मेरी मातृभाषा में कितनी ही त्रुटियां क्यों न हों, मैं उससे उसी तरह चिपका रहूंगा, जिस तरह अपनी मां की छाती से। वही मुझे जीवन देनेवाला दूध दे सकती है।मैं उसकी जगह अंग्रेजी को भी प्यार करता हूं, लेकिन यदि वह उस स्थान को हड़पना चाहती है जिसकी वह हकदार नहीं है तो मैं उससे अत्यधिक घृणा करूंगा। यह बात मानी हुई है कि अंग्रेजी आज दुनियाभर की भाषा बन गई है। इसलिए मैं उसे दूसरी भाषा के तौर पर स्थान दूंगा। लेकिन विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में, स्कूलों में नहीं।
अंग्रेजी कुछ लोगों के सीखने की भाषा हो सकती है लाखों-करोड़ों की नहीं। आज जब हमारे पास प्रारंभिक शिक्षा को भी देश में अनिवार्य बनाने के साधन नहीं हैं, तब हम अंग्रेजी सिखाने के साधन कहां से जुटा सकते हैं।
रूस ने बिना अंग्रेजी के विज्ञान में इतनी उन्नति की है। आज अपनी मानसिक दासता के कारण ही हम यह मानने लगे हैं कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता। मैं यह बात नहीं मानता।
...महात्मा गाँधी
पूना के कौशिल हॉल में शिक्षामंत्रियों के सामने दिए गए भाषण का अंश,29-7-1946 हरिजन सेवक 25-8-1946( शिक्षण और संस्कृति, पृ. 441-2
गाँधी जी ने जो कहा वह अक्षरश: सही है | हिंदी हमारी माँ है | अंग्रेजी सोतेली माँ है जो अपनी माँ का स्थान कभी नहीं ले सकती
ReplyDeleteसत्य कहा.
ReplyDeleteरामराम.
सुन्दर सुभाषित!
ReplyDeleteदुनिया की दुसरी भाषा अग्रेजी नही, इसे हम जेसे गुलामो ने बनाया है, वरना आप युरोप के किसी भी देश मै जाये आप को कुछ स्थानो को छोड कर कही भी अग्रेजी का नाम निशान नही मिलेगा, कोई अग्रेजी नही बोलता मिलेगा, सिर्फ़ हम जेसो को छोड कर, कभी गोर से देखे युरोप के मंत्री किस भाषा मै विदेशो मे भाषाण देते है ? सिर्फ़ अपनी भाषा मै ! ओर हमारे मंत्री ओर प्रधान मंत्री सिर्फ़ अग्रेजी मै भाषाण देते है विदेशॊ मै ओर उस के बावजुद भी दुभाषिये उसी अग्रेर्जी को फ़िर से अपनी अग्रेजी मे बताते है, कभी ध्यान ना दिया हो तो अगली बार ध्यान जरुर देवे.
ReplyDeleteहमे अपनी इज्जत की परवाह ही नही तो दुसरा क्यो करे, मै मरता हुं अपनी मां भाषा पर हिन्दी उस के बाद दुसरे स्थान मै मेरी वो भाषा है जिस जगह मै रहता हुं. अग्रेजी जाये भाड मै.
प्रवीण जी आप बहुत सुंदर काम कर रहे है, लेकिन जहां लोग अपनी सगी मां को इज्जत नही देते वो हिन्दी को क्या पुछेगे
सही बात।
ReplyDeleteEkdam mere man ki baat....
ReplyDeletePost ke liye aabhar.
बिलकुल सही ...
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा......
ReplyDeleteकिसी महापुरुष के विचार में हमारी तीन प्रमुख भाषाएँ हैं:
१. हिंदी : व्यावहारिक भाषा
२. संस्कृत : सांस्कृतिक भाषा
३. अंग्रेजी : व्यापारिक भाषा
मगर मैं तो हिंदी को ही सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ क्योंकि "हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा........"
साभार
हमसफ़र यादों का.......
मैं राज भाटिया जी के विचारों से सहमत हूँ .............
ReplyDeleteहम लोगों ने ही अंग्रेजी को सर पर चदा रखा है... सब देश अपनी भाषा की रक्षा कर रहे है.. जबकि हमने पहले संस्कृत को अछूत बनाया और अब हिंदी और हिंदी भाषी को हेय द्रष्टि से देखते है... हिंदी और हिंदी भाषी को मान दो.. ज्यादा से ज्यादा हिंदी प्रयोग करें..
गुरू जी मन खुश हो गया है आज
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