संगम पर यूट्यूबरों का संग्राम
महाकुंभ का पवित्र आयोजन चल रहा है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर श्रद्धालु आत्मा की शुद्धि के लिए डुबकी लगा रहे हैं। साधु-संतों के अखाड़ों में हर-हर महादेव के जयकारे गूंज रहे हैं। लेकिन इस बार महाकुंभ का आकर्षण केवल आध्यात्मिक नहीं रहा। एक नई प्रजाति, जिसे यूट्यूबर कहते हैं, अपने कैमरे, ट्राइपॉड और ड्रोन के साथ संगम की शोभा बढ़ाने नहीं, बल्कि वायरल कंटेंट बनाने आई है।
संगम पर सुबह का दृश्य है। एक यूट्यूबर गंगा किनारे खड़ा होकर लाइव स्ट्रीम कर रहा है। “दोस्तों, आज हम आपको दिखाएंगे कि साधु-संत असली होते हैं या नकली। देखते रहिए, वीडियो लाइक करें, चैनल सब्सक्राइब करें।” लेकिन बेचारे को खुद ही यह नहीं पता कि संन्यास और दीक्षा में फर्क क्या होता है। कैमरे के पीछे उसका दोस्त फुसफुसाता है, “भाई, यह दीक्षा वाला क्या होता है?” यूट्यूबर जवाब देता है, “पता नहीं, लेकिन बोल दे, दर्शकों को समझ नहीं आएगा।”
उधर, एक और यूट्यूबर सुंदर साध्वियों की तलाश में कैमरा घुमाए घूम रहा है। “दोस्तों, देखिए! ऐसी साध्वियां शायद ही आपने कहीं देखी हों। ये रील जरूर लाइक और शेयर करें।” किसी महिला श्रद्धालु पर फोकस करते हुए वह कहता है, “ये तो साक्षात गंगा मैया की प्रतिमा लग रही हैं।” पास खड़े एक संत यह सुनकर गुस्से में आ गए। उन्होंने अपने चिमटे को घुमाते हुए कहा, “अरे बेटा! कैमरा छोड़, पहले अपने भीतर का गंद धो। संगम का मतलब समझता है या केवल टीआरपी का खेल करता है?”
संत का यह कहना था कि यूट्यूबर ने माफी मांगने के बजाय कैमरे का एंगल उनकी ओर घुमा दिया। “दोस्तों, एक्सक्लूसिव कंटेंट! संत ने हमें डांटा। ये वीडियो तुरंत वायरल होगा।” लेकिन संत ने सोचा कि ऐसे पाखंडियों के लिए चिमटा ही सही औजार है। अगले ही पल चिमटा यूट्यूबर की पीठ पर था। दर्द से बिलबिलाते हुए वह बोला, “वीडियो चल रहा है, मारो मत।!”
इस बीच, दूसरे यूट्यूबर ने इस घटना का वीडियो बना लिया। वह तुरंत अपने चैनल पर अपलोड करता है, “महाकुंभ में यूट्यूबर की चिमटे से पिटाई। देखिए, कैसे धर्म की रक्षा हो रही है।” इस कंटेंट पर कमेंट्स की बाढ़ आ गई। कोई लिखता है, “संत ने सही किया, ऐसे फालतू लोग सिर्फ तमाशा बनाते हैं।” तो कोई कहता है, “संगम पर आकर भी ये लोग कंटेंट के पीछे पड़े हैं, शर्म करो।”
इधर एक यूट्यूबर ड्रोन उड़ाते हुए संतों के शिविर में जा पहुंचा। उसने कैमरा घुमाते हुए कहा, “दोस्तों, ये देखिए, साधु-संतों का असली जीवन। ये खिचड़ी खा रहे हैं, और ये वो भभूत लगा रहे हैं।” तभी एक साधु ने गुस्से में कहा, “अरे, तुझे भभूत दिख रही है, पर तेरी बुद्धि का भूत नहीं दिख रहा? यहां धर्म और साधना की बात होती है, तमाशे की नहीं।”
संगम के किनारे यह दृश्य चल ही रहा था कि एक साधु ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, “भाइयों, यूट्यूबरों का धर्म क्या है? आत्मा की शुद्धि या केवल सब्सक्राइबर बढ़ाना? संगम पर आए हो, तो पहले खुद को सुधारो, फिर दुनिया को ज्ञान दो।” यह सुनकर कुछ यूट्यूबरों ने अपने कैमरे बंद कर दिए, लेकिन बाकी ने इसे भी वायरल करने का मौका समझा।
महाकुंभ अभी जारी है। श्रद्धालु स्नान कर रहे हैं, संत अपनी साधना में लीन हैं। लेकिन यूट्यूबरों का संग्राम भी उतना ही जोरों पर है। हर कोई अपनी-अपनी रील के लिए दौड़-भाग कर रहा है। कौन जाने, इनमें से कोई सच में संगम की डुबकी से आत्मा की शुद्धि कर पाएगा या चिमटे की एक और चोट उनकी समझ खोलेगी। लेकिन तब तक संगम पर धर्म और कंटेंट का यह अजीब संगम चलता रहेगा।
✍️ प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।