जो लोग आलोचना करने के लिए कहते हैं; वे दरअसल अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं|
(People ask for criticism, but they only want praise.)☺सामरसेट मॉम
आज सुबह दो घंटे पहले ही पंचायत निर्वाचन-2010 के पहले चरण से फुर्सत पाकर घर पहुंचा हूँ| कहने की जरुरत नहीं चुनाव बाद अपनी हालत ठीक उसी तरह है जैसे "लौटी बारात और गुजरी गवाही"|...सो उसके चर्चे फिर कभी|
नीचे एक नए तरीके से ब्लॉगर टिप्पणी बक्सा लगाया है ...आपके विचार जानना चाहता हूँ ....कोई दिक्कत हो तो जरुर बताएं .....अपने ब्राउजर के संस्करण का उल्लेख करते हुए| आभार सहित !!!
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ReplyDeleteयह सत्य है.
ReplyDeleteऔर शायद अवचेतन में मेरे भी यही सत्य दफ़न हो.
लेकिन कानों की इस गुदगुदी ने मुझे कुछ क्षण को ही गुदगुदाया है. फिर असहज जो जाता हूँ.
मैं अपनी योजना के तहत मिली प्रशंसा को पचा नहीं पाता हूँ.
हाँ यह सत्य है कि
जो लोग आलोचना केवल करने के लिये कहते हैं,
वे परोक्षतः अपनी प्रशंसा ही सुनना चाहते हैं.
रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी एक निबंध पुस्तक शायद "वेणुवन" में एक कथा कही है :
"एक सुनसान जंगल में एक ऋषि रहते थे सभी एषणाओं से मुक्त, उनके केवल एक शिष्य था.
एक बार वे अपने शिष्य को बटा रहे थे कि संसार में कोई व्यक्ति नहीं जो एषणाओं से मुक्त हो. हाँ वित्त एषणा और पुत्र एषणा से कोई बच भी जाए लेकिन कोई विरला ही होगा जो यश एषणा से बचा हो. तभी शिष्य ने कहा "गुरुवर, ऐसे तो केवल आप ही हैं जो इस निर्जन प्रदेश में मात्र एक शिष्य को शिक्षा देकर संतुष्ट रहते हैं."
शिष्य का ये कथन सुनकर गुरु के मुख पर मुस्कान दौड़ गयी."
कथा केवल इतनी ही थी.
.............. क्या कहती है ये कथा? समझे प्रवीण जी. आप तो लाक्षणिक कथाओं के अर्थ निकालने में प्रवीण हो.
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स्टेप देखिये :
प्रशंसा >>>>>>>>>>>>>> मुस्कान >>>>>>>>>>>>> यश.
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यश पाने को कौन उटठक-बैठक नहीं लगाता दिखता? कोई ब्लोगर केवल प्रश्न करके टिप्पणियों का लोभसंवरण नहीं रख पाता, तो कोई जनहित में जारी सूचनाओं की पोस्टों के ज़रिये अपने गुरुत्व की भूख शांत करता दिखता है.
हाँ यह भी सत्य है कुछ व्यक्ति अवश्य बिना इसकी परवाह किये अपनी बन चुकी शैली में कर्म किये चलते हैं. नामों से आप भी परिचित होंगे : १} सुरेश चिपलूनकर, जो अपने पत्रकारिता के दायित्व को बाखूबी निभाते जा रहे हैं. वहाँ मैंने आज तक कोई टिप्पणी नहीं की. मुझे नहीं लगता वे मेरी टिप्पणियों के लिये लिख रहे हैं.
२) आप स्वयं भी, अब तक मुझे उसी राह पर अग्रसर दिखते हैं, जिन्हें टिप्पणियों का चस्का शायद नहीं लगा. पूरे सत्य से आप ही परिचित होंगे.
कई अन्य भी हैं जैसे अली साहब, फिलहाल के परिचित 'संवेदना के स्वर निकालते' सलिल और चैतन्य, बाकियों से भी परिचित हो ही जाऊँगा.
सही बात .....बहुत अर्थपूर्ण विचार साझा किये आपने.....आभार
ReplyDeleteचलिए देर आये दुरुस्त आये ..अन्हीन तो क्या क्या सुनने को मिल रहा है ..आपतो निवृत्त हो लिए हमको तो ३० को ही फुरसत मिलेगी ...
ReplyDeleteआप से सहमत हे जी
ReplyDeleteCriticism kills creativity.... इसलिए तारीफ़ करो :)
ReplyDeleteअसहमत होने का प्रश्न ही नहीं उठता. टिप्पणियों में भी हम यही तो पसंद करते हैं.
ReplyDeleteन आलोचना, न तारीफ, बस सत्य।
ReplyDeletetested on Mozilla Firefox 3.6.10.
ReplyDeleteOK :)
गूगल बज्ज पर प्राप्त Anand G.Sharma आनंद जी.शर्मा की टिप्पणी
ReplyDeleteमहान लेखन सामरसेट मॉम ने "People ask for criticism, but they only want praise" एक वाक्य लिख कर समस्त लेखकों के अंतर्मन में छिपी अज्ञात अथवा अव्यक्त इच्छा की अभिव्यक्ति कर दी |
मानो या मानो - किसी भी विचार की - किसी भी प्रकार से अभिव्यक्ति के पीछे यही इच्छा रहती है कि कोई तो उसका अनुमोदन करे या आलोचना करे - पर कुछ तो करे |
टिप्पणी किसी भी प्रकार की हो - उससे आत्म संतुष्ठी अवश्य मिलती है एवं अभिव्यक्ति करने वाले को अपने होने का - अपने वज़ूद का - एहसास होता है |
कदाचित इसी कारण से मैंने अनायास दो तीन पंक्तियाँ लिख डाली |
विचारों की अभिव्यक्ति से अधिक टिप्पणियों की संख्या महत्त्व रखती है - इसीलिए "पुनरपि टिपण्णी संख्या अवलोकन" | जितनी अधिक टिप्पणियां - उतनी अधिक प्रशंशा |||
@प्रतुल वशिष्ठ
ReplyDeleteआपकी विस्तृत टीप से मुझे अपनी ब्लॉग्गिंग की पारी में अपने उतार चढावों को याद आ रही है !
मुझे लगता है जब भी हम स्वयं को या स्वयं के किसी गुण को सार्वजनिक करते हैं ....तो यह भूंख स्वयं ही जग जाती है !!!....मेरी क्या औकात ?
...हाँ लम्बे समय में यह परिपक्वता कैसा रूप ले ....यह चिन्तन का विषय है ...और अपने मामले में मै इसे स्वयं महसूस करता हूँ !!
शेष फिर कभी !!
@ Arvind Mishra
ReplyDeleteचिंता नॉट सर जी !
अभी पहला चरण ही तो निपटा है ....अभी तीसरा चरण भी बाकी है !!
.............................सुना है कि अभी काउंटिंग में भी जोते जायेंगे !!
मतलब पूरा साथ देंगे !!
@प्रवीण पाण्डेय
सत्य !
और .........इसके लिए साहस जुटा रहे हैं !!
@cmpershad
Criticism kills creativity
नए ज़माना ...नया मन्त्र !!!!
'लौटी बारात और गुजरी गवाही'
ReplyDelete:)..
.......
'आलोचना -तारीफ़ 'बहुत सही लिखा है.
......
नया कमेन्ट बॉक्स भी अच्छा प्रयोग है.
ऐसा है तो कृपया पधारें और मेरी आलोचना करें..बाकी तो आप समझदार हैं ही.... :)
ReplyDeleteटिप्पणी बॉक्स तो ठीक है.
ठीक कहा.
ReplyDeleteBAHUT ACHCHA
ReplyDeleteअब देख लीजिए कुछ लोग तो तारीफ़ों का ही खाए चले जा रहे हैं
ReplyDelete.
ReplyDeleteटिप्पणियाँ ब्लॉग लेखक के द्वारा अनुमोदित की जानी चाहिए.
लेयो गुरु जी, अनुमोदित कई दिहौ एकु हमारौ टिप्पड़ी :)
प्रारँभ टिप्पणी
लागत है, ठीक से निर्वाचन नहीं करवायौ
शासन करने की मँशा रखने वाले सेवा करने का मौका माँगते हैं कि नहीं ?
तारीफ़ आइसक्रीम है, यदि वही सम्मुख रखे जाने की अपेक्षा हो
और आप हिनहिनाते हुये आलू + चना ( आलोचना ) माँगें
यह आपकी विनम्रता नहीं है, तो क्या है
मुला ई सामरसेटवा कउन है हो ?
बड़े गहरे उतर गवा भाई !
समाप्त टिप्पणी
aap jaldi hi high schhol teacher banen ,shubhkamnayen...
ReplyDeleteअधिकांशत: सहमति है।
ReplyDeleteई-मेल से जबरिया मंगाई गयी गिरिजेश राव की टिप्पणी .....
ReplyDeleteअसहमत था। बहुत बार अपनों से या यूँ कहें कि जिन पर भरोसा करते हैं, हम आलोचना चाहते हैं ताकि सुधार ला सकें। व्यक्तिगत तौर पर मैं आज भी आजमाता हूँ। लेकिन यह भी सच है कि अजनबियों के आगे आलोचना चाह व्यक्त करते हम वास्तव में प्रशंसा ही चाह रहे होते हैं।
'जो लोग आलोचना करने के लिए कहते हैं; वे दरअसल अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं|'
ReplyDelete- असहमत | यह वाक्य इस प्रकार होना चाहिए :
वे अधिकाँश लोग, जो आलोचना करने के लिए कहते हैं, दरअसल अपनी तारीफ़ सुनना चाहते हैं |
बहुत खूब तो आइये मेरी आलोचना करें हा हा हा .... ....दशहरा पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteहूँ...सोचने वाली बात है यह तो...
ReplyDelete______________________
'पाखी की दुनिया' में पाखी की इक और ड्राइंग...