मेरे 'गुरु' श्री त्रिलोकी नाथ द्विवे |
आज की पोस्ट हमारे 'गुरु' श्री त्रिलोकी नाथ जी द्विवेदी पर है, जो पूर्व में एक सहायता प्राप्त विद्यालय में अध्यापक रहें हैं। बाद में नायब तहसीलदार में चयन के बाद प्रोन्नति उपरान्त आज अपने प्रशासनिक पद से सेवा-निवृत्ति प्राप्त कर रहे हैं। राजस्व प्रशासनिक जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी अपने स्वभाव, मूल्यों और सिद्धांतों से परे कभी नहीं हटे। जाहिर है जैसा पराभव का काल आज है, उसमे इन पदों में रह कर स्वयं की 'गुरुता' बचाए रखना भी बहुत बड़ा कार्य है। इस अवसर पर जल्दबाजी में ही सही यह समर्पण पोस्ट आप सब के समक्ष प्रस्तुत है। जीवन के उनके साथ बिठाये उन पलों को याद करना बहुत आसान है, क्योंकि बहुत कुछ कहे बगैर आचरण से भी सीखा जा सकता है और मेरे गुरु का आचरण और चरित्र ही मेरा असल 'गुरु' कहा जा सकता है।
हमें आप पर गर्व है, कि आप हमेशा 'गुरु' बने रह पाए!
गुरु वही जो ज्ञान दे बदले समाज ये ध्यान दे
अनुभव कराये ज्ञान का जीवन को इक पहचान दे
आत्म ज्ञान सबसे बड़ा पर तीन शर्तें हैं जुडी
जिज्ञासा का भाव हो और दोष मिट जाए सभी
सार यही जीवन का है पितु मातु गुरु को मान दें
उत्सव मने हर पल तभी और स्वयं को सम्मान दे
गुरु वही जो ज्ञान दे बदले समाज ये ध्यान दे
अनुभव कराये ज्ञान का जीवन को इक पहचान दे
(साभार: दीपक सक्सेना @ रीडर्स ब्लॉग)
जिज्ञासा का भाव हो और दोष मिट जाए सभी
सार यही जीवन का है पितु मातु गुरु को मान दें
उत्सव मने हर पल तभी और स्वयं को सम्मान दे
गुरु वही जो ज्ञान दे बदले समाज ये ध्यान दे
अनुभव कराये ज्ञान का जीवन को इक पहचान दे
(साभार: दीपक सक्सेना @ रीडर्स ब्लॉग)
कभी मार्गदर्शक तो कभी माँ बाप सा डांटता।
मष्तिष्क के कोरे पन्नों में ज्ञान के अक्षर सजाता।
लडखडाते क़दमों को चलना सिखाता।
कभी अन्धकार में दिए सा कभी प्यास में पानी सा,
ऊँचे आकारों और विचारों को धरती पर चलवाता।
दूर खड़ा छिपा मेरी प्रगति को निहारता,
(मेरा घर का नाम)
हालाँकि यह शायद सबसे आपद पोस्ट है जिसे तुरंती में लिखा जा रहा है। बहुत दिनों से अपनी निष्क्रियता से परे औपचारिक पोस्ट्स को भी लिखने की शुरुआत करना चाहता था ....उसके लिए नया-वर्ष ही चुन रखा था, लेकिन आज से अच्छा और बढ़िया मौक़ा नहीं होई सकता है। आज मेरे गुरु रहे श्री त्रिलोकी नाथ द्विवेदी अपने प्रशासनिक पद से सम्मान पूर्वक सेवा-निवृत्त हो रहे हैं ....जाहिर है आम तौर पर सेवानिवृत्ति आराम और विराम से ना चाहते हुए भी जुड ही जाती है ....पर अपने गुरु जी के बारे में मैं आश्वस्त हूँ कि यहाँ से उनकी एक नई शुरुआत होगी।
हालाँकि अपने गुरु पर एक नहीं कई पोस्ट बनती हैं पर ऐसे उत्साह के मौके पर ...और आप सब सच मानिए कि यह उत्साह का ही मौका है। लेकिन पता नहीं क्यूं.....आप सबसे परिचय और अपनी औपचारिकता में इस समर्पण पोस्ट से ही आपको इसे इसी रूप में स्वीकार करना होगा।
मुझे याद पड़ता है कि मेरे दीदी को घर पर पढाने के लिए कैसे हमारे पापा परेशान थे और कैसे वह घर पर आकार समय देते थे .....कैसे बगैर धन और गुरु-दक्षिणा के वह नियमित पढाने आते रहे ......याद ही नहीं कि कब और कैसे उन्होंने ही मुझे भी अपने पास बुला और बैठा स्वयमेव पढ़ाना शुरू कर दिया .....कैसे वह अपनी नई जिम्मेदारी ( अध्यापकी के बाद नायब तहसीलदार जैसे थकाऊ पद ) से कानपुर से फतेहपुर वापस आ कर सीधे स्टेशन से हमारे घर आते दीदी को और हमें पढ़ाते.....और फिर रात दस बजे के बाद अपने घर जाते।
उफ़ यादों का यह सिलसिला शुरू हुआ तो पता नहीं खत्म कर पाऊंगा भी कि नहीं?
बेहतर है कि आपसे विदा ले "इलाहाबाद" पहुंचू ......जहाँ से आज हमारे गुरु जी विराम ले कल से नई पारी की शुरुआत करेंगे।
!! जय जय !!
एक प्रेरणादायी व्यक्ति से परिचय करवाने के लिए बहुत धन्यवाद मा स्साब ।
ReplyDeleteप्रेरणादाई व्यक्तित्व को प्रणाम
ReplyDeleteगुरु ही हमारे जीवन को दिशा देने वाले होते हैं,इस नाते उनका मार्गदर्शन निश्चित ही उल्लेखनीय होता है !
ReplyDeleteआपके गुरुजी को मेरा भी प्रणाम !
नए वर्ष की सक्रिय-कामना के साथ !
गुरुवर को हमारा नमन...
ReplyDeleteकिसी ने सच कहा है ... गुरु गुरु ही रह जाते हैं चेला शक्कर हो जाता है.... :)
मतलब इसे ऐसे भी कह सकते हैं.... 'द्विवेदी द्विवेदी ही रह गये लेकिन उन्होंने चेले को त्रिवेदी बना दिया.' ... :))
मनीष जी,
आपको आदर्श गुरु मिले तभी आज भी आप एक अच्छे शिक्षक की भूमिका निभा रहे हैं.
एक और ठिठोली करने का मन है...
आगे हमें आपके किसी 'चतुर्वेदी' शिष्य का इंतज़ार रहेगा. :)
आपके प्रेरणास्पद गुरु जी को नमन! उनके जीवन की नयी पारी शानदार रहे ! उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिये मंगलकामनायें।
ReplyDeleteआज कल प्रेरणा के ऐसे स्रोत बिरले ही मिलते हैं, मेरा भी प्रणाम।
ReplyDeleteआप दोनों गुरु शिष्य को अशेष शुभकामनायें !
ReplyDeleteगौर तलब है कि ईश्वर ने गुरु को गुड़ और चेले को शक्कर वाली कहावत पहले ही चरितार्थ कर रखी है ! अब देखिये ना गुरु जी द्विवेदी रह गये पर चेला त्रिवेदी हुआ :)
आप सभी को धन्यवाद !
ReplyDelete@अली सा'ब और @प्रतुल जी!
हम क्या कहें? आप दोनों के प्रश्न और उत्तर एक साथ पढ़ने के बाद हमारे कहने के लिए कुछ बचता कहाँ? :-)