खण्ड शिक्षा अधिकारी का स्कूल निरीक्षण और हेडमास्टर साहब की डीप डिप्लोमेसी

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सरकारी विद्यालयों में निरीक्षण एक औपचारिक प्रक्रिया से अधिक ‘व्यवस्था’ का खेल बन चुका है। हेडमास्टर की रणनीति, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी की सतही पड़ताल, और विद्यालय का संवरता हुआ चेहरा—सब कुछ एक पूर्वनियोजित नाटक जैसा प्रतीत होता है। लेकिन क्या वास्तव में शिक्षा का स्तर सुधार हो रहा है, या यह सिर्फ फाइलों में दर्ज उपलब्धियों की आड़ में छिपी सच्चाई है? प्रस्तुत व्यंग्य कथा इसी कड़वे यथार्थ पर करारा प्रहार करते हैं, जहाँ स्कूल की रंगीन तस्वीरें काले-सफेद हकीकत में लिपटी नजर आती हैं।


खण्ड शिक्षा अधिकारी का स्कूल निरीक्षण और हेडमास्टर साहब की डीप डिप्लोमेसी


ग्राम पंचायत का प्राथमिक विद्यालय केवल पढ़ाई के लिए नहीं, बल्कि ‘प्रबंध कौशल’ के लिए मशहूर था। यहां के प्रधानाध्यापक श्री पुरुषोत्तम मिश्र, जिन्हें सब "हेडमास्टर साहब" कहते थे, शिक्षा की दुनिया के अनदेखे चाणक्य थे। वे नियम-कायदों के जंगल में ऐसा रास्ता निकालते कि शिक्षक कम हों, फिर भी विद्यालय चलता रहे, और सब कुछ ‘कागजी रूप से’ शानदार दिखे।  


विद्यालय में कुल सात शिक्षक नियुक्त थे, लेकिन असलियत में कक्षाओं में सिर्फ दो-तीन शिक्षक ही मिलते। बाकी या तो विभागीय आदेशों के कारण कहीं और रहते या फिर हेडमास्टर साहब की ‘रणनीतिक तैनाती’ के शिकार हो जाते।  

एक दिन खबर आई कि ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) औचक निरीक्षण करने आ रहे हैं। यह सुनते ही हेडमास्टर साहब ने अपने ‘गुप्त मिशन’ का संचालन शुरू कर दिया।  

"बच्चों, कल स्कूल में विशेष स्वच्छता अभियान चलेगा। हर कक्षा को चमकाना है, झाड़ू लगानी है।"

"लेकिन मास्साब, पढ़ाई का क्या होगा?" एक मासूम बच्चे ने पूछ लिया।  

हेडमास्टर साहब गंभीरता से बोले,  
"स्वच्छता भी शिक्षा का हिस्सा है, बेटा!"

इसके बाद, गुप्त बैठक बुलाई गई जिसमें सभी शिक्षकों को बुलाया गया, भले ही वे साल भर में मुश्किल से स्कूल में योगदान दे पाते रहे हों।  

"कल सबको स्कूल में रहना है! बीईओ साहब को दिखना चाहिए कि हमारा स्कूल अनुशासित और शिक्षकों से भरा हुआ है।"


अगले दिन, स्कूल के मुख्य द्वार पर स्वागत की चहल-पहल थी। बच्चे कतार में खड़े कर दिए गए, शिक्षक नई शर्ट पहनकर आ गए, और चपरासी रामखिलावन पान छोड़कर पानी का गिलास पकड़कर खड़े हो गए।  

बीईओ साहब गाड़ी से उतरे और विद्यालय में प्रवेश किया।  

"हेडमास्टर साहब! स्कूल कैसा चल रहा है?" उन्होंने औपचारिक सवाल किया।  

हेडमास्टर जी मुस्कराए,  
"सर, हमारे विद्यालय में समग्र शिक्षा दृष्टिकोण लागू है। यहाँ बच्चा सिर्फ किताबें नहीं पढ़ता, बल्कि जीवन कौशल भी सीखता है।"  


बीईओ साहब ने स्टाफ रजिस्टर देखा। सात में से छह शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज थी, जो अपने आप में चौंकाने वाली बात थी।  

"आज तो पूरे शिक्षक स्कूल में हैं! यह तो बड़ी खुशी की बात है!"

हेडमास्टर जी ने विनम्रता से कहा,  
"सर, हमारे यहां टीम वर्क बहुत मजबूत है। हम हमेशा बच्चों के भविष्य के लिए तत्पर रहते हैं।"

लेकिन बीईओ साहब संदेह में थे। उन्होंने कक्षाओं का दौरा करने का मन बनाया।

पहली कक्षा में पहुंचे तो देखा कि बच्चे आपस में खेल रहे थे।  

"यहाँ पढ़ाई क्यों नहीं हो रही?"* बीईओ साहब ने पूछा।  

हेडमास्टर जी ने तुरंत उत्तर दिया,  
"सर, हम खेल के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने पर जोर देते हैं। यही नई शिक्षा नीति का भी उद्देश्य है।"

बीईओ साहब आगे बढ़े और तीसरी कक्षा में पहुंचे। वहाँ शिक्षक तो मौजूद थे, लेकिन वे बोर्ड पर कुछ लिखने के बजाय मिड-डे मील के राशन का हिसाब-किताब देख रहे थे।  

"यह क्या हो रहा है?" बीईओ साहब ने कड़क कर पूछा।  

हेडमास्टर जी बिना विचलित हुए बोले,  
"सर, हम शिक्षकों को बहुआयामी बनाना चाहते हैं। अगर वे सिर्फ पढ़ाएंगे तो प्रशासनिक कौशल कैसे विकसित होगा?"

बीईओ साहब ने देखा कि बच्चे थाली लेकर बैठे थे, लेकिन खाने में सिर्फ खिचड़ी थी।  

"बच्चों को सिर्फ खिचड़ी क्यों दी जा रही है?"

हेडमास्टर जी मुस्कराए,  
"सर, यह पोषण और स्वास्थ्य का संतुलन बनाए रखने के लिए है। एक शोध के अनुसार, हल्का भोजन बच्चों की पाचन शक्ति को बेहतर बनाता है।"

बीईओ साहब चुप रहे, लेकिन माथे पर पसीना आ गया।  

निरीक्षण के दौरान, बीईओ साहब ने एक बच्चे से सवाल पूछने का फैसला किया।  

"बेटा, भारत का राष्ट्रपति कौन है?" 

बच्चा घबराया और चुप रहा।  

हेडमास्टर साहब ने तुरंत बात संभाली,  
"सर, हम बच्चों को ‘रचनात्मक सोच’ पर जोर देने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए हम उन्हें पहले सोचने का अवसर देते हैं।" 

अब तक भर आए बीईओ साहब ने निरीक्षण समाप्त करने में ही भलाई समझी।  

जाते-जाते उन्होंने कहा,  
"हेडमास्टर जी, आपकी शिक्षा नीति गहरी है। आपको तो किसी बड़े पद पर होने चाहिए!"

हेडमास्टर जी मुस्कराए,  
"सर, अगर कागजों में सब सही है, तो असली स्थिति कोई मायने नहीं रखती। यही हमारी शिक्षा व्यवस्था की सच्ची पाठशाला है!"

बीईओ साहब गहरी सांस लेते हुए कुछ न कहते हुए स्कूल से बाहर निकल गए। 


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
 

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