शिक्षकों की चुप्पी: संकुचित होते विचार और घुटता संवाद

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शिक्षकों की चुप्पी: संकुचित होते विचार और घुटता संवाद


"वो बोलते थे, तो सवालों की धार होती थी,  
अब चुप हैं, तो चेहरों पर लाचारी की झलक है।"

एक समय था जब शिक्षक केवल किताबों और पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं थे। वे समाज के बौद्धिक स्तंभ थे, जो सिर्फ बच्चों को नहीं, बल्कि पूरे समुदाय को नई दिशा देने की क्षमता रखते थे। वे शिक्षण से आगे बढ़कर समाज की नीतियों, अन्याय और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं पर भी अपनी राय रखते थे। लेकिन आज हालात यह हैं कि राज्य पुरस्कार के लिए अपेक्षित आवेदन नहीं आ रहे, ARP जैसे पदों के लिए भी प्रचार-प्रसार करना पड़ रहा है, शिक्षक संकुल बस औपचारिकताएँ निभा रहे हैं, और इंचार्ज शिक्षक अपनी परेशानियों में उलझे हुए हैं।  


वर्तमान समय में शिक्षकों की चुप्पी केवल असहमति या उदासीनता का संकेत नहीं है, बल्कि यह उनके भीतर की घुटन, हताशा और विवशता का भी प्रतीक है। शिक्षक समूहों में संवाद की कमी, शैक्षिक सुधारों पर बहस की अनुपस्थिति और किसी भी मुद्दे पर निर्भीकता से आवाज उठाने का साहस खत्म होता दिख रहा है।  


पुरस्कृत करने की नहीं, प्रेरित करने की जरूरत  
राज्य पुरस्कारों के लिए आवेदन नहीं हो रहे, इसका एक बड़ा कारण यह है कि शिक्षकों को अब इनमें कोई सार्थकता नहीं दिख रही। पहले शिक्षक इन पुरस्कारों को एक सम्मान की तरह देखते थे, लेकिन अब यह केवल कागजी प्रक्रिया बनकर रह गए हैं। स्कूलों की वास्तविकता से अनजान लोग जब शिक्षकों को आंकते हैं, तो यह पुरस्कार प्रेरणादायक होने की बजाय महज एक औपचारिकता बन जाते हैं।  


ARP और शिक्षक संकुल: औपचारिक भूमिका या प्रेरणा स्त्रोत?
शिक्षा विभाग ने अकादमिक रिसोर्स पर्सन (ARP) और शिक्षक संकुल जैसी व्यवस्थाएँ बनाई थीं, ताकि शिक्षकों के बीच आपसी समन्वय बढ़े और वे एक-दूसरे के अनुभवों से सीख सकें। लेकिन आज स्थिति यह है कि इन भूमिकाओं को निभाने वाले शिक्षकों को भी व्यापक प्रचार-प्रसार करना पड़ रहा है। जब शिक्षक स्वयं इस पद में रुचि नहीं दिखा रहे, तो यह स्पष्ट है कि ये व्यवस्थाएँ शिक्षकों को वास्तविक सहयोग देने में विफल रही हैं।  


इंचार्ज शिक्षकों का बढ़ता बोझ 
विद्यालयों में इंचार्ज पद पर बैठे शिक्षक न प्रशासनिक स्तर पर पूरी शक्ति रखते हैं और न ही वे अपने सहकर्मियों के लिए आवाज उठा सकते हैं। वे स्कूल की जिम्मेदारियों के बीच फँसे रहते हैं, लेकिन निर्णय लेने की स्वायत्तता न होने के कारण वे स्वयं को असहाय पाते हैं। उनकी स्थिति ऐसी हो गई है कि न वे पूरी तरह शिक्षक रह गए हैं, न प्रशासक।  


शिक्षक समूहों की नीरवता: एक खतरनाक संकेत 
कभी शिक्षक समूहों में शिक्षा नीतियों, वेतन विसंगतियों, छात्रों की समस्याओं और सामाजिक दायित्वों पर लंबी चर्चाएँ हुआ करती थीं। लेकिन आज वहाँ एक अजीब सी चुप्पी है। न कोई प्रश्न उठ रहा है, न कोई बहस हो रही है। यह केवल संवादहीनता नहीं, बल्कि एक मानसिक थकान और हताशा का परिणाम है। शिक्षकों को बार-बार सरकारी फरमानों, प्रशिक्षणों, डेटा भरने की प्रक्रिया और अनावश्यक व्यवस्थाओं में इतना उलझा दिया गया है कि उनके पास अपनी बात कहने की ऊर्जा ही नहीं बचती।  


क्या यह चुप्पी स्थायी है?
शिक्षकों की यह चुप्पी सिर्फ एक अस्थायी दौर है या यह किसी गहरे बदलाव का संकेत है? अगर यह चुप्पी लंबी चलती रही, तो शिक्षा व्यवस्था में बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। शिक्षक अगर केवल सरकारी आदेशों के पालन तक सीमित हो गए, तो शिक्षा की आत्मा ही खो जाएगी।  

अब समय आ गया है कि शिक्षक अपने भीतर की आवाज को फिर से पहचानें, अपने विचारों को व्यक्त करें और अपनी भूमिका को दोबारा परिभाषित करें। यह चुप्पी सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पूरे समाज की बौद्धिक निष्क्रियता की ओर संकेत कर रही है। शिक्षक जब तक संवाद में नहीं आएँगे, तब तक वे स्वयं भी असंतोष में रहेंगे और शिक्षा भी अपनी दिशा से भटकती रहेगी।  

"जो अब भी चुप हैं, वो कब तक चुप रहेंगे,  
एक दिन सवाल उठेंगे, जवाब कौन देगा?"


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
 

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  1. बहुत स्पष्ट बात कही आपने

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