बुजुर्गो का तिरस्कार, कौन जिम्मेदार

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हमारा समाज भले ही मातृ देवो भव और पितृ देवो भव की माला जपता रहता है, लेकिन बुजुर्गो के हालात पर संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय समाज में बुजुर्गो को परिवार से मिलने वाले सम्मान में कमी आती जा रही है। अधिकतर भारतीय बुजुर्ग अपने ही घर में उपेक्षित और एकाकी जीवन जीने को अभिशप्त हैं।
देश में बुजुर्गो की आबादी तेजी से बढ़ ही रही है। पिछले एक दशक में भारत में वयोवृद्ध लोगों की आबादी 40 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। आगे आनेवाले दशकों में इसके 45  प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। दुनिया के ज्यादातर देशों में बुजुर्गो की संख्या दोगुनी होने में सौ से ज्यादा वर्ष का समय लग गया, लेकिन भारत में सिर्फ 20 वर्षो में ही इनकी संख्या लगभग दोगुनी हो गई। 

गौरतलब है कि आज आदमी की औसत आयु बढ़कर 70 साल से ज्यादा हो गई है। वर्तमान दौर में बढ़ती हुई महंगाई, परिवार द्वारा क्षमता से ज्यादा खर्च और कर्ज से गड़बड़ाते बजट का प्रभाव बुजुर्गो के जीवन पर भी पड़ रहा है। साथ ही हमारी आर्थिक और वित्तीय नीति भी बुजुर्गो को कोई सहारा नहीं दे पा रही है।

बुजुर्गो की देखभाल में वित्तीय बाधाएं अक्सर आड़े आती हैं। आम तरीके से एक सामान्य परिवार अपने कुल खर्च का लगभग 15 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल पर खर्च करता है। अगर परिवार में कोई बुजुर्ग सदस्य है तो यह खर्च डेढ़ से दो गुना हो जाता है। इस खर्च में एक बड़ा हिस्सा दवाओं पर खर्च का होता है। दिलचस्प बात यह है कि भारत दुनिया में सस्ती जेनेरिक दवाओं के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है, फिर भी यहां पर दवाओं पर खर्च अधिक है। 



सरकारों ने बुजुर्गो को पेंशन की सुविधा दी है, पर वह भी नाकाफी साबित हो रही है। केंद्र सरकार द्वारा वृद्धों के भरण-पोणण के लिए कानून बनाए गए हैं, मगर वे फाइलों की धूल चाट रहे हैं। नतीजन लोग कानूनों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। सरकार को सख्ती से ऐसे कानून लागू करने चाहिए, ताकि वृद्धों को उनका हक मिल सके। जबतक बुजुर्गो को उनका सम्मान नहीं मिलेगा, तबतक रस्मी तौर पर हर साल वृद्ध दिवस मनाने की कोई सार्थकता नहीं होगी।  

प्रत्येक वर्ष 1 अक्टूबर को विश्व वृद्ध दिवस मनाया जाता है, मगर ऐसे आयोजन औपचारिकता भर रह गए हैं। बुजुर्ग किसी दूसरे द्वारा नहीं, बल्कि अपनों के कारण ही उपेक्षित हैं। शायद यह उनका दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिन बच्चों के लिए अपना पेट काटकर उनका पालन पोषण किया, आज वही  उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर कर रहे हैं। 

यह भी देखने में आता है कि गरीब लोग तो माता-पिता और अपने बुजुर्गो की अच्छी सेवा करते हैं, मगर साधन संपन्न लोगों द्वारा आज बुजुर्गो को ओल्ड एज होम तथा सरकार द्वारा बनाए गए वृद्ध आश्रमों के हवाले कर दिया जा रहा है। कुछ बुजुर्ग तो घर में ही कैद होकर रह गए हैं। वे गुमनामी के अंधरे में जीने को मजबूर हैं।

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6Comments
  1. चिंताजनक.....

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  2. जरुरत परिवार को समझने की है कि बुजुर्ग कितने महत्वपूर्ण हैं,चाहे वृद्ध आश्रम खोल दें या सरकार से पेंशन दिला दें लेकिन उन्हें वह सम्मान और मानसिक संतुष्टि तो नहीं मिलेगी जिसके वे हकदार हैं. बच्चों को ही यह समझने की जरुरत है व उनमें ऐसे संस्कार विकसित करने की भी.अन्यथा सामाजिक ढांचा छिन्न भिन्न हो जायेगा , विदेशों की सी हालत हो जाएगी ,जो निश्चित ही चिंतनीय है

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  3. वैसे इस पिछली पीढ़ी ने अपने से पहले की पीढ़ी की दुर्गति प्रारम्भ कर दी थी। सो झेलना तो उनको है ही!

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  4. Manavta ko Anne andar jagana hoga

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