शिक्षा का अर्थ अक्षर-ज्ञान ही नहीं है। अक्षर-ज्ञान शिक्षा का साधन मात्र है। शिक्षा का अर्थ यह है कि बच्चा मन लगाकर सारी इन्द्रियों से अच्छा काम लेना जाने। यानी बच्चा अपने हाथ, पैर आदि कर्मेन्द्रियों का और नाक, कान आदि ज्ञानेन्द्रियों का सच्चा उपयोग करना जाने। जिस बच्चे को यह ज्ञान मिलता है कि हाथ से चोरी नहीं करनी चाहिए, मक्खियाँ नहीं मारनी चाहिए, अपने साथी या छोटे भाई-बहन को नहीं पीटना चाहिए, उस बच्चे की शिक्षा शुरू हो चुकी समझिए।
जो बालक अपना शरीर, अपने दाँत, जीभ, नाक, कान, आँख, सिर, नाखून आदि साफ रखने की जरूरत समझता है। उसकी शिक्षा आरंभ हो गयी कही जा सकती है। जो बच्चा खाते-पीते शरारत नहीं करता, अकेले या दूसरों के साथ बैठकर खाने-पीने की क्रिया कायदे से करता ढंग से बैठ सकता है और शुद्ध-अशुद्ध भोजन का भेद समझकर शुद्ध को पसंद करता है ,ठूँस-ठूँसकर नहीं खाता , जो देखता है वही नहीं मांगता और न मिलने पर भी शांत रहता है, उस बच्चे ने शिक्षा में अच्छी उन्नति की है। जिस बच्चे का उच्चारण शुद्ध है और वह अपने आस-पास के प्रदेश का इतिहास-भूगोल उन शब्दों का नाम जाने बिना भी बता सकता है, जिसे इस बात का पता लग गया है कि देश क्या है, उसने भी शिक्षा के रास्ते में खासी अच्छी मंजिल तय कर ली है।
नवजीवन, 2-6-1923(सम्पूर्ण गांधी वांग्मय) 41 : 5-8जो बच्चा सच-झूठ का, सार-असार का भेद जान सकता है और जो अच्छे तथा सच्चे को पसंद करता है और शरारत और झूठ के पास नहीं फटकता, उस बच्चे ने शिक्षा में बहुत अच्छी प्रगति की है।.....महात्मा गाँधी
बहुत बहुत आभार, आनन्द आ रहा इस ज्ञानवर्धक श्रृंख्ला में.
ReplyDeleteबहुत उपयोगी लिख रहे हैं..काश हम बच्चे थे तब लिखा होता तो हम भी सुधर कर भले आदमी बन गये होते?
ReplyDeleteपर आपका भी क्या दोष? इंटरनेट ही कहां था?
रामराम.
शृंखला का यह अंश अच्छा है!
ReplyDeleteआभार,बहुत ज्ञानवर्धक ज्ञान का प्रसार कर रहें हैं आप .
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