कक्षा के आगे की व्यवस्था आती है उसके वाह्य वातावरण कि जो बच्चा रोज देखता है , कोशिश हो की बच्चे को कक्षा आकर्षक लगे पर इसमे बहुत रंगी -पुती होने से बढ़कर सादगी भी झलकती रहनी चाहिए । वातावरण भी स्वागतपूर्ण होना चाहिए। बच्चों को लगे कि उनकी कक्षा उन्हें अपनी तरफ बुलाती है, पढ़ने-लिखने, हसने-बोलने, गाने को आमिन्त्रत कर रही हैं। कक्षा न केवल साफ-सुथरी, आकर्षक व सुव्यवस्थित होनी चाहिए बल्कि उसमें बालक और बालिकाओं को अपनी छवि भी नजर आनी चाहिए। दीवारों पर चित्र व चार्ट हों जो बच्चों की रूचि के अनुरूप हों एवं प्रेरणादायक भी हों तथा उसमें बालक-बालिकाओं दोनों के चित्र बने हों। कक्षा के बाहर बालक और बालिकाओं के सहयोग से प्रांगण में फूलों की क्यारियाँ बनानी चाहिए। इसकी देख रेख की जिम्मेदारी भी बच्चों को ही दी जानी चाहिए।
हमारी कक्षाओं का ढांचा प्रजातान्त्रिक होना चाहिए, जिसमें सत्ता समान रूप से सब सदस्यों में वितरित हो। अध्यापक कक्षा का मुखिया जरूर हो, लेकिन उनका प्रयास यही रहे कि कक्षा के सभी कार्यों में सभी सदस्यों की भागीदारी रहें। शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य है- अच्छे भावी नागरिक का निर्माण। हम इस उद्देश्य की पूर्ति तभी कर पायेंगे जब बचपन से ही समुदाय में सहभागिता की आदत डालेंगे।
बच्चों को कक्षा, और उसमें पाया गया ज्ञान भी तभी अपना लगेगा, जब उसकी व्यवस्था में उनकी भी सक्रिय व सार्थक भूमिका हो। विशेष रूप से बालिकाओं को सक्रिय बनाने के लिए उनकी सहभागिता पाना बहुत आवश्यक हैं समस्त कार्यों की भागीदारी में अध्यापकों को बालिकाओं पर विशिष्ट ध्यान देना चाहिए, जिससे उन्हें अपनी उपस्थिति एवं महत्व का अनुभव हो। उनका मनोबल बढ़े तथा उनकी क्षमता निखर कर सामने आयें।लगातार अपनी कक्षा में सामूहिक भागीदारी बनाये रखने के लिए ये कुछ सुझाव अपनाए जा सकते हैं :-
- समय सारिणी बनाते समय बच्चों की भी भागीदारी हो।
- कक्षा में प्रतिदिन अलग-अलग बच्चों को जिम्मेदारी बाटनी चाहिए कि वे श्यामपट्ट साफ करके उस पर दिनांकएवं विषय लिखें।
- प्रतिदिन विषय-चयन एवं पाठ-चयन में भी बच्चों की इच्छा का ध्यान रखना चाहिए।
- विद्यालय प्रांगण में सफाई की दृष्टि से, कक्षा में छोटे-छोटे समूह बनाएं जो मध्यावकाश में कक्षा एवं प्रांगण कीसफाई करें। कचरे व कागज को इकट्ठा करके फेकें। यह समूह बालक और बालिकाओं के मिले-जुले होने चाहिए।
- सप्ताहवार या मासिक मॉनीटर बनाना एवं बदलना चाहिए। जिससे प्रत्येक बच्चे को मौका मिले। बालक औरबालिकाओं कोबारी-बारी मॉनीटर बनाएं।
- यदि हो सके तो विद्यालय में लोकतान्त्रिक व्यवस्था का सञ्चालन भी किया जा सकता है । इससे बच्चे जिम्मेदार और जागरूक बनते हैं।
कक्षा में आपसी रिश्तों पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि इससे बच्चे कक्षा में अपनापन महसूस करेंगे और हंसी-खुशी निर्भय होकर पढ़ाई पर ध्यान देंगे और कुशलतापूर्वक सीखेंगे। बच्चों को कक्षा अपनी लगेगी तो कक्षा में दिये गये ज्ञान को अपनायेंगे।
बच्चों के मन में अगर यह दृढ़विश्वास होगा कि अध्यापक इनको काबिल और सम्मान के योग्य समझते हैं, तो उनका मनोबल और आत्मसम्मान बढ़ेगा। विशेषत: बालिकाओं के लिए यह बहुत आवश्यक है। परम्परागत रूप से बालिकाओं को , बालकों से कम योग्य माना जाता है। वे यह संदेश घर में तो पाती ही हैं, अगर कक्षा में भी पायेंगी तो उनकी नजर में आपकी छवि एक कमजोर और अयोग्य व्यक्ति की होगी।
बच्चों के साथ बराबरी व सम्मान का रिश्ता जोड़ने के लिए यह कुछ सुझाव हैं जिन्हें अपनाया जा सकता है । इनमे अपने अनुभव से भी कुछ क़दमों को जोड़ते -घटाते रहना चाहिए ।
- प्रत्येक बालक और बालिका का नाम जानने का प्रयास करें तो बच्चों को बहुत अच्छा लगेगा।
- उनके बारे में बातचीत द्वारा ज्यादा से ज्यादा जानकारी पाने की कोशिश करनी चाहिए।
- उनकी घरेलू परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, उनकी कठिनाइयों को समझने की कोशिश करें। यहबालिकाओंके लिए अति आवश्यक है।
- बच्चों को पास बुलाकर या उनके पास जाकर पढ़ाना चाहिए।
- बच्चों का सम्मान करें - गलतियों पर प्यार से समझायें। उनका तिरस्कार न करें।
ध्यान रहे कि सम्बोधन की भाषा मीठी तथा सम्मानपूर्वक हो। बच्चों में परस्पर प्रेम, सहयोग और सम्मान के रिश्तों का विकास करने हेतु अध्यापक को प्रयास करते रहना चाहिए। बालक और बालिकाओं में मेल-जोल तथा मित्रवत् सम्बन्ध बनाना आवश्यक है ताकि वे एक दूसरे को बराबरी का दर्जा देते हुए आपस में समानता का प्रत्यय समझें। बालक-बालिकाओं में आपसी सहयोग की भावना का विकास करना भी अति आवश्यक है तथा अध्यापक का प्रयास होना चाहिए कि वह मिले-जुले समूहों में कार्य करने के लिए अधिक से अधिक अवसर प्रदान करें। बच्चों की झिझक दूर करने के लिए और उनके आपस में तथा अध्यापक के साथ रिश्ता जोड़ने के लिये हम कुछ गतिविधियाँ और खेल करवा सकते हैं जैसे -
- टेढ़ी-मेढ़ी चाल
- लोग से लोग
- एक्शन पास करना
- रोचक चाल
- समूह में अभिनय करवाना एवं सामूहिक रूप से मौखिक एवं लिखित कहनी बनाना।
- कक्षा में अथवा विद्यालय में सामूहिक त्यौहार मनाना।
- कक्षा में सामूहिक पढ़ाई करवाना।
- सभी कार्य खेल तथा गतिविधियों में बालक और बालिकाओं की मिली-जुली सहभागिता रखना।
उक्त समस्त बिन्दुओं के पश्चात् विशिष्ट रूप से हम निम्न लक्ष्य तक पहुँचने की कोशिश कर सकते हैं कि -
- अध्यापक बालक/बालिकाओ का बराबर प्रतिनिधित्व रखे।
- बच्चों का सम्मान करें। गलतियों पर प्यार से समझायें। उनका तिरस्कार न करें।
- अनुशासन के साथ ही बच्चो की सहभागिता व स्वत: निर्णय की क्षमता का विकास करना है।
- बच्चो की रूचियो का ध्यान रखे । उनकी रूचि के अनुसार खेल करवाये । कक्षा संचालन तथा विषय-पाठ चयन से आत्मविश्वास एवं विश्वास का माहौल बनता है ।
- कक्षा में प्रिय शब्दो से बच्चों को सम्बोधित करें तथा बच्चों को प्यार से अपने पास बुलाकर पढ़ायें।
- प्रायः बालिकाओ पर विशिष्ट ध्यान देतेहुए उन्हें उनके महत्व व मूल्य का एहसास करवाएं तथा उनके आत्मसम्मान एवं छवि को निखारने में सहयोग देना चाहिए।
- सबसे बड़ी बात है कि प्रायः बच्चों को एक नियमित दिनचर्या के पालन की सीख दी जानी चाहिए , पर कभी कभी आप को उनकी मनः स्थिति को समझते हुए दिनचर्या से उलट भी कार्य में व्यस्त रखने की कोशिश की जानी चाहिए ।
मास्टर जी आपके विचारो से पूर्ण सहमति . माहौल ऐसा बनाया जाना चाहिए कि बच्चे स्वप्रेरित भावना से ख़ुद स्कूल की और दौडे.
ReplyDeleteमहेंद्र मिश्रा
जबलपुर.
आप एक आदर्श मास्टर मालूम होते हैं आपकी सोच नेक है
ReplyDeleteआपके सुझाव बहुत अच्छे हैं। बच्चों की रुचि जानने व लोकतांत्रिक विधि से काम करने का सुझाव सही है।
ReplyDeleteएक बात जो मैंने अनुभव की है वह यह है कि छोटे बच्चों को पढ़ाने व उनकी रुचि पाठ व कक्षा की गतिविधियों में पूरी तरह से लाने के लिए एक घंटा कम होता है। शायद एक अध्यापक यदि लगातार दो घंटे ले तो बेहतर रहेगा।
घुघूती बासूती
बहुत सुंदर विचार है आप के काश ऎसा ही हो.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत शुभ विचार हैं। अगर इनको अमल में ले आया जाए, तो हमारे समाज का ढांचा ही बदल जाए।
ReplyDeleteयह सब तो जमाने से पढ़ा सोचा नहीं। अच्छा लगा पढ़ना।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपके विचार सुन कर। लेकिन अगर एसे बच्चो को पढाना हो जो कहते है कि कक्षा कि सफाई करना एक चपरासी का काम समझते है और रही लतारीक लिखने की बात तो वह मास्टर का काम है, हम पढने की फीस देते है न की तारीख लिखने की।
ReplyDeleteहाँ यह जरुर है की ये प्राइमरी के बच्चे नही ब्लकि बडी कक्षा के है।
ReplyDeleteअच्छी प्रविष्टि व उपयोगी विचार.
ReplyDeleteधन्यवाद.
Praveen ji,
ReplyDeleteapke blog par hamaree shiksha vyavastha se sambandhit jo bhee lekh aa rahe hain,bahut hee gyanvardhak hai.Badhai.
Naya sal apke liye shubh ho.
Poonam
praveen ji,
ReplyDeleteBat apkee bilkul sahee hai.lekin saval fir vahee ki skool ka mahaul ko akarshak,sundar ,sauhardrapoorna...banayega kaun?
प्रवीण जी,
ReplyDeleteआपके विचारों से मै सहमत हूँ पर कुछ बातें हैं जिनका मै विवरण करना चाहूँगा की किसी भी मास्टर के लिए यह बहुत कठिन है के वो हर बच्चे पर नजर रख सके. हर बच्चे से अलग से कक्षा में मिल सके.
आपके बाकी विचारों से मै सहमत हूँ.
ऐसा ही माहोल विद्यालय में बनाना चाहिए के बच्चे ख़ुशी-२ विद्यालय आयें. विद्यालय उनको आकर्षित करे.
masterji,
ReplyDeletejab tak manushya ke ander auron ko bachane aur badhne ki bhawna ki abhivridhi nahi hogi kaise koi bhi prayas sarthak ho sakenge?
dusri bat, jiwan ko kaise upar uthana hai yah janne ke liye ek jiwant adarsh ki jarirat hai.jiska nitant abhav hai.
phir bhi Sri Sri thakur ne kaha hai " jaga hua manushya hi dusron ko jaga sakta hai."
aap apni atma ko yunhi jagaye rakhen nishchay hi log labhanwit honge.
praveen ji apke vicharo se mai puri tarah sahmat hoo.
ReplyDeletenice life
ReplyDeletesat sat namn aur bhut bhut shubh kamnayen jee aapko|
bhut hi shubh sankalp,bahut hi sarthak pryas hai jee |aap ke bataye marg se nischit hi baalkon ka hit hoga ,maine ise ek praimaree school mai lagu karva diya hai bahut sundar prtikiriya rahi bachchun ki |
nek vichar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति है ंंमुझे भी अपना योगदान आश्रिवावाद दे सर जी,ंंमै भी कुछ ना कुछ तो जरूर लिखने का प्रयास करता हूँ अपने ब्लॉग पर अपनी लघु बुद्धि से।
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