया है। ऐसे स्कूलों की फीस तय करने के लिए शासन ने हर जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में समिति भी गठित करने का आदेश जारी कर दिया है।
यह समिति शासन की ओर से जारी किये गए मागदर्शी सिद्धांतों को ध्यान में रखकर ही फीस तय करेगी। जिले के मुख्य विकास अधिकारी, वरिष्ठ कोषाधिकारी/कोषाधिकारी और जिला मुख्यालय स्थित राजकीय इंटर कालेज के प्रधानाचार्य इस समिति के सदस्य होंगे जबकि जिला विद्यालय निरीक्षक इसके सदस्य सचिव होंगे। यह समिति स्कूल की फीस तय करते समय यथावश्यक उस संस्था में पढ़ने वाले छात्रों के अधिकतम दो अभिभावक प्रतिनिधियों को समिति के विशिष्ट सदस्य के रूप में नामित कर सकती है। समिति द्वारा तय की गई फीस तीन शैक्षिक सत्रों तक लागू रहेगी।
फीस का निर्धारण स्कूलों द्वारा छात्रों को उपलब्ध कराये जा रहे संसाधनों और सुविधाओं के आधार पर किया जाएगा। फीस निर्धारण का मुख्य आधार छात्रों को दी जाने वाली शिक्षा पर प्रत्यक्ष रूप से आने वाले व्ययभार पर निर्भर होगा। इस व्ययभार की गणना में पूंजी निवेश पर आने वाले व्यय को नहीं शामिल किया जाएगा। शासन ने यह भी स्पष्ट किया है कि फीस केवल उन्हीं मदों में ली जा सकेगी जो कि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित हैं। स्कूल के लिए यह जरूरी होगा कि वह छात्रों से लिये जाने वाले प्रत्येक शुल्क की स्पष्ट और पूरी रसीद उन्हें दे। यदि लिये गए शुल्क की रसीद नहीं दी जाती है तो इसे अवैध वसूली माना जाएगा और स्कूल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के सुसंगत प्रावधानों के तहत कार्यवाही की जाएगी।
फीस बढ़ाने का निर्णय लेते समय समिति स्कूल द्वारा शैक्षिक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को छठे वेतनमान व अन्य भत्ते दिये जाने के कारण पड़ने वाले अतिरिक्त वित्तीय व्ययभार और स्कूल के सरप्लस फंड की स्थिति को भी ध्यान में रखेगी। स्कूल द्वारा शिक्षकों व कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग की संस्तुतियों के अनुसार विगत शैक्षिक सत्रों के एरियर के भुगतान के लिए छात्रों से अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाएगा। एरियर का भुगतान स्कूल अपने सरप्लस फंड से करेंगे।
समिति स्कूलों से फीस संबंधी दस्तावेज लेकर स्थानीय चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट से उनका परीक्षण कराकर शुल्क तय करेगी। स्कूल में फीस का निर्धारण अभिभावकों के प्रतिनिधियों से विचार विमर्श और मैनेजमेंट कमेटी की मंजूरी से ही किया जाएगा। फीस बढ़ाने का कोई भी निर्णय तभी मान्य और लागू होगा जब स्कूल द्वारा अभिभावकों के प्रतिनिधियों से इस पर बातचीत कर ली जाए और मैनेजमेंट कमेटी की बैठक में इसे विधिवत पारित कर दिया जाए। मैनेजमेंट कमेटी की बैठक में अध्यापक प्रतिनिधि/अभिभावक प्रतिनिधि और शिक्षा निदेशक के नामित सदस्य की मौजूदगी जरूरी है। जिला विद्यालय निरीक्षक स्कूलों से फीस वृद्धि के संबंध में सूचनाएं हासिल करेंगे। इन सूचनाओं के साथ वह स्कूल के पिछले तीन वर्षों की छात्र संख्या, बैलेंस शीट, अंतिम माह का वेतन बिल तथा अन्य स्त्रोतों से होने वाली आय का लेखाजोखा जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समिति को उपलब्ध करायेंगे।
(समाचार साभार - दैनिक जागरण )
बस देखते रहिये !
ReplyDeleteचलिये, आशा धरे रहिये हमेशा की तरह!
ReplyDeleteचाहे जो करें आखिर में भुगतेंगे आम-लोग ही.
ReplyDeleteभाई ई जनता खरबूजा जै.अब आप समझ लो कि चाकू का क्या बिगडना है?:)
ReplyDeleteरामराम
सरकारी स्कूलों में सुविधाएं बहाल किया जाना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए .. शिक्षा प्राप्त करना बच्चे का मौलिक अधिकार है .. और उसे प्राप्त करने के लिए प्राइवेट स्कूलों में जाना आवश्यक नहीं ।
ReplyDeleteउम्मीद पर ससुरी दुनिया को टिका कर बैठे है...
ReplyDeleteसरकार अपना घर ठीक करने के बजाय दूसरों के फटे में टांग अडाकर सिर्फ भ्रष्टाचार को बढावा देती है , थोक के भाव के सड़े कानून इस देश में और क्या कर रहे हैं?.
ReplyDeleteताऊ का कहना सही है - जो होगा खरबूजे का होगा!
ReplyDeleteआपकी चिंता जायज है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }