गुलाब, प्रेम और बेचारा शिक्षक

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गुलाब, प्रेम और बेचारा शिक्षक  


प्रेम का दिवस "वेलेंटाइन डे" हर साल आता है, लेकिन शिक्षकों के लिए यह कोई उत्सव नहीं, बल्कि एक अग्निपरीक्षा बन जाता है। प्रेम और स्नेह का पाठ पढ़ाने वाले गुरुजन खुद ही अजीब असमंजस में फँस जाते हैं—क्या वे प्रेम के पक्ष में बोलें या चुप रहें? अगर प्रेम का समर्थन करें, तो संस्कारों पर हमला माना जाएगा; विरोध करें, तो पुराने ख्यालों का ठप्पा लग जाएगा। इस दोराहे पर खड़े एक शिक्षक की कहानी, जो न प्रेम का इज़हार कर सकता है, न इंकार—और जिसे हमेशा डर रहता है कि कहीं उसका वेलेंटाइन "निलंबन पत्र" न बन जाए!


विद्यालय के स्टाफ रूम में हिंदी के शिक्षक श्रीमान दीनदयाल जी की हालत उस नाविक जैसी थी जो बिना पतवार के नदी में बह रहा हो—पता नहीं किधर जाना है, किधर बह जाना है! वजह? आज वेलेंटाइन डे था! सुबह स्कूल गेट पर ही माहौल बदला-बदला सा दिखा। लड़कों के बाल ज्यादा चमकदार थे, लड़कियों की चोटी में रिबन की चमक बढ़ गई थी, और सबसे खतरनाक—हवा में गुलाब की महक तैर रही थी!

दीनदयाल जी का माथा ठनका—"हे भगवान! कहीं किसी ने मुझे गुलाब दे मारा तो?"  
समस्या गंभीर थी! 
अगर किसी छात्रा ने सम्मान में गुलाब पकड़ा दिया तो?  
अगर किसी ने फोटो खींचकर वायरल कर दिया तो?  
अगर कोई यूट्यूबर इसे "गुरुजी के गुलाबी अंदाज़" बना दे तो?  

शिक्षक का कैरियर वैसे भी अब सिर्फ मार्कशीटों, निरीक्षणों और व्हाट्सएप ग्रुपों की गुलामी तक सीमित था, अब कोई रोमांटिक विवाद और जोड़ना ठीक नहीं!  


कक्षा में घुसे तो माहौल और डरावना था। पहली ही सीट पर बैठी छात्रा ने पूछा—"सर, आज आपने किसी को गुलाब दिया?"  
पीछे से आवाज आई—"अरे सर! आप तो हिंदी वाले हैं, प्रेम पर पूरा भाषण मार सकते हैं!"  
एक लड़का बोला—"सर, आप तो कहते हैं कि साहित्य प्रेम का आधार है, फिर आप विरोध क्यों कर रहे?"  

दीनदयाल जी असली फंदे में थे। वे साहित्य पढ़ाते थे, लेकिन अब महसूस हो रहा था कि वे कहीं "पढ़ाते-पढ़ाते खुद पढ़े" न जाएं!  

उन्होंने गंभीर मुद्रा में कहा—"बच्चो, प्रेम का असली रूप त्याग है, समर्पण है, अनुशासन है!"  

पीछे से फुसफुसाहट हुई—"सर, हमसे ये सब मत कहिए! सीधा बताइए कि आज किसी ने आपको गुलाब दिया या नहीं?"  

उन्हें लगा कि अब बस गुलाब स्वीकारने और निलंबन पत्र स्वीकारने के बीच का फर्क खत्म हो चुका था।  

स्टाफ रूम में घुसे तो गणित के मिश्रा जी मजे ले रहे थे—"क्यों दीनदयाल जी! आज कोई 'लाल गुलाब' मिला या अब भी केवल लाल पेन से चिपके हो?" इतना सुनते ही चपरासी हाँफते हुए आया—"सर! प्रिंसिपल साहब बुला रहे हैं!"  

प्रिंसिपल ऑफिस में एक अभिभावक लाल-पीला होकर चिल्ला रहे थे—"हमारे बच्चे कह रहे हैं कि स्कूल में टीचर भी वेलेंटाइन डे मनाने लगे हैं!"  प्रिंसिपल की भौहें चढ़ गईं—"दीनदयाल जी, ये क्या हो रहा है आपकी कक्षा में?"  

अब उनके पास कहने को ज्यादा कुछ नहीं था।  
उन्होंने झुककर अपने बैग से परीक्षा कॉपियाँ निकालीं और बोले– "साहब! हम तो सालभर बस इन 'लाल गुलाबों' में ही उलझे रहते हैं!"

प्रिंसिपल साहब मुस्कुराए और बोले—"वैसे, दीनदयाल जी, यह वेलेंटाइन पर सबसे शानदार तंज है!"

सवाल ये नहीं कि शिक्षक को हक है या नहीं,
सवाल ये है कि गुलाब पे शक है क्यों सही?


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
 

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