क्या बेसिक और माध्यमिक शिक्षा के बीच संतुलन बन पाएगा इस 'जुगाड़' व्यवस्था से?

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क्या बेसिक और माध्यमिक शिक्षा के बीच संतुलन बन पाएगा इस 'जुगाड़' व्यवस्था से?


"कागजों पर शिक्षा का दरिया बहता देखिए,  
मास्टर भी अब इधर-उधर जाता देखिए।"

शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे सुधार और निर्णयों की समीक्षा करते हुए कई बार हम ऐसे नवाचारों का सामना करते हैं, जो सुनने में बड़े आकर्षक और तात्कालिक समाधान प्रतीत होते हैं, लेकिन जब उन्हें वास्तविकता में लागू किया जाता है, तो उनकी बुनियादी कमजोरियां सामने आने लगती हैं। मुरादाबाद में बेसिक शिक्षकों को राजकीय इंटर कॉलेजों में पढ़ाने के लिए तैनात करने का आदेश इसी श्रेणी में आता है। 


शिक्षकों की कमी या प्रशासन की कमी?

शिक्षकों की कमी का यह मुद्दा सिर्फ मुरादाबाद तक सीमित नहीं है। प्रदेश भर में राजकीय इंटर कॉलेजों और हाईस्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 22,000 शिक्षकों के पदों में से लगभग 50% खाली पड़े हैं। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी भारी कमी आई कैसे? क्या यह महज संयोग है, या इसके पीछे वर्षों की प्रशासनिक लापरवाही और गलत योजनाएं जिम्मेदार हैं?

केंद्र सरकार की राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) के तहत पिछले 14 वर्षों में 1,489 नए राजकीय हाईस्कूल और इंटर कॉलेज खोले गए, लेकिन शिक्षकों की भर्ती में इस विस्तार का कोई ख्याल नहीं रखा गया। आप स्कूल खोलते गए, मगर शिक्षक देना भूल गए। यह तो ऐसा ही हुआ कि गाड़ी खरीद ली, लेकिन ड्राइवर रखना भूल गए।


बेसिक शिक्षक: नए बोझ तले दबे

अब बेसिक शिक्षकों को राजकीय स्कूलों में पढ़ाने का आदेश जारी किया गया है। जब इन शिक्षकों ने खुद बेसिक शिक्षा के कठिन परिश्रम से जूझते हुए छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी संभाली है, तो अब उन्हें माध्यमिक स्तर पर भी काम करने के लिए भेजा जा रहा है। यह पूरी व्यवस्था एक पंच लाइन की तरह है, जहाँ "चलता है" वाली मानसिकता हर निर्णय का आधार बन चुकी है।

प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक असोसिएशन के अध्यक्ष विनय कुमार सिंह का तंज बिल्कुल सही है: "अगर बेसिक शिक्षकों को माध्यमिक विद्यालयों में भेजा जाएगा, तो क्या राजकीय शिक्षकों को भी बेसिक स्कूलों में भेजा जाएगा?" अगर यह सहयोग दोतरफा होता, तो शायद सवाल उठते नहीं, लेकिन यहाँ तो ऐसा लग रहा है कि बेसिक शिक्षक एक ऐसी गाड़ी बन गए हैं, जिसे हर मोड़ पर घसीटा जा रहा है।


शिक्षा की गुणवत्ता: प्राथमिकता या मजाक?

एक और गंभीर सवाल उठता है कि आखिर प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता का क्या होगा? 'निपुण भारत' जैसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम चल रहे हैं, जिनका उद्देश्य छात्रों में प्रारंभिक शिक्षा के स्तर को सुधारना है। लेकिन जब बेसिक स्कूलों के शिक्षक माध्यमिक स्कूलों में व्यस्त हो जाएंगे, तो इन लक्ष्यों का क्या होगा? यह तो वैसा ही है जैसे प्यासे को कुएं पर भेजने की बजाय पानी का लोटा लेकर दूसरे गांव भेज दिया गया हो। 

शिक्षकों की कमी के इस मसले पर ध्यान न देकर इसे बस ‘इधर-उधर’ के तात्कालिक प्रबंधों से हल करने की कोशिश की जा रही है। सवाल उठता है कि क्या यही हमारी शिक्षा नीति की प्राथमिकता है? शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति की जगह अस्थायी तैनातियों और जोड़-तोड़ से काम चलाने की प्रवृत्ति केवल आग बुझाने जैसा काम है, लेकिन जड़ से समस्या को खत्म करने की कोई योजना नहीं दिखती।


दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता

"फैसलों की भूल में, कब तक यूँ उलझेंगे,  
शिक्षा की राहों में, कब तक यूँ भटकेंगे।"

शिक्षा नीति का यह समय आत्ममंथन का है, जहाँ हमें यह तय करना होगा कि हम तात्कालिक समाधानों के भरोसे ही आगे बढ़ेंगे, या फिर इस शिक्षा व्यवस्था को सही ढंग से सुधारने के लिए गंभीर और दीर्घकालिक योजनाएं बनाएंगे।

शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार की अस्थायी व्यवस्थाएं शिक्षा की गुणवत्ता पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकती हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि राज्य सरकार जल्द से जल्द शिक्षकों की स्थायी भर्ती की प्रक्रिया शुरू करे, ताकि इस समस्या का स्थायी समाधान निकल सके।

बेसिक शिक्षकों की ड्यूटी माध्यमिक विद्यालयों में लगाने से दोनों स्तरों की शिक्षा प्रभावित होगी, और इस प्रकार की व्यवस्था से छोटे स्कूलों की स्थिति और गंभीर हो सकती है। इस प्रकार की अस्थायी व्यवस्था केवल तात्कालिक राहत देती है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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