मेरा पुत्र है तो वह पार्टी में शामिल है ही उसे विधिवत पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में जिस प्रकार की घोर मनमर्जीशाही चल रही है, उसके लिए किसी सर्वथा नए उदाहरण की कोई विशेष आवश्यकता नहीं थी; फिर भी जिस अंदाज में बिहार में लालू प्रसाद यादव ने अपने बेटे तेजस्वी यादव की ताजपोशी की है, यह किस्सा भी बेशर्म भारतीय राजनीति में निर्लज्जता के सबसे बड़े अध्यायों में अपनी जगह बनाएगा। इससे पहले भी इस तरह के कई लज्जाजनक उदाहरण हमारे सामने आते रहें हैं। गांधी, पायलट, पवार, सिंधिया, अब्दुल्ला, मुलायम सिंह यादव, पटनायक, मारन, करुणानिधि, रेड्डी, ठाकरे.....लिखते रहिए और गिनते रहिये। भारतीय राजनीति में वर्चस्व जमाए परिवारवाद अंतहीन सूची! हकीकत तो यही है कि यह किसी एक दल या राज्य में थमने वाली नहीं। वंशवाद की यह परम्परा हमारी राजनीति में एक खतरनाक बीमारी की तरह फैलती जा रही है, जो भारतीय लोकतंत्र की बेशर्म राजनीति का आवश्यक अंग बनती जा रही है|
मेरी नाराजगी का सबसे बड़ा कारण तो यह है कि उन्होंने फिर एक बार फिर हम जैसे निष्क्रिय लोगों को लगभग तमाचे मारते हुए एक निर्लज्ज सच का आईना दिखा दिया है। हमें यह एहसास कराया गया है कि जिस लोकतंत्र और चुनावी कसरत को हम दुनिया के सबसे विविधतापूर्ण लोकतान्त्रिक ढाँचे के रूप में स्वयं की पीठ थपथपाते हुए कभी नहीं थकते, वह दरअसल एक कठोर और क्रूरतम निर्लज्जता से अधिक और कुछ नहीं है। दरअसल हम जैसे लोकतांत्रिक रूप से अक्षम लोग ऐसे ही नेताओं को ही ढोने को अभिशप्त हैं।
एक बच्चे के रूप में तेजस्वी को समझें तो कहा जा सकता कि गलती उसकी नहीं है। लालू जी ने उसको इतना समय और मौक़ा ही नहीं दिया कि वह दुनिया को दिखा पाता कि उसमें नेतृत्व के कितने गुण हैं और सार्वजनिक जीवन में उसकी कितनी दिलचस्पी है? हालांकि लालू जी के साए में पले बढे एक नेता पुत्र से ज्यादा क्या उम्मीदें बाँधना?
लालू जी ने दरअसल गलत क्या किया है? ठीक.....उनसे पहले मुलायम सिंह यादव ने भी क्या यही नहीं किया था?.........और तो और असल में "गांधी" परिवार ने भी तो देश की राजनीति को यही रास्ता दिखाया है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कौन-सा ऐसा बड़ा कद्दावर नेता है, जिसने अपनी नस्ल और परिवार को आगे नहीं बढ़ाया है?
शायद लालू जी कुछ ज्यादा ही दूरदर्शी हैं।...तभी तो कोई उत्तराधिकार के झगडे और झंझट से पहले ही उन्होंने अपना बाध्यकारी फैसला सुना दिया। लालू जी की तरह देश में सैकड़ों अन्य ऐसे राजनीतिक परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र का अपहरण कर के उसे अपने परिवार की राजनीतिक रखैल बना कर रखा हुआ है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी त्रासदी है यही है कि हमारे नेताओं ने इस देश की आम जनता और हमारे लोकतंत्र को जैसे अपनी व्यक्तिगत पूंजी ही समझ लिया है। ऐसे निर्लज्ज नेता.........अपने पाल्यों के नाम पूरे देश को ही वसीयत करने को ही जैसे तैयार बैठे हैं?
आपकी शिकायत और आपका गुस्सा ज़ायज है,पर इसे समझना कोई नहीं चाहता.आज की राजनीति में परिवारवाद बुरा नहीं है क्योंकि अब वह समाजसेवा न होकर एक संगठित उद्योग का रूप ले चुकी है. अब तो जिसे जनता हाथों-हाथ लेगी ,वही 'वारिस' यहाँ टिक पायेगा...आपकी सूची में कुछ दक्षिण-पंथी नाम छूट गए हैं,मैं समझता हूँ ,ऐसा केवल 'संयोग' से हुआ होगा.आज किसी का दामन पाक-साफ़ नहीं है,फिर भी परिवार के नाते यदि कोई आगे आता है तो यह महज़ उसका दोष नहीं माना जाना चाहिए,अगर उसमें 'करिश्मा' होगा तो चलेगा,नहीं तो फुस्स हो जायेगा.
ReplyDeleteगाँधी-परिवार का 'करिश्मा' चल रहा है तो इसमें किसका दोष है ?
@संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
ReplyDeleteमैं मानता हूँ कि वाम दल और कुछ हद तक भारतीय जनता पार्टी ही वंशवाद की इस राजनीति से बची हुई है। भाजपा में अगर बवाल खड़ा होता है, तो राजनाथ सिंह के पुत्र का नाम टिकट मिलने वालों की सूची से कट जाता है।...फिर भी यदि आप इसे छूट देने का संयोग ही समझे तो ऐसे तथाकथित दक्षिण-पंथी भी इस दोष से ना तो पूर्णतयः अछूते हैं और ना ही पाक साफ़ !
......रहा सवाल करिश्मे का ....तो यह करिश्मा दिखाना भी तो लेवल प्लेयिंग फील्ड आधारित हो ?
अब तो ये पुरानी बात हो गयी , हम भारतीय अपने वोट कि शक्ति को कमजोर करते गये और ये तथाकथित जनसेवक मजबूत होते गये !
ReplyDeleteआपका आलेख बेहद क्रांतिकारी है. क्रान्ति की आवश्यकता भी है तभी ये नासूर मिटेंगे.
ReplyDeleteश्रीमान जी ,
ReplyDeleteआपने लिखा और मेरे जैसे पड़े लिखे लोगो ने पड़ा और अपनी प्रतिक्रिया भी दी . सबने एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा दिया या लेख कि प्रसंसा कर दी और इतिश्री हो गयी .
जिस प्रकार से एक घर को चलानेके लिये या देश को चलाने के कुछ मुलभुत चीजो कि आवश्कता है , अगर इस आग को देहात में पहुजाई जाये तो आपका लिखा गया लेख
एक क्रांति ला सकता है पर इसको जन साधारण तक ले जाने और सरकार को चुनने बाले वोटर को शिक्सित करना भी हम शिक्सित लोगो का कर्तव्य है
बन्धु! मुझे लोकतंत्र का यह मॉडल ही गलत लगता है। कितने प्रतिशत मतदान होता है? और उसका कितना प्रतिशत मत पाने वाले हम पर 63 वर्षों से शासन कर रहे हैं? अल्पमत द्वारा हमलोग शासित रहे हैं जिसके परिणाम हैं कांग्रेस वंशवाद, लालू, मुलायम, करुणानिधि और जाने कितने ही! लोकतंत्र के नाम पर यह बहुत व्यापक षड़यंत्र है।
ReplyDeleteइन लेखों को पढ़िए:
http://girijeshrao.blogspot.com/2009/04/blog-post.html
http://girijeshrao.blogspot.com/2009/04/2.html
http://girijeshrao.blogspot.com/2009/05/blog-post.html
अब तो हर नेता ताजपोशी में लगा हुआ है और जनता इनकी गुलपोशी भी कर रही है......... यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा ॥
ReplyDeleteयह लोकतंत्र का शोकमंत्र है।
ReplyDeleteअब तो यदि कोई नेता अपना युवराज न बनाये ‘तो’ आश्चर्य होता है। कांग्रेस ने जो परंपरा बनायी उसे दूसरे क्षत्रप भी अपना रहे हैं। वैसे भी खानदान में यदि कोई इस लायक हो गया तो अपनी आगे की पीढि़यों के लिए अपनी विरासत तो छोड़ेगा ही। किसी बाहरी को बागडोर सौंप दे तो उसका नामलेवा कोई नहीं रह जाएगा। फेमिली बिजनेस है जी।
ReplyDeleteविडंबना यह है कि यह जनता इसे पर्याप्त समर्थन देती रहती है।
इन की बीबियां आये या बच्चे लेकिन जनता को जागरुक होना चाहिये, ओर इन की ओकात देख कर इन्हे वोट ही मत दो , मांगने आये तो सब मिल कर जुते मारो. इस से बढ कर कोई दुसरा इलाज नही इन बिमारी का
ReplyDelete@राम त्यागी
ReplyDeleteमुझे लगता है दिन प्रतिदिन इनके हथकंडे नए और खूंखार होते जा रहे हैं !
@P.N. Subramanian
क्या हमारा समाज क्रान्ति के लिए तैयार है ...या किया जा सकता है? ...इस पर मुझे सन्देश है !
@chankya
निश्चित रूप से कार्यरूप देने का आग्रह सही है ...पर गावं और देहात में यह कलुषित मानसिकता और अधिक घर कर गयी है .....अतः यह उतना आसान नहीं दिखता !
@गिरिजेश राव
एक सीमा के बाद अगर सुधार की कोई गुंजाइश ना हो तो चल रहे राजनैतिक ढांचें पर संदेह वाजिब ही है !
सबके बच्चे अपने परिवार का व्यवसाय अपनाते है अगर नेता का बच्चा ये करे तो बुराई नहीं है ये तो जनता का फर्ज है ना जो काम ना करे उसे वोट मत दो गलत का चुनाव करके गलती तो जनता कर रही है दो चार नेता पुत्र जब हारेंगे तो सब लाइन पर आ जायेंगे |
ReplyDelete@cmpershad
ReplyDeleteसचमुच यह दुर्भाग्य ही है ...और ऐसे दुर्भाग्य को हम नियति माने बैठे हैं ....इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या?
@प्रवीण पाण्डेय
शायद ...अब समय आ गया कोई दूसरा मन्त्र फूंकने का ?
@सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
गंभीर मनन करें तो इसे मानने का कोई कारण नहीं है कि जनता की इसमें कोई सहमति या सम्मति है .......शायद यह तात्कालिक निष्कर्ष हो ....पर गहराई में जाने में जनता इतनी भी दोषी नहीं?
@राज भाटिय़ा
तात्कालिक उपाय तो यही समझ आता है .......पर भ्रष्ट और ढह चुके राजनैतिक ढाँचे में यह कितना कारगर होगा ?
आज की राजनीति पहले के राजतंत्र का ही दूसरा चेहरा है। कुछ मामलों में उससे बेहतर और कुछ में उससे भी बदतर। मुझे लगता है आम भारतीय अब भी दासता की मानसिकता से निकला नहीं है।
ReplyDeleteगिरिजेश की बात "अल्पमत द्वारा हमलोग शासित रहे हैं" सोच का एक नया आयाम खोलती है, एक छोटा सा स्वार्थी वर्ग आखिर कैसे इस बडे जन समूह पर काबिज़ रहा है? जो लोग "मैं और मेरा बेटा" से आगे सोच भी नहीं सकते वे किसी भी तरह के सार्वजनिक पद की ज़िम्मेदारी के लिये अक्षम हैं।
ReplyDeleteयहाँ एक लेख पर टिपण्णी दे कर हम भी अपनी कर्तव्यों की इति-श्री कर लेंगे..कुछ है जो सही नहीं है...
ReplyDeleteबदलना तो फिर भी कुछ नहीं है ...यहाँ हम सब ये जानते है ...
भला हो, लालू जी लोकतन्तर की असलियत ऐसे ही दिखाते रहें। आखिर सच्चा लोकतन्त्र दिखाने का सारा जिम्मा नेहरू जी के परिवार के कांधे क्यों डाला जाये!
ReplyDeleteआजकल पूरा का पूरा तंत्र ही ऐसा होगया है. सिवाय बेबसी के कुछ चारा दिखाई नही देता. वोट किसी को भी दो "जो लंका की गद्दी पर बैठता है वही रावण बन जाता है".
ReplyDeleteरामराम.
@anshumala
ReplyDeleteनेकी है जो इतना सकारात्मक आप सोच पा रही है .....जिस व्यवस्था में आजादी के इतने सालों बाद आम आदमी को सुकून ना मिल पा रहा हो उसी व्यवस्था के तहत अल्पमत से चुने गए नेता को जनता द्वारा खारिज किये जाने का इन्जार निरर्थक सा लगता है !...और फिर सबके बच्चों की तरह उस भ्रष्ट नेता के बच्चे भी बराबरी के स्तर पर कदम क्यों नहीं रखते ? सार्वजनिक जीवन में रहने वाले चरित्रों को जाहिर तौर पर अपने पाल्यों को भी सार्वजनिक सुचिता के साथ ही जीने की आदत डलवानी चाहिए !
@मो सम कौन
मुझे तो लगता है कोई उस आम भारतीय को उस दासता से निकालना ही नहीं चाहता ?
@Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
सार्वजनिक जीवन जी रहे स्थापित चरित्रों द्वारा शुचिता को स्थापित किया ही जाना चाहिए |
@kaafir
आपके कर्तव्य निर्वहन के लिए धन्यवाद ! ना बदलने का अगर यही आपका जज्बा बना रहता होता तो शायद हम उसी पाषाणकाल में जी रहे होते ? ...इतना अपरिवर्तन-गामी होना भी किस काम का ?
सिर्फ राजनीतिक विरासत ही नहीं इस देश को ही अपनी जागीर समझने लगे हैं कुछ मुठ्ठी भर बेशर्म नेता ......जनता की जागरूकता के सिवा इसका कोई इलाज नहीं हो सकता ......
ReplyDelete@ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
ReplyDeleteशायद ऐसे निर्लज्ज तमाचे ही परिवर्तन के वाहक बन सके ?
@ताऊ रामपुरिया
.......इसीलिये तो इसे लंका से एक रामराज्य ना सही तो एक राष्ट्र बनाने की आवश्यकता है !
@डॉ॰ मोनिका शर्मा
......मुझे लगता है अब जागरूकता से कुछ आगे बढ़कर करने का समय आ गया है !
4/10
ReplyDeleteसामान्य पोस्ट
मौलिकता नहीं है .. इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा चूका.
लोकतंत्र में वंशवाद के मुद्दे पर रोना ही निरर्थक है. इस वंशवाद की बेल को सींचता कौन है ? हम ही न ?
वैसे वंशवाद हमेशा ही खराब नहीं होता. मुझे इसमें कोई बुराई भी नहीं आती बशर्ते कोई साफ़ नीयत और पूरी तैयारी के साथ आता है. लोकतंत्र में सबके लिए अवसर हैं. अब अच्छे लोग खुद ही राजनीति से किनारा करके बैठ जाएँ तो क्या किया जाए.
@उस्ताद जी
ReplyDeleteलोकतंत्र में सबके लिए अवसर हैं. अब अच्छे लोग खुद ही राजनीति से किनारा करके बैठ जाएँ तो क्या किया जाए.
3/10
........ज़रा थमकर पुनः विचार करिए ! ......सामान अवसर? .....इस वर्तमान भारतीय लोकतंत्र में ?
मास्टर जी धैर्य न खोएं.
ReplyDeleteमैंने सिर्फ अवसर कहा है.
"समान" शब्द आपने स्वयं जोड़ दिया.
अब कहिये तो आपको पूरी लिस्ट भी बताऊँ जो समाज के बिलकुल निचले पायदान से राजनीति में आये और शिखर तक पहुंचे.
@उस्ताद जी
ReplyDelete"समान" शब्द आपने स्वयं जोड़ दिया.
जो कथन आपका है ...वह मोटे अक्षरों में और हुबहू वही; जो आपने लिखा है !
........और ज़रा विचार तो करते चलिए कि ......एक लोकतांत्रिक ढाँचे में मिलने वाले अवसर भी समान के बजाय अ-समान होंगे क्या ?
kuch gala t hai kuch sahi hai.... aur hum sab iske zimedaar hain. jo log rajniti mein jana chahte hain aur parivar vaad ki vajah se unhe awsar nahi milta to ye unke liye chinta ka vishya hai, is par unhe sochna hoga.. aur apni ladayi ladni hogi...
ReplyDeleterajniti mein parivar ka koi aata hai aur achcha kaam karta hai ..iss mein koi burayi nahi hai... har baap chahta hai uska beta uske jaisa ho.. loktantra mein neta ne apna vansh khada kiya hai...wo baap ki hasiyat se ... aap janta ki haisiyat se use apna sakte hain ya thukra sakte hain... sab apne haath mein hai...
aise mudde pe kaamyabi kyun nahi milti iska karan hai..hum sochte sahi hain..karte kuch nahi hain... aur is mein bura bhi kuch nahi hai... sabke paas apna kaam hai..
iska ek hal hai
jo log aisi baaton se prabhavit hote hain..jaise party karykarta.. ya bina rashukh ke mehnat ke dum par rajniti mein aanae wale.. wo pahal karen...hum sahyog kar sakte hain...
Anand Rathore की देवनागरी में टिप्पणी
ReplyDeleteकुछ गलत है कुछ सही है........ और हम सब इसके जिमेदार हैं. जो लोग राजनीति में जाना चाहते हैं और परिवार वाद की वजह से उन्हें अवसर नहीं मिलता तो ये उनके लिए चिंता का विषय है, इस पर उन्हें सोचना होगा....... और अपनी लडाई लड़नी होगी...|
राजनीति में परिवार का कोई आता है और अच्छा काम करता है .......इस में कोई बुराई नहीं है........ हर बाप चाहता है उसका बेटा उसके जैसा हो.. लोकतंत्र में नेता ने अपना वंश खड़ा किया है........वो बाप की हसियत से ... .....आप जनता की हैसियत से उसे अपना सकते हैं या ठुकरा सकते हैं........ सब अपने हाथ में है...|
ऐसे मुद्दे पे कामयाबी क्यूँ नहीं मिलती इसका कारण है..............हम सोचते सही हैं..करते कुछ नहीं हैं... और इस में बुरा भी कुछ नहीं है... सबके पास अपना काम है..
इसका एक हल है|
जो लोग ऐसी बातों से प्रभावित होते हैं........जैसे पार्टी कार्यकर्त्ता...... या बिना रसूख के मेहनत के दम पर राजनीति में आने वाले..... वो पहल करें...हम सहयोग कर सकते हैं......|
राजकिशोर जी का आलेख !डॉक्टर का बेटा यूं ही डॉक्टर नहीं बन जाता। वह पांच साल तक जम कर पढ़ाई करता है। कई-कई इम्तहान पास करता है। तब जा कर उसे रोगी की नब्ज पकड़ने का अधिकार मिलता है। यही बात वकालत, इंजिनियरिंग तथा अन्य पेशों पर भी लागू होती है। इसलिए उनकी तुलना राजनीति से नहीं हो सकती। राजनीति में उतरने के लिए कोई क्वालिफिकोशन तय नहीं की गई है। इसलिए लोगों ने उसे घरेलू बिजनेस बना रखा है।
ReplyDeleteराहुल गांधी की यह आवभगत इसीलिए होती है कि वे राजीव गांधी के बेटे हैं। अगर उनकी जगह हमारे बगल के वर्मा जी का बेटा होता, तो उसे कोई नहीं पूछता। उसे अपनी पार्टी का जिला सचिव होने में कई साल लगते, जबकि राहुल गांधी को राजनीति में प्रवेश करते ही कांग्रेस पार्टी का महासचिव बना दिया गया। अपनी योग्यता साबित किए बगैर ही उन्हें एमपी का टिकट दे दिया गया और पहली बार में ही वे जीत भी गए। क्या यह सामंतवाद नहीं है ?’
राजकिशोर जी का आलेख !‘नौजवान राजनीति में इसलिए नहीं आना चाहते क्योंकि यह बरदाश्त की सीमा से ज्यादा गंदी हो चुकी है। इस कीचड़ में कौन भला आदमी पैर रखना चाहेगा ? आज का पढ़ा-लिखा नौजवान डीसेंट माहौल में काम करना चाहता है। राजनीति में इसके लिए कोई गुंजायश नहीं रह गई है। यह चापलूसों का बाड़ा बन गया है। यहां कोई स्वाभिमानी आदमी टिक ही नहीं सकता। ’
ReplyDeleteराजनीति में परिवारवाद का बोलबाला है। सभी राजनीतिक दल गिरोह बन चुके हैं। इसलिए इन तालाबों का पानी सड़ता जा रहा है। जो ताजा खून आता है, वह पुराने खून से भी ज्यादा संक्रामक होता है। इसीलिए राजनीतिक दलों में नीति और कार्यक्रम पर कोई बहस नहीं होती। विचारवान लोगों का तो प्रवेश ही निषिद्ध है।
राजकिशोर जी का आलेख !
ReplyDeleteजनता इन ललमुंहों को वोट देने के लिए मजबूर है, क्योंकि उसके पास कोई विकल्प नहीं है। जब भी कोई साफ-सुधरा विकल्प सामने आता है, जनता उसकी ओर ऐसे लपकती है जैसे बच्चा मां की ओर। पर उसकी भूख नहीं मिटती। नया विकल्प जल्द ही बासी पड़ जाता है। दरअसल, सच्चा और टिकाऊ विकल्प तब तक नहीं पैदा हो सकता जब तक राजनीति रेडिकल सुधार नहीं आता।’
कुछ ऐसे सवाल जो इस बहस की रोशनी में उठाये गए थे उनके जवाब मुझे राजकिशोर जी के आलख में दिखाई दिए तो मैंने आभार सहित उन्हें यहाँ लिंकित कर दिया है |
ReplyDeleteराजनीती अब घर की नीति बन गई है ..........
ReplyDeleteवंश वाद इसकी जड़ में घुस कर घर बना कर पैठ बना चुका है ......
http://nithallekimazlis.blogspot.com
राजनीति में किसी प्रकार की नीति के लिए कोई जगह नहीं होती।
ReplyDelete---------
मन की गति से सफर...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी त्रासदी है यही है कि हमारे नेताओं ने इस देश की आम जनता और हमारे लोकतंत्र को जैसे अपनी व्यक्तिगत पूंजी ही समझ लिया है।
ReplyDeleteकुछ मुठ्ठी भर बेशर्म नेता ......जनता की जागरूकता के सिवा इसका कोई इलाज नहीं हो सकता ......