आजादी रोटी नहीं, मगर दोनों में बैर नहीं।पर कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं।।
- दिनकर
आजादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहाँ जुगाएगा ?
मरभुखे ! इसे घबराहट में तू बेच न तो खा जाएगा ?
आजादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई बैर नहीं,
पर कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं।
हो रहे खड़े आजादी को हर ओर दगा देनेवाले,
पशुओं को रोटी दिखा उन्हें फिर साथ लगा लेनेवाले।
इनके जादू का जोर भला कब तक बुभुक्षु सह सकता है ?
है कौन, पेट की ज्वाला में पड़कर मनुष्य रह सकता है ?
झेलेगा यह बलिदान ? भूख की घनी चोट सह पाएगा ?
आ पड़ी विपद तो क्या प्रताप-सा घास चबा रह पाएगा ?
है बड़ी बात आजादी का पाना ही नहीं, जुगाना भी,
बलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी।
- दिनकर
१५ अगस्त की याद में ..!!!
करते रहो याद महाराज.....जब हमारी दास्तां भी न होगी दास्तानों में !
ReplyDeleteबड़ा कठिन समय है जब हमें आज़ादी पाने नहीं बल्कि बचाने की लड़ाई अपनों से ही लड़नी पड़ रही है !
इस भूख ने हॊ तो मुंह इतना बडा कर दिया देसी बैंक भी बस नहीं हो रहे हैं :)
ReplyDeleteराष्ट्रकवि दिनकर के गुजरने के बाद उनके एक अनन्य मित्र ने तानाशाही बनाम रोटी और आजादी की लडाई की रहनुमाई की । यही आवाहन था लोकनायक का 'रोटी और आजादी को चुनो' ।
ReplyDeletebilkul sahi kaha apane , pet kee bhookh ke age aazadi nahin dikhai deti hai ajadi to unaki hai jo jaise chahe apane pet bhar rahe hain chahe daulat se ya phir havas se.
ReplyDeleteयह कृति आज भी उतनी ही सामयिक है, धन्यवाद!
ReplyDeleteबलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी।
ReplyDeleteवही काल -बेला आ गयी है!कालबेलिया नाग नाथने का प्राण ले चुका है