गांधी जी : सद-चरित्रता का महत्व

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जीवन में शिक्षा और सद - चरित्र का तुलनात्मक महत्त्व


एक बहन ऐसी है जिसे एक अक्षर भी नहीं आता। वह एक का अंक तक नहीं बना सकती। फिर भी वह अपने काम में निमग्न रहती है। अपना न हो तो एक घास के तिनके को भी व
ह नहीं छूती। सपने में भी चोरी नहीं करती। यह पूछो कि भगवान क्या है, तो सामने देखने लगती है। मगर सब पर प्रेम इतना रखती है जैसे साक्षात् जगदम्बा हो। 


........... जबकि दूसरी ऐसी हो जिसे सब कुछ आता हो, उपनिषद् कंठस्थ हों, उच्चारण भी खूब बढ़िया हो, परन्तु 
वह चोरी करे, झूठ बोले, औरों से काम करा लेने में पक्की हो, उसमें बत्तीसों लक्षण हों। 

इन दोनों में से अच्छी तो पहली ही है, इसमें जरा भी संदेह नहीं। परन्तु  यदि उसे लिखना-पढ़ना आता हो तो दूसरी  से भी अच्छी हो सकती है। 
महात्मा गांधी



साभार -
साबरमती आश्रम, महिलाओं की सभा में दिये गये प्रवचन का अंश, 1926
(आश्रम की बहिनों को), नवजीवन प्र.मं. 1950 संस्करण

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4Comments
  1. बहुत बढिया .. गांधी जी के विचारों के प्रचार प्रसार के लिए धन्‍यवाद ।

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  2. आभार मित्र!!

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  3. बहुत ही सुन्दर विचार। गान्धीजी के विचारो को जिवन उपयोगी सिद्ध हुऐ है यह सर्वविज्ञ है।

    आभार आपकाजी

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  4. इन विचारों के संप्रेषण के लिये आपको बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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