शिक्षक पुरस्कारों के आवेदन के बोझ तले दबी शिक्षक गरिमा

0
शिक्षक पुरस्कारों के आवेदन के बोझ तले दबी शिक्षक गरिमा


खुद की प्रशंसा करने को मजबूर, वो क्या आदर्श बन पाएंगे,
खुद को ही साबित करने में जुटे, दूसरों को क्या सिखाएंगे।


आजाद भारत में शिक्षक समाज का सबसे बड़ा अपमान यही है कि सम्मानित होने के लिए स्वयं ही आवेदन करें, अपनी ही प्रशंसा के लिए सबूत जुटाएं, फोटो खिंचवाएं और वीडियो बनवाएं। यह प्रक्रिया न केवल शिक्षक की गरिमा पर प्रश्नचिह्न लगाती है, बल्कि इस पेशे के बौद्धिक स्तर को भी कटघरे में खड़ा करती है।


"मैं उत्कृष्ट शिक्षक हूं, मुझे सम्मानित करो" का यह उद्घोष, आत्मसम्मान से अधिक आत्ममुग्धता का परिचायक है। यह प्रक्रिया सवाल उठाती है कि शिक्षक पुरस्कारों का उद्देश्य क्या है? क्या यह शिक्षकों को प्रेरित करने के लिए है, या केवल चयन प्रक्रिया की खामियों से उपजे कृत्रिम सम्मान का एक हिस्सा है? यह प्रक्रिया अधिकांश शिक्षकों की मेहनत को नकारती है, बल्कि उन्हें एक आपसी प्रतिस्पर्धात्मक दायरे में डाल देती है, जो उनके पेशे की गरिमा को कम करता है।


यह स्थिति केवल आवेदन प्रक्रिया तक सीमित नहीं है। आवेदन स्वीकार होने के बाद भी कई बार साथी शिक्षकों और समाज में पुरस्कार पाने वाले शिक्षकों की उपलब्धियों पर विश्वास नहीं होता। यह पुरस्कार प्रक्रिया को नैतिक और व्यावहारिक रूप से खारिज करने का संकेत देती है। सबसे खेदजनक बात यह है कि जिन शिक्षकों को विशेष उपलब्धियों के आधार पर सम्मानित किया जाता है, उनके साथी शिक्षक और समाज तक उन पर विश्वास नहीं कर पाते। यह पुरस्कार उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बनने के बजाय, संदेह और आलोचना का कारण बन जाते हैं।

  
1950 से शुरू हुए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार का उद्देश्य था शिक्षकों के उत्कृष्ट प्रदर्शन को प्रोत्साहन देना। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह संख्या मात्र दो शिक्षकों को सम्मानित करने तक ही सीमित है, जो लाखों शिक्षकों के बीच से चुनी जाती है। परंतु जब चयन की प्रक्रिया में आवेदनकर्ता की आत्म-प्रशंसा, फोटो-वीडियो का निर्माण, और संस्तुति की दौड़ शामिल हो, तो यह शिक्षक के आत्म-सम्मान को झकझोर देती है। गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा संचालित सम्मान प्रक्रियाएं तो और भी चिंताजनक हैं। कई बार यह धन आधारित होती हैं, जहां "सम्मान" की बोली लगती है। ऐसे में यह सवाल उठता है: क्या एक योग्य और गरिमामय शिक्षक इस प्रकार से पुरस्कार लेना चाहेगा?  


वास्तव में, हर शिक्षक के लिए अपनी प्रशंसा में आवेदन करना आसान नहीं है। अगर यह प्रक्रिया इतनी सहज और सम्मानजनक होती, तो उत्तर प्रदेश के राज्य शिक्षक पुरस्कार में हर जनपद से एक शिक्षक को सम्मानित करने का लक्ष्य लेकर लाखों शिक्षकों में से मांगे गए आवेदन करने वालों की संख्या इतनी सीमित क्यों होती? बार बार आवेदन मंगाने के बावजूद हर जनपद से एक का लक्ष्य भी हर वर्ष पूरा नहीं हो पा रहा है। यह खुद प्रमाण है कि यह प्रक्रिया शिक्षकों के लिए एक कठिन मानसिक संघर्ष बन चुकी है। 


अधिकतर शिक्षक इस आवेदन प्रक्रिया में भाग नहीं लेते, क्योंकि उन्हें अपनी उपलब्धियों को साबित करने की यह प्रक्रिया आत्मसम्मान के विरुद्ध लगती है। वे मानते हैं कि उनकी काबिलियत उनके काम से झलकनी चाहिए। आधिकारिक प्रक्रिया के तहत, शिक्षकों को अपनी उपलब्धियां ऑनलाइन भरनी होती हैं। इसके लिए फोटो, वीडियो, और अन्य दस्तावेज जुटाने पड़ते हैं। ये सारी चीज़ें शिक्षकों के व्यावसायिक कर्तव्यों से अलग एक बोझ बन जाती हैं।

  
पुरस्कार प्रक्रियाओं को पारदर्शी और शिक्षक के आत्म-सम्मान को सुरक्षित रखते हुए पुन: संरचित करने की आवश्यकता है। शिक्षक समाज की गरिमा और उनके कार्यों का सम्मान सुनिश्चित करना हमारी शिक्षा प्रणाली की प्राथमिकता होनी चाहिए। पुरस्कारों की ऐसी प्रणाली जो आत्ममुग्धता को बढ़ावा देती है, उसे पुनर्गठित करना आवश्यक है। शिक्षकों को उनके कर्म और योगदान के आधार पर स्वतः सम्मानित किया जाना चाहिए, ताकि यह सम्मान उनके आत्मसम्मान और पेशे की गरिमा को और ऊंचा उठा सके।


जिनके द्वारा बच्चों का भविष्य पाला जाता है,
उन हाथों से ही प्रमाण मांगा क्यों जाता है।
सम्मान का सही अर्थ तभी समझ आएगा,
जब शिक्षक को सम्मान खुद चलकर आएगा।


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)