शिक्षा कैसी होनी चाहिए?
पाश्चात्य देशों में शिक्षा का इतना अधिक मूल्य होता है कि बड़े शिक्षकों का बहुत ही सम्मान किया जाता है। इंग्लैंड में आज भी सैकड़ों वर्ष पुरानी पाठशालाएं हैं, जहां से बड़े प्रसिद्ध-प्रसिद्ध लोग निकले हैं। इन प्रसिद्ध शालाओं में एक ईटन की पाठशाला है। उस पाठशाला के पुराने विद्यार्थियों ने कुछ महीने पहले वहां के प्रधान अध्यापक डॉ. वेर, जिनका सारे अंग्रेजी राज्य में नाम है, का अभिनन्दन किया। उस समय के वहां के प्रसिद्ध समाचार-पत्र
`पालमाल गजट´ ने टीका करते हुए सच्ची शिक्षा का जो वर्णन किया है वह हम सब के जानने योग्य है।
"पालमाल गजट" का लेखक कहता है :
...हम मानते हैं कि सच्ची शिक्षा का अर्थ पुरानी या वर्तमान पुस्तकों का ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं है। सच्ची शिक्षा वातावरण में है( आस-पास की परिस्थिति में है( और साथ संगति में, जिससे जाने-अनजाने हम आदतें ग्रहण करते हैं, तथा खासकर काम में है। ज्ञान का भंडार हम अच्छी पुस्तकें पढ़कर बढ़ायें या और जगह से प्राप्त करें, यह तो उचित ही है। लेकिन हमारे लिए मनुष्यता सिखाना अधिक आवश्यक है। इसलिए शिक्षा का वास्तविक कार्य हमें ककहरा सिखाना नहीं, बल्कि मनुष्यता सिखाना है।
....अरस्तू कह गया है कि मोटी-मोटी पुस्तकें पढ़ लेने से सदगुण नहीं आ जाते( सत्कर्म करने से सदगुण आते हैं। फिर एक और महान लेखक ने कहा है कि आप अच्छी तरह जानते हैं, यह तो ठीक है, किन्तु जब आप ठीक तरह से आचरण करेंगे तब सुखी माने जायेंगे। माता-पिता, शिक्षक और विद्यार्थी सब को इन शब्दों पर बहुत ही ध्यान देना है। इन शब्दों को उन्हें अपने दिमाग में रखना पर्याप्त नहीं है, इनके अनुसार आचरण भी करके बतलाना है। मतलब यह है कि माता-पिता को बालकों को वैसी सुन्दर शिक्षा देनी चाहिए। शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए कि अक्षर ज्ञान को शिक्षा नहीं कहते।
- महात्मा गांधी
साभार-
इंडियन ओपिनियन, 18-5-1907(सम्पूर्ण गांधी वांगमय ), खण्ड 6, पृष्ठ -497-98,
शिक्षण और संस्कृति, पृ. 6-7
किन्तु जब आप ठीक तरह से आचरण करेंगे तब सुखी माने जायेंगे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर श्रंखला.
रामराम.
बहुत आभार इस प्रस्तुति का!!
ReplyDeleteशिक्षा सम्बंधी गांधी जी के विचारों से अवगत कराने के लिए आभार।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }