शिक्षक भाई-बहनों से गिजुभाई बधेका की अपील |
गिजुभाई का
बालदर्शन
उस प्रकार का बालदर्शन नहीं था, जो किसी जटिल विचार की स्थापना करता
हो। गिजुभाइ बालदर्शन का कोई सिद्धान्त भी प्रतिपादित नहीं करते। वे तो बच्चों
में इस प्रकार प्रवेश करते हैं जैसे कोई किसी मन्दिर में प्रवेश करता हो। वे बाल
छवि देखकर मुग्ध होते हैं, आंखों में झांक कर उसके सपनों को पढ़ते हैं, उसकी वाणी
सुनकर कोमलता का मधुर संगीत सुनते हैं और उसे खेलते, काम करते, उछलते, कूदते या
गाते देखकर उसके साथ एकाकार हो जाते हैं। उनके लिए बालक या बालिका एक सम्पूर्ण
मानवीय कृति होते हैं। वे बच्चों का तन पढ़ते हैं, बच्चों का मन पढ़ते हैं और उसका
जीवन पढ़ते हैं।
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गिजुभाई का दर्शन और बाल-मनोविज्ञान शैक्षिक दृष्टिकोण से उत्तम कोटि का है.वस्तुतः शिक्षा में कई सारे घटक एक साथ काम करते हैं,इनमें आजकल राज्य की भूमिका सबसे अधिक साबित हो रही है और दुःख की बात यह है कि इस स्तर पर घोर निराशा का आलम है !
ReplyDeleteजहाँ स्कूलों में बच्चे हैं वहाँ बुनियादी चीजें गायब हैं और जहाँ बुनियादी चीज़ें हैं वहाँ सिस्टम की गडबड है या बच्चे नहीं हैं !
बहुत सुन्दर... !
ReplyDeleteकाश नक़्कारखाने में इस तूती की आवाज़ भी सुनाई दे. आज शहरों में बस विदेशी कार्टून और हैरी पाटर सरीखी कहानियों को चलन रह गया है...
ReplyDeleteकहानी के लिए तो हम खुद ही बच्चे हो जाएँ !
ReplyDeleteआपके प्रयास बहुत सराहनीय हैं... न केवल बालकों को प्रेरित करते हैं. बालकों से जुड़े कर्ताओं को भी निर्देशित करते हैं.
ReplyDeleteभाई ,सबसे पहले मेरी टीप थी,अब गायब है ! क्या कर रहा है गूगल ब्लॉगर के साथ ?
ReplyDeleteबहरहाल,गिजुभाई ने जिस तरह का दृष्टिकोण बच्चों के लिए रखा था,वह आदर्श स्थितियों के लिए था.आज के समय में राज्य की गलत नीतियां व दखलंदाजी पूरी शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर रही है.
जितने बड़े लबादे ओढ़ दिये हैं, वह तो उतारने पड़ेंगे।
ReplyDeleteबच्चे कहां पढ रहे हैं जो शिक्षक पढें? आज चिल्ड्रन फिल्म फ़ेस्टिवल के लिए भी बच्चे उपलब्ध नहीं हैं:(
ReplyDeleteसार्थक अपील !
ReplyDeleteदुआ बस यही है ऐसे प्रयोग करने वाले बेवकूफ ना समझे जाये!
प्रवीणजी निश्चित रूप से एक शिक्षक होने के नाते इन कहानियो को अपने छात्रो को समयानुसार जरुर सुनाउंगा । आपके प्रयास वाकई मे बहुत सराहनीय हैं....
ReplyDeletehttp://www.sheelgupta.blogspot.com