पिछली चर्चा को आगे बढ़ते हुए ....... अब सवाल आता है की हमारी आदर्श कक्षा व्यवस्था कैसी हो ? पूरी शिक्षा प्रणाली में छात्र - अध्यापक अनुपात की समस्या को देखते हुए यह विषय और अधिक प्रासंगिक हो जाता है । हम सब अगर विचार करें तो एक आदर्श कक्षा व्यवस्था इस तरह की हो सकती है ।
- कक्षा का स्वरूप एक सामुदाय अथवा समाज के समान हो, जिसमें छात्र/छात्रा भी शिक्षक के साथ सक्रिय सहभागी हों।
- बच्चों और शिक्षकों के बीच एक आपसी विश्वास और सम्मान का रिश्ता हर स्थिति में बरकरार रहना चाहिए।
- कक्षा के सभी कार्यों में छात्र/छात्राओं की सहमति तथा सहयोग , प्रोत्साहन के आधार पर हो
- सभी बालक और बालिकायें अपने आप को सक्रिय तथा महत्वपूर्ण सदस्य समझे इसके लिए प्रोत्साहन के आधार पर कुछ न कुछ जिम्मेदारियां बच्चों को भी दी जानी चाहिए।
- इसके लिए सभी बालक और बालिकायें अध्यापक के साथ मिलकर ऐसी कक्षा व्यवस्था का निर्माण करें जिसमे परिवर्तन की पूरी गुंजाईश हो ।
ऐसे माहौल को बनाने के लिए बच्चों एवं शिक्षकों के बीच अपनत्व एवं सहयोगी मित्र का रिश्ता कायम होना अति आवश्यक है। बच्चों की क्रियाओं में डर एवं मजबूरी न हो कर प्रेमभाव तथा लगन होना चाहिए। जिससे वे हंसी-खुशी, सम्मान पूर्वक रूचिपूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें।जाहिर है स्व-प्रेरणा की इसमे अधिक भूमका होनी चाहिए।
अब आते हैं कक्षा की व्यवस्था से आगे बढ़ते हुए , विद्यालय में उस माहौल के बनाने की जिसमे बच्चे रुचिपूर्वक पढ़ सकें । उपर्युक्त समस्त बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए कुछ बिन्दु अति आवश्यक हैं। जिससे विद्यालय एवं कक्षा का माहौल उपयुक्त बन सके। जैसे -
हमारी कक्षा और हमारा विद्यालय एक परिवार या एक सीखने-सीखाने वालों का समुदाय बने और उसमें एक ऐसा भौतिक और भावनात्मक माहौल बनाएं जिससे कक्षा के सभी सदस्यों ( जैसे - अध्यापक, बालक और बालिकाएं) को महसूस हो कि उनका प्रेम तथा सम्मान के साथ स्वागत हो रहा है। यह स्वागत का वातावरण अध्यापक के नेतृत्व तथा पहल से तो बनेगा, परन्तु वह पूर्ण रूप से सफल तब होगा, जब इसे बनाने में बच्चों की भी सक्रिय व संपूर्ण सहभागिता होगी। कक्षा का ढांचा प्रजातांत्रिक हो जिसमें सभी सदस्य अपने आप को स्वतन्त्र, जिम्मेदार और बराबर पायें। सभी को अपनत्व महसूस हो और लगे कि यह कक्षा उनकी अपनी है। अध्यापक को लगे कि यह बच्चे उनके अपने हैं और बच्चों को भी महसूस हो कि अध्यापक उनके अपने हैं और सभी को लगे कि विद्यालय उनका अपना है, जैसा कि उनका अपना घर। कक्षा में आपसी सम्मान, प्रेम तथा विश्वास के रिश्तों का एक सूक्ष्म जाल हो जिसमें कक्षा के सभी सदस्य खुशी से सीखें और सीखायें।
अब आता है की यह सब किस तरह की कक्षा की बैठक व्यवस्था में नवीनीकरण करके किया जा सकता है कक्षा की बैठक व्यवस्था में अध्यापक की उचित स्थिति भी बड़ा महत्व रखती है। अत: कक्षा में बैठक व्यवस्था निम्न प्रकार होनी चाहिए -
- कक्षा में बैठक व्यवस्था ऐसी हो कि जिससे अध्यापक/अध्यापिकाओं एवं छात्र/छात्राओं के बीच विभेदीकरण नहीं किया जा सकें और सभी आपस में बराबरी महसूस करें ।
- बैठक व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें सभी बच्चें अध्यापक/अध्यापिका को देख सकें तथा अध्यापक भी प्रत्येक छात्र/छात्रा को देख सके।
- बैठक व्यवस्था बदलती रहनी चाहिए ताकि सभी बालक बालिकाओं को दोस्ती करने का अवसर मिले और अध्यापक के पास बैठने का अवसर प्राप्त हो।
- बच्चों को सीधी पंक्ति में न बैठाकर अध्यापक बच्चों को भी अर्ध-गोलों में बैठा सकते है और स्वयं भी उनके साथ बैठ सकते हैं।
- अगर जगह हो तो पूर्ण गोले में भी बैठा सकते हैं।
उचित बैठक व्यवस्था से निम्न प्रभाव पड़ते हैं अतः यह परम आवश्यक है कि हम इसके बारे में अधिकतम ध्यान दें -
- परस्पर बालक/बालिका के बीच झिझक दूर होती है।
- अध्यापक/अध्यापिका के प्रति भय दूर होता है।
- आपसी रिश्ता कायम होता है।(बच्चों का बच्चों के प्रति तथा अध्यापक का बच्चों के प्रति)
- आपस में दूरियां समाप्त होती हैं।(बच्चों से बच्चों की तथा बच्चों से अध्यापकों की )
- सामुदायिकता का अनुभव होता है।
- प्रत्येक बच्चे को अपना अहम् स्थान एवं अपना महत्व भी महसूस होता है।
कक्षा में बात-चीत का माहौल बनाना भी इस प्रयास का एक बहुत महत्त्वपूर्ण हिस्सा है , इसलिए कोशिश की जानी चाहिए कि अधिकतम बच्चे अपनी चुप्पी तोडें । बच्चों को स्व-अधिगम प्राप्त करने के लिए सरकारी स्कूलों में विशेष रूप से यह आवश्यक है कि बच्चे अपनी राय व्यक्त करें , चर्चा करें ....... चलिए सोचते हैं कि किस तरह यह हो सकता है....
बच्चों के साथ एक अपनत्व का रिश्ता बनाने के लिए तथा उनके सम्मान एवं आत्मविकास को दृष्टिगत रखते हुए कक्षा में बात-चीत का माहौल होना अति आवश्यक हैं। वर्तमान स्थिति में अध्यापक ही बोलते हैं और बच्चों को चुप रहनें का आदेश दिया जाता है। बच्चे ज्यादा बोलें, या आपस में बोलें तो उन्हें टोका जाता है। जायज़ बातचीत केवल एक प्रकार की मानी जाती है- अध्यापक पाठ्य सम्बन्धित प्रश्न पूछें और बच्चे जवाब दें। एक मित्रवत् बातचीत की हमारी कक्षाओं में कोई जगह नहीं है। ऐसी बातचीत बहुत आवश्यक है क्योंकि इसके द्वारा बच्चों को एक दूसरें के साथ और अध्यापक के साथ अपने अनुभवों की दुनिया बाटने का मौका मिलता है। अध्यापक को बच्चों को समझने को अवसर प्राप्त होता है और बच्चे भी अध्यापक के और नजदीक आ सकते हैं। बच्चों को लगता है कि अध्यापक उनमें तथा उनकी दुनिया में रूचि ले रहे हैं और इस एहसास से वे अपने आप को बहुत गौरान्वित महसूस करते हैं। अपने अनुभव बाटने से उनका मूल्य बढ़ने लगता है और अपनी नजरों में भी उनका अपना मूल्य बढ़ने ल गता है। विशेष रूप से बालिकाओं के लिए यह बातचीत का माहौल बहुत महत्व रखता है। लड़कियों के घर में भी और बाहर भी चुप रहने की सीख दी जाती है। इससे उनकी अपनी आवाज और इससे जुड़ा हुआ अस्तित्व दबा रहता है। जब कक्षा में अध्यापक अपने बारे में अपनी बात अपने तरीके से कहने के आमंत्रित करते हुए कई अवसर प्रदान करते हैं तो इससे बालिकाओं की आवाज को बल मिलता है और उनके मनोबल को बढ़ावा। इसलिए यह अति आवश्यक है कि हमारी कक्षाओं में हमारे बच्चों की चुप्पी टूटे और इस की जगह पर उनके बोलने, हसने और सीखने की आवाजें गूजें।इस तरह से कोशिश कि जानी चाहिए कि बच्चों से मजाक में या हसीं में ही चाहे हो बात-चीत करके उनके अन्दर के संकोच या शर्मीलेपन को दूर किया जाना चाहिए । इस तरह के सवालों द्वारा अध्यापक बच्चों से उनके बारे में रोज कुछ समय के लिए बातचीत करें, जैसे -
- आपके हाल-चाल क्या हैं ?
- आज सुबह घर पर क्या किया ? क्या खाया ?
- रास्ते में क्या विशिष्ट बात देखी ?
- खाने में क्या अच्छा लगता है ?
- कौन सा खेल पसन्द है ?
- कभी किसी बाजार या मेले में गये तो उसका अनुभव पूरी कक्षा को बताइये ।
- पेड़-पौधे तथा पशु-पक्षी में से क्या अच्छे लगते हैं ? तथा उनका क्या महत्व है ?
- किस बात पर रोना आता है ? किस बात पर हसना आता है ?
- घर में कौन-कौन है ?
इस तरह की बात-चीत करने से बच्चों में निम्न क्षमताओं का विकास होता है :
- बात समझ कर जवाब देना।
- अपनी रूचि पर भी ध्यान देना तथा रूचि के तहत अपने आपके महत्व को समझाना।
- आत्मविश्वास एवं आत्म छवि के प्रति सजग होते हैं।
- झिझक दूर होती है।
- बालने की क्षमता का विकास होता है।
ध्यान रहना चाहिए कि - बात-चीत के दौरान बालिकाओं को विशिष्ट महत्व देते रहना चाहिए, अन्यथा वे घर की प्राचीन परम्परा के तहत बोलने की मनाही को पूर्णतया आत्मसात् करती रहेंगी और उनकी स्व-अभिव्यक्ति क्षीण होती जाएगी तथा वे कक्षा में अपनी सदस्यता भी महसूस नहीं कर पाएगी।
(क्रमशः जारी.....)
बहुत सुंदर लगा काश ऎसा ही हो.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत अच्छा लिखा है....हर कोण से बच्चे को समझने और उसके मनोनुकूल वातावरण देने की दिशा में सही आलेख है।
ReplyDeleteबड़ी मेहनत से लिख रहे हैं आप मास्टर साहब.
ReplyDeleteइस प्रकार के विश्लेषणात्मक आलेख आते रहे तो यह एक नयी जागृति के प्रथम सोपान की तरह होगा इस चिट्ठाजगत में.
आपको धन्यवाद.
सचमुच आपके विचार अत्यन्त सुंदर है और यथार्थपरक भी , बधाईयाँ !
ReplyDeletePraveenji,
ReplyDeleteapka lekh bahut achchha,prabhavshali,kafee upyogee hai.Lekin saval ye hai ki is vyavastha ko sudharega kaun?Hamare adhyapak bandhu hee na?Aur unke andar jab tak samarpan kee bhavna naheen ayegee vo kahan se karenge aisee adarsh sthitiyon valee kaksha ka nirman.
Mujhe to kai kai bar prathmik skoolon men karyakramon kee shooting ke liye jana padta hai.Lekin vahan adhyapak mahodaya aksar milte hee naheen.Poora skool shiksha mitra ke bharose chalta rahta hai.Khair ye to vyavastha kee jimmedaree hai.
Vase apka lekh kafee khojparak hai. iska upyog S.S.A.kee teachers training men hona chahiye.shubhkamnayen.
Hemant Kumar
बहुत ही अच्छा लेख है..
ReplyDeleteएक शिक्षक के रूप में मेरा भी अनुभव आप की बातों का समर्थन करता है.
आप का यह लेख भी संग्रहणीय है.
प्रवीण जी,
ReplyDeleteबहुत ही विचारवान पोस्ट है. आगे की कड़ियों का इंतज़ार रहेगा. मैंने अमेरिका में बेसिक शिक्षा के सन्दर्भ में सृजनगाथा में एक लेख "अमेरिका में शिक्षा" लिखा था. कृपया यहाँ पढ़कर देखें: http://www.srijangatha.com/2008-09/Sept/pitsvarg%20se.htm
शायद आपको कुछ अलग सा देखने को मिले.
parveen ji aap ne yeh kam bahut hi accha kiya hai aap mere pas kuch articles jo aap ne sanklit kiya hai voh bheje mera mail id hai virenderji54@yahoo.co.in
ReplyDeletemen bhi app ke pas kuch kuch padan samgri bhejta rahu ga
kya app ke lekh sangrh ko shikshako ke sath kam men liya ja sakta hai
mein shiksha men sudhar ke liye kuch kuch kam karta hu aur shiksha men gunvata ke liye kam karne ki thani hai
virender sharma
BHAI SAHAB is bloge se aapne poore hindi bhasi BHART wasiyon ki amulay seva ki h jiske lie ek bhartwasi hone ke nate men aapka sdev aabhari rhunga.aapka pras garve yogy h.धन्यवाद!
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