प्रवीण तुम बदल गए हो,
अब तुम अन्याय के खिलाफ नहीं बोलते,
पहले तुम हमेशा बोलते थे,
अन्याय के खिलाफ खड़े होते थे,
लेकिन अब तुम चुप हो,
अन्याय के खिलाफ नहीं बोलते,
क्या हुआ तुम्हें प्रवीण,
तुमने अपना कर्तव्य क्यों छोड़ दिया,
क्या तुम अब डर गए हो,
कि तुम्हारे साथ कुछ हो जाएगा,
या तुम अब स्वार्थी हो गए हो,
और तुम्हारी कोई चिंता नहीं है,
प्रवीण तुम जाग जाओ,
और फिर से अन्याय के खिलाफ खड़े हो जाओ,
या तो तुम एक सच्चे इंसान नहीं हो,
या तो तुम एक सच्चे शिक्षक नहीं हो।
✍️ प्रवीण त्रिवेदी