शिक्षा में समाधान तो तब होगा जब सिक्के का एक तरफ टेल होगा (कहानी)
शिक्षा नीतियों की गहराइयों में छिपे विरोधाभासों और शिक्षक की त्रासदी को उजागर करती यह कहानी, एक रिटायर्ड शिक्षक की नज़र से तंज और कटाक्ष का आईना पेश करती है। 'शोले' फिल्म के जय के सिक्के की तरह, जहाँ हर निर्णय पहले से तय है, शिक्षा प्रणाली भी वैसी ही दिखती है—सिर्फ हेड ही हेड। यह व्यंग कथा सवाल उठाती है: क्या कभी नीतियों का सिक्का ईमानदारी से पलटेगा?
रिटायर्ड शिक्षक शंभूनाथ जी ने अपनी ज़िंदगी का आधे से ज़्यादा हिस्सा कक्षा के ब्लैकबोर्ड और विद्यार्थियों के भविष्य के लिए समर्पित कर दिया था। पर अब जब वे सेवानिवृत्त हो चुके थे, उनके पास अनुभवों और सवालों का भंडार था। एक दिन मोहल्ले के कुछ नौजवान उनसे शिक्षा प्रणाली पर चर्चा करने आए।
शंभूनाथ जी हँसकर बोले, "भाई, शिक्षा नीति का हाल तो 'शोले' फिल्म के जय के सिक्के जैसा है। नीतियाँ बनती हैं, बड़े-बड़े भाषण होते हैं, पर जो भी निर्णय लिया जाता है, वो पहले से तय होता है। उस सिक्के की तरह, जिसमें दोनों तरफ हेड ही हेड है। जिम्मेदार कहते हैं, हेड आ गया, यानी सब कुछ सही दिशा में है। पर असल में क्या सही है, ये कोई नहीं जानता।"
एक युवा ने उत्सुकता से पूछा, "सर, ऐसा क्यों?"
शंभूनाथ जी ने ठंडी साँस ली। "नीतियाँ बनती हैं, पर शिक्षा का उद्देश्य समझने वाला कोई नहीं। कभी परीक्षा प्रणाली बदली जाती है, तो कभी पाठ्यक्रम। अध्यापक से कहा जाता है कि वह बच्चों को नैतिकता सिखाए, पर उन्हें संसाधन कौन देगा? बच्चों को रट्टा मारने को कहा जाता है, और फिर कहा जाता है कि वे रचनात्मक बनें। मतलब, सिक्का फेंको तो हेड ही आएगा, पर फैसला पहले से पक्का है।"
उन्होंने आगे कहा, "अब देखो, अध्यापक को टेक्नोलॉजी सिखाने का फरमान जारी होता है। पचास साल की उम्र में अध्यापक को कहा जाता है कि लैपटॉप सीखो। और फिर उसी अध्यापक से कहा जाता है कि वो अपने बच्चों को संस्कार भी सिखाए, परीक्षा भी करवाए, सर्वे भी भरे और चुनाव में ड्यूटी भी करे। बताओ, ये सिक्के की तरह हेड-हेड नहीं तो और क्या है?"
एक और युवक ने पूछा, "सर, इस समस्या का समाधान क्या है?"
शंभूनाथ जी ने मुस्कराते हुए कहा, "समाधान तो तब होगा जब सिक्के का एक तरफ टेल होगा। यानी शिक्षकों की बात सुनी जाएगी, नीतियाँ जमीन पर लागू होंगी और शिक्षकों को सिर्फ पढ़ाने का समय और सम्मान मिलेगा। पर फिलहाल तो शिक्षा के सिक्के की कहानी वही है—फेंको तो हेड, पलटो तो भी हेड।"
यह कहते-कहते उनकी आँखों में एक अजीब चमक थी। वे जानते थे कि शिक्षा का सुधार दूर की कौड़ी है, पर उनके शब्दों में तंज और कटाक्ष की ताकत थी।
✍️ प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।