हौव्वा क्यों बना रखा है इसको हमने !

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णित को लेकर भय का माहौल बचपन से ही बना दिया जाता है और बच्चे इससे दूर भागने लगते हैं। गणित के कई शिक्षक भी इससे ग्रस्त रहते हैं। गणित के डर को दूर भगाने के लिए सीखने-सिखाने के तरीकों में भारी बदलाव करना होगा गणित के नाम से ही कई लोग थर्राने लगते हैं। ऐसे लोगों के लिए गणित एक प्रकार से मैथिमैटिक्स फोबिया (गणित भय) से कम नहीं है। इसे गणितीय मसलों का समाधान करने में असमर्थ लोगों की ऐसी मनोवैज्ञानिक प्रवत्ति भी माना जाता है जिसका कोई इलाज नहीं है। पसीना आना, जल्दी-जल्दी सांस टूटना, दिल की धड़कन तेज हो जाना, साफ बोलने में दिक्कत आना, सुध-बुध खो देना या चिंता का दौरा पड़ना इत्यादि गणित फोबिया के प्रमुख लक्षण माने जा सकते हैं। इस समस्या से सीधे-सीधे प्रभावित होने वाले अधिकांश लोगों को यह जानकर आचर्य हो सकता है कि वे अकेले नहीं हैं जो इस सर्वव्यापी गणित फोबिया से ग्रस्त हैं। हालांकि इसके बारे में चर्चा कम ही होती है।गणित फोबिया से ग्रस्त लोगों का मानना है कि उनके प्रति व्यर्थ की चिंता जताई जाती है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि जब भी उन्हें ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है, वे भयाक्रांत हो जाते हैं। इस स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें विस्तृत सामाजिक परिप्रेक्ष्य में विलेषण करने की दरकार होगी।

सबसे पहले तो हम यह समझ लें कि आखिर गणित है क्या? गणित एक भाषा है। संप्रेषण का ही एक प्रकार है। इसमें बड़े-बड़े वक्तव्यों के लिए कुछ सर्वमान्य फार्मूलों और संकेतों का इस्तेमाल कर एक निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है। धार्मिक मामलों की तरह गणित में भी कई बातें तर्क से परे होती हैं जिन पर कोई सवाल नहीं उठाये जाते। उसी प्रकार एक गणितज्ञ भी बिन्दु , रेखा या कोण की परिभाषा पर सवाल खड़े नहीं करता। कुछ ऐसे नियम होते हैं जिनके बारे में गणितज्ञ कोई तर्क-वितर्क नहीं करते। इन्हें गणित की भाषा में स्वयंसिद्ध कहा जाता है इस प्रकार कहा जा सकता है कि गणित भी मूलत: धर्म के समान ही है जो सामान्य रूप से स्वीकृत विश्वाशों पर आधारित होता है। जिस व्यक्ति में आधारभूत गणित का ज्ञान होता है और वह उसका इस्तेमाल करना जानता है, गणित उसकी जिन्दगी का सहज अभिन्न भाग बन जाता है।

आज गणित का उपयोग कई क्षेत्रों (जैसे प्राकृतिक विज्ञान, इंजीनियरिंग, मेडिसिन, सामाजिक विज्ञान इत्यादि) में किया जा रहा है। यह देखकर आचर्य होता है कि गणित फोबिया से ग्रस्त लोग इसका सामना किए बगैर भी जिन्दगी के सफर में आगे बढ़ते रहते हैं। दरअसल, व्यक्तिगत सफलता के लिए गणित अनिवार्य भी नहीं है। इसके कई उदाहरण मिल जाते हैं। इसमें संदेह नहीं है कि आधारभूत गणित के ज्ञान समझ से जीवन में काफी सहूलियत मिलती है, लेकिन इसके अभाव का मतलब यह भी नहीं है कि व्यक्ति गुणवत्तापूर्ण जिन्दगी नहीं जी सकता। लेकिन गणित की अपनी कुछ सीमाएं भी हैं। यह जिन्दगी के कई फलसफों की व्याख्या नहीं कर सकता। सुंदरता, प्यार, लोकप्रियता आदि के विलेषण में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। गणित को सफलता का नुस्खा नहीं माना जा सकता। कोई गणित में बहुत अच्छा है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह जीवन में सदैव सफल ही रहेगा। इसी प्रकार अगर कोई गणित में कमजोर है तो इसका अर्थ जिन्दगी में विफल होना नहीं है। दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति बिल गेट्स जैसी शक्शियत की सफलता की कहानी अक्सर सुनाई जाती है। वे अपने शुरुवाती जीवन में गणित में उस्ताद थे। लेकिन यहां उन खिलाड़ियों , वकीलों लेखकों की गाथाओं को भुला दिया जाता है जिन्होंने गणित के बगैर भी अपने-अपने क्षेत्रों में अदभुत सफलता हासिल की। इसलिए कहा जा सकता है कि केवल गणित में पंडित होना ही मेधावी या बुद्धिमान होने का प्रमाण नहीं है।

गणित को लेकर भय का माहौल बचपन से ही बना दिया जाता है। बच्चे किन्डरगार्टन से ही अपने परिवार के सदस्यों, मित्रों और पड़ोसियों के मुंह से गणित की शिकायतें सुनते रहते हैं। गणित का एक हौव्वा खड़ा हो जाता है। इससे बच्चों में गणित के प्रति एक भय पैदा हो जाता है और वे इससे दूर भागने लगते हैं।गणित बहुत कठिन है’, यह भावना हर जगह हर स्तर पर दिखाई देती है। यह नकारात्मक विचार केवल अभिभावकों मित्रों की ओर से थोपे जाते हैं, बल्कि गणित के कई शिक्षक भी इनसे ग्रस्त रहते हैं। ये उस प्रकार के शिक्षक होते हैं जो खुद अपने विषय के ज्ञान को लेकर निश्चित नहीं रहते। दुर्भाग्य की बात यह है कि गणित में मास्टर डिग्री होल्डर या गणित के ज्ञाता पहली क्लास में पढ़ाते नहीं मिलेंगे। वे अक्सर कॉलेज या विश्व-विद्यालयों में अध्यापन करते हैं। यानी किसी अच्छे जानकार शिक्षक से गणित कॉलेज में ही पढ़ा जा सकता है, लेकिन वहां तक पहुंचते-पहुंचते काफी देर हो चुकी होती है। तब तक गणित का भूत व्यक्ति को अपने घेरे में ले चुका होता है।

इस पूरी बहस में यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि विद्यार्थियों की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है। गणित में कमजोर विद्यार्थियों से यह उम्मीद होती है कि कक्षाओं में पढ़ने के अलावा भी वे विषय को सीखने में कुछ अतिरिक्त समय दें। पुस्तकालय जाएं, अतिरिक्त पुस्तकें देखें और अपने क्लास नोट्स पूरे करें। अगर कक्षा में एक घंटा पढ़ाया जा रहा है तो कक्षा के बाहर 2 से 4 घंटे देने चाहिए। लेकिन देखने में आया है कि कुछ मुट्ठी भर विद्यार्थियों को छोड़कर अन्य विद्यार्थी इस नियम का पालन नहीं करते।

स्कूलों की भी जिम्मेदारी है कि वे विद्यार्थियों को उचित मार्ग-दर्शन दें, लेकिन पका-पकाया ज्ञान देने से बचें। इसके अलावा कुछ तकनीकें भी होती हैं जिनके माध्यम से विद्यार्थी गणित में सक्षम हो सकते हैं। यह साबित हो चुका है कि मेमोरी गेम्स और लगातार पुनरावृत्ति किसी भी विषय को याद रखने में सहायक होते हैं। यही बात गणित पर भी लागू होती है। गणित को जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए बहुत अधिक दिमागी कसरत और स्व- अनुशासन की जरूरत होगी। जैसा कि हमने ऊपर भी लिखा है, गणित आज हर जगह है, हर क्षेत्र में इसकी उपयोगिता है। हालांकि यह सच है कि गणित सुंदरता की व्याख्या नहीं कर सकता, लेकिन मानव शरीर की सुंदरता भी बहुत कुछ सममिति या समरूपता (सिमेट्री) पर आधारित होती है। अगर किसी व्यक्ति की दोनों आंखें बराबर हों या आंखों के बीच संतुलित दूरी हो तो उस व्यक्ति को शायद कुरूप ही माना जाएगा। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि चेहरे की सिमेट्री कहीं--कहीं मानव बुद्धिमत्ता से भी जुड़ी है। फूलों में भी गजब की सिमेट्री पाई जाती है। गणित के हौव्वे को दूर भगाने के लिए सीखने-सिखाने के तरीकों में भारी बदलाव करना होगा
इसे इस तरीके से पढ़ाना होगा कि विद्यार्थी इसके साथ तादात्म्य बना सकें। सबसे अहम बात तो यह है कि विद्यार्थियों में गणित के प्रति रुचि जगानी होगी और इसके लिए गणित को रुचिकर बनाना होगा। उसमें उदाहरणों की भरमार करनी होगी। वैसे गणित के प्रति रुचि जगाने का सबसे अच्छा तरीका तो यही होगा कि इस विषय का अध्यापन उन अध्यापकों के सुपुर्द किया जाए जिन्हें वाकई गणित प्यार है। इसे पढ़ाने के तरीके में प्रत्येक छात्र या छात्रों के समूह के अनुरूप परिवर्तन करना होगा।

णित के शिक्षक की पहली जिम्मेदारी तो यही है कि वह कक्षा के प्रत्येक बच्चे की सीखने की क्षमता तरीके का मूल्यांकन करे। कुछ विद्यार्थी समूह में बेहतर ढंग से सीखते हैं, तो कुछ अकेले में। कुछ विद्यार्थी उदाहरणों, चित्रों या ग्राफ्स की मदद से, गेम खेलते हुए या टेलिविज़न देखते हुए पढ़ना सीखना पसंद करते हैं। ऐसे में गणित में रुचि जगाने के लिए शिक्षक को इन सभी बातों को ध्यान में रखकर ही पढ़ाई करवानी होगी। मुद्दे की बात यह है कि किन्डर-गार्टन , पहली दूसरी कक्षाओं के शिक्षकों में गणित के ज्ञान उसे पढ़ाने के प्रति दिलचस्पी का स्तर तय करने के लिए व्यापक अध्ययन की भी जरूरत है। व्यवहारिक जीवन से गणित को जोड़े बगैर गणित के प्रति बच्चों में दिलचश्पी नहीं पैदा की जा सकती है वैसे गणित को सफलता का नुस्खा नहीं माना जा सकता। कोई गणित में बहुत अच्छा है तो जरूरी नहीं है कि वह जीवन में सदैव सफल रहेगा। इसी प्रकार अगर कोई गणित में कमजोर है , तो इसका अर्थ जिन्दगी में विफल होना नहीं है।

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14Comments
  1. bilkul sahi baat master sahab,hamein chijon ko hauwaa ka rup nahin dena chahiye,specially in studies.
    ALOK SINGH "SAHIL"

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  2. यदि कुशल शिक्षक के द्वारा पढाया जाए तो गणित बहुत ही रोचक विषय है ।

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  3. एक दम ठीक कह रहे हैं। हर जगह गणित का डर देखने को मीलता है।

    और स्कुलो मे या घर पर कहते हैं। गणित पढो बहुत हार्ड है और बच्चे यही सोचने लगते हैं की हां गणित बहुत कठीन है और वो ईससे भागने की कोसीस करने लगते हैं।

    एक दम स्टीक लीखे हैं।

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  4. किसी को गणित में कमजोर होने के कारण कम समझना सही नहीं है।
    आपसे सहमति है।

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  5. रोज एक सुड़ोकू हल करो। गणित का डर भाग जाएगा।

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  6. अच्छा लेख लिखा। गणित का डर दूर हो गया। :)

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  7. अच्छा लेख लिखा है आपने इस पर

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  8. कैसा संयोग है मास्टर साहब आज ही मैंने भी इस भय की चर्चा की. http://kuchh-baatein.blogspot.com/2008/11/blog-post.html

    बहुत अच्छा लिखा है आपने पर इस बात से थोडी असहमति है.
    "लेकिन गणित की अपनी कुछ सीमाएं भी हैं। यह जिन्दगी के कई फलसफों की व्याख्या नहीं कर सकता। सुंदरता, प्यार, लोकप्रियता आदि के विलेषण में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।" ये पूरी तरह सच है की सीमाएं हैं. पर सीमा तो हर चीज में होती है. और गणित का जिन विश्लेषणों में अब तक उपयोग नहीं हुआ वहां होगा ये तो पक्का है. ऐसे कई क्षेत्रों में हो भी रहा है. आपने भी सुन्दरता में सिमेट्री वाली बात का जिक्र किया है. तो 'इस्तेमाल नहीं हो सकता' की जगह 'इस्तेमाल नहीं हो रहा' ज्यादा सटीक होता !

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  9. प्रवीण त्रिवेदी जी के इस सार्थक प्रयास का ह्रदय से प्रशंसक हु. प्राईमरी अध्यापक, हमारे समाज विशेष कर ग्रामीण जीवन में जागरूकता एवं पद प्रदर्शन के बहुत ही महत्वपूर्ण श्रोत रहे है. प्रवीन जी के इस संगठित प्रयास को मैं केवल वेबसाइट या ब्लॉग लेखन तक सिमित नही देखना चाहता हूँ. ये इस प्रयास के महत्व को न्यून करने के लिए नही कह रहा हूँ बल्कि प्राईमरी अध्यापको की विशाल संख्या, उसमे आ रहीं प्रतिभाओ एवं विस्तृत संघठन की छुपी चमताओ का समाज के हित में बेहतर सदुपयोग हो इस दृष्टिकोण से कह रहा हूँ. इस संघठन में मुझे अनेक पहलों एवं समाज को पूरी तरह से बदल डालने की असीम चमता निहित महसूस होती है.
    कमल कुमार पाण्डेय,
    अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायलय,
    नई दिल्ली

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  10. सही बात है .परन्तु आप सभी गुरुजन भी कहीं न कहीं इसमे शामिल हैं .आज स्कूलों में भी कितने गुरुजन लोंगों को गणित आती है .गणित के मास्टर लोंगभी कला पढ़ा रहें है .

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  11. मुझे लगता है कि गणित को बोझिल बनाने में बहुत बडा हाथ अध्‍यापकों का भी है। यदि उसे रोचक ढंग से और कायदे से पढाया जाए, तो उससे ज्‍यादा रोचक विषय कोई है ही नहीं।

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  12. लीजिये सबको धन्यवाद भी कर दिया पर हमारी टिप्पणी तो अभी आनी बाकी ही थी.
    हमारा भी स्वागत करें. अतिथि देवो भवः. :)
    गणित तो मेरा प्रिय विषय रहा है. आज जैसे पगलाय के ब्लॉग लिखते हैं वैसे ही एक समय गणित लगाते थे.

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  13. हमें भी ज्वाइन कराइए हमारी लेखनी भी फड़फड़ा रही है

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