इस युग में शिक्षा ही सबसे बड़ा साधन है।
.. देश में सच्ची आवश्यकता शिक्षा की है। शिक्षा का अर्थ ककहरा सीखकर बैठ जाना नहीं है, बल्कि यह जानना है कि हमारे अधिकार क्या हैं( यह समझना है कि अधिकार के साथ हमारे उत्तरदायित्व और कर्तव्य क्या हैं?
इस प्रकार की शिक्षा यदि पांच-पच्चीस व्यक्तियों को मिल जाय तो उतना काफी नहीं है। उसे करोड़ों लोगों में फैलाना है। यह कैसे होगा? उसके लिए हमें तैयार होना होगा। इसके लिए हमें अपना समय देना होगा। ...हममें देश पर बलिदान होने की उमंग होनी चाहिए। यदि इस तरह के जोशीले नौजवान बड़ी संख्या में तैयार हो जायं तो इस दुनिया में कोई ऐसा नहीं है जो हमें सता सके। यह तभी होगा जब हमारे ऊपर से घटायें टलेंगी( तभी हम विजय पायेंगे( तभी भारत आगे बढ़ेगा, तभी हमारा दैन्य दूर होगा और हमारा तेज संसार में प्रकाशित होगा और तभी हम जिसका स्वप्न देख रहे हैं, कल साकार होगा।
....... महात्मा गांधी
भारत ने आजादी के तुरंत बाद शिक्षा को प्राथमिक रूप से चरम लक्ष्य बनाया होता तो भारत कुछ और ही होता।
ReplyDeleteहममें देश पर बलिदान होने की उमंग होनी चाहिए। यदि इस तरह के जोशीले नौजवान बड़ी संख्या में तैयार हो जायं तो इस दुनिया में कोई ऐसा नहीं है जो हमें सता सके।
ReplyDeleteबहुत सही बात, आपका यह प्रयास प्रसंशनीय है.
रामराम.
आभार इस प्रयास के लिए..अभी अभी ताऊ के यहाँ से आपको जान कर चले आ रहे हैं.
ReplyDeleteबहुत बड़ी जिम्मेदारी है शिक्षक पर! बालकों को आशावादी बनायें और समस्याओं के समाधान खोजने को प्रेरित करें।
ReplyDeleteकभी कभी मुझे लगता है कि सप्ताह में एक घण्टा दर्जा आठ में पढ़ने वाले बच्चों के साथ व्यतीत किया जाये। सिर्फ बातचीत के लिये।
और आप तो उस क्षेत्र से जुड़े हैं!
गांधी के प्रासंगिक विचारॊ का सम्यक प्रस्तुतिकरण प्रशंसनीय़ है ।
ReplyDeleteवास्तव में गांधी जी के विचारों के अनुसार कुछ नहीं हो रहा है भारत में .. उनके विचारों के प्रचार प्रसार के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteशिक्षा ही विकास का आधार है...
ReplyDeleteआपका परिचय पढ़ नहीं पाई...आज कुछ साइट्स नहीं खुल रहीं हैं ...लेकिन आपके ब्लॉग से आपके विचारों को पढ़कर अच्छा लगा ....
ReplyDeleteआपका परिचय पढ़ नहीं पाई...आज कुछ साइट्स नहीं खुल रहीं हैं ...लेकिन आपके ब्लॉग से आपके विचारों को पढ़कर अच्छा लगा ....
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