आठवां वेतन आयोग: खुशी के झूले, जलन के शोले

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आठवां वेतन आयोग: खुशी के झूले, जलन के शोले
 

आठवां वेतन आयोग घोषित होते ही सरकारी कर्मचारियों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। गुप्ता जी, जो अब तक गुमसुम रहते थे, अचानक कैलकुलेटर के पीछे लग गए। "भाईसाहब, मेरे हिसाब से तो 25% इंक्रीमेंट पक्का है," उन्होंने अपने सहकर्मी वर्मा जी से कहा। वर्मा जी ने तुरंत मोबाइल उठाया और AI से पूछ लिया, "भाई, बताओ तो सही, मेरी जेब कितनी भारी होने वाली है?" AI ने जवाब दिया, तो वर्मा जी का चेहरा ऐसे चमक उठा जैसे किसी ने नया वेतन कैश में दे दिया हो।  

लेकिन जहां एक तरफ ये खुशी थी, वहीं दूसरी ओर समाज के कुछ लोग इसे अपनी हार मान बैठे। गुप्ता आंटी, जो दिनभर खिड़की के पास बैठकर दूसरों की खुशियों को गिनने का काम करती थीं,  खिड़की से झांकते हुए बोलीं, "सरकारी कर्मचारियों को तो मुफ्त की रोटियां तोड़ने की आदत पड़ गई है।" गुप्ता अंकल ने तुरंत जोड़ा, "हमें तो बस टैक्स भरने के लिए पैदा किया गया है!"


सरकारी कर्मचारियों के घर का माहौल तो और भी दिलचस्प था। शर्मा जी की पत्नी ने सुबह से ही खर्चों की एक लंबी लिस्ट बनानी शुरू कर दी थी। "इस बार नया टीवी लेंगे, किचन में मॉड्यूलर सेट डालेंगे और बच्चों को महंगे वाले स्कूल में पढ़ाएंगे।" बच्चे भी सपने बुनने लगे, "पापा, इस बार नया प्ले स्टेशन तो पक्का?" शर्मा जी का माथा ठनका, "अरे, पहले नया वेतन तो आए, तब खर्चों की गिनती होगी।"  

उधर पड़ोसियों की जलन चरम पर थी। शर्मा जी की छत पर कपड़े सुखाते हुए वर्मा आंटी ने तंज कस दिया, "सरकारी कर्मचारी मतलब बैठे-बिठाए मालामाल। और हम? टैक्स भरने के लिए पैदा हुए हैं!"  

दफ्तर में भी माहौल कम दिलचस्प नहीं था। एक ओर कर्मचारी अपने अपने वेतन की बढ़ोतरी का गणित लगा रहे थे, तो दूसरी ओर बॉस ने काम का दबाव बढ़ाने का इशारा कर दिया। "देखिए, वेतन बढ़ा है, तो परफॉर्मेंस भी बढ़नी चाहिए। अब सब लोग काम की रफ्तार तेज करें!" कर्मचारी मन ही मन सोच रहे थे, "ये तो वही बात हो गई—वेतन बढ़ा नहीं, खर्चे और ताने पहले से ही बढ़ गए।"  

सोशल मीडिया पर भी जलती पर नमक छिड़कने का काम शुरू हो गया था। एक मीम वायरल हो गया, जिसमें सरकारी कर्मचारी एक सोने की कुर्सी पर बैठे दिखाए गए और उनके नीचे लिखा था, "पब्लिक के टैक्स की कमाई का असली हकदार।"  

वेतन आयोग सिर्फ वेतन वृद्धि ही नहीं, बल्कि सामाजिक भूचाल भी लाता है। पड़ोसियों की ईर्ष्या, समाज के ताने और घरवालों की उम्मीदों का बवंडर भी साथ लाता है। सरकारी कर्मचारी इस घोषणा के बाद खुद को बुरी तरह घिरा हुआ पाते हैं—एक तरफ जलन भरी नजरें, तो दूसरी ओर पत्नी और बच्चों की आसमान छूती इच्छाएं।  जहां कर्मचारियों के चेहरे पर खुशी होती है, वहीं समाज और पड़ोसी इसे जलन और कटाक्ष की नज़र से देखते हैं। अंततः, हर किसी की गणना और गिनती अपनी-अपनी होती है, लेकिन सरकारी कर्मचारी का जीवन 'तानों' और 'खर्चों' के बीच झूलता रहता है।


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।



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