गणित की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चे की गणितीकरण की क्षमताओं का विकास करना है। स्कूली गणित का सीमित लक्ष्य मुझे यही समझ आया है कि `लाभप्रद´ क्षमताओं का विकास, विशेषकर अंक ज्ञान-संख्या से जुड़ी क्षमताएँ, सांख्यिक संक्रियाएँ, माप, दशमलव व प्रतिशत। मुझे लगता है कि लक्ष्य कहीं इससे ज्यादा ऊँचे है कि बच्चे के साधनों को विकसित करना, ताकि वह गणितीय ढंग से सोच सके व तर्क कर सके, मान्यताओं के तार्किक परिणाम निकाल सके और अमूर्त को समझ सके। इसके अंतर्गत चीजों को करने और समस्याओं को सूत्रबद्ध करने व उनका हल ढूंढने की क्षमता का विकास करना भी आना चाहिए |
इसके लिए ऐसा पाठ्यक्रम होना चाहिए जो महत्वाकांक्षी हो, सुसंगत हो और गणित के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को पढ़ाए। उसे महत्वाकांक्षी इस अर्थ में होना चाहिए कि वह उपरोक्त उच्च लक्ष्य की प्राप्ति का भरपूर प्रयास करे न कि केवल सीमित लक्ष्य की प्राप्ति का।
इसे सुसंगत इस अर्थ में होना चाहिए ताकि टुकड़े-टुकड़े में उपलब्ध विभिन्न प्रणालियाँ व शिक्षा (अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित में) एक ऐसी क्षमता में ढल सकें जो अगली कक्षाओं में आने वाले विज्ञान व सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र की समस्याओं को भी संबोधित और सम्बंधित कर सके। यह इस अर्थ में महत्वपूर्ण होना चाहिए कि विद्यार्थी ऐसी समस्यायों को हल करने की आवश्यकता को महसूस करें और शिक्षक व विद्यार्थी दोनों ऐसी समस्यायों को हल करने में जो अपना समय और ऊर्जा लगाएँ उसे सदुपयोग मानें।
गणित की पाठ्यचर्या के दो मुख्य सरोकार हैं — गणित शिक्षा प्रत्येक विद्यार्थी के दिमाग को आकर्षित करने के लिए क्या कर सकती है, और यह विद्यार्थी के संसाधनों को कैसे सुदृढ़ कर सकती है?
चूँकि गणित माध्यमिक स्कूल तक एक अनिवार्य विषय है, अत: अच्छी गणित शिक्षा का अधिकार और जरूरत प्रत्येक बच्चे को है। जाहिर है !! शिक्षा सुखकर व सहज होनी चाहिए। शिक्षा के सार्वजनीकरण के संदर्भ में, सबसे पहला प्रश्न यही उठता है, आठ( मैं जूनियर का मास्टर जो बन गया : 1 से 8) सालों की स्कूली शिक्षा के दौरान बच्चे को कैसा गणित पढ़ाना चाहिए ?
उनकी समस्या हल करने व विश्लेषण करने का उनका कौशल पुष्ट होगा और जीवन में वे विभिन्न तरह की समस्याओं का बेहतर रूप से सामना कर सकेंगे। साथ ही गणित की स्थूल अवधारणाएँ व विषय सम्बद्धीकरण (जिसमें एक विषय में दक्षता दूसरे के ज्ञान के लिए आवश्यक होती है) पर दिए जाने वाले ज़ोर को कम करना चाहिए, ताकि एक वृहत्तर नजरिये से पाठ्यक्रम पर बच्चे तैयार हो पाए |
प्राथमिक स्कूल में सिखाए जाने वाले गणित के अधिकतर कौशल उपयोगी होते हैं। बहरहाल, पूर्ण वर्णित `उच्चतर लक्ष्यों´ की प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम के पुनरुपयोग से बच्चे उस समय का बेहतर उपयोग कर सकेंगे जो वे स्कूल में व्यतीत करते हैं ।
उनकी समस्या हल करने व विश्लेषण करने का उनका कौशल पुष्ट होगा और जीवन में वे विभिन्न तरह की समस्याओं का बेहतर रूप से सामना कर सकेंगे। साथ ही गणित की स्थूल अवधारणाएँ व विषय सम्बद्धीकरण (जिसमें एक विषय में दक्षता दूसरे के ज्ञान के लिए आवश्यक होती है) पर दिए जाने वाले ज़ोर को कम करना चाहिए, ताकि एक वृहत्तर नजरिये से पाठ्यक्रम पर बच्चे तैयार हो पाए |
(क्रमशः जारी...)
प्राथमिक स्कूल में सिखाए जाने वाले गणित के अधिकतर कौशल उपयोगी होते हैं। बहरहाल, पूर्ण वर्णित `उच्चतर लक्ष्यों´ की प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम के पुनरुपयोग से बच्चे उस समय का बेहतर उपयोग कर सकेंगे जो वे स्कूल में व्यतीत करते हैं ।
ReplyDeleteबहुत उत्तम बात कही.
रामराम.
गणित की चर्चा होने पर बस एक हूक उठ जाती है ! कुछ तो हो ताकि और गणित ज्ञान से शून्य अरविन्द मिश्र न
ReplyDeleteहों !
मिसिरजी वाली हूक ही इधर भी उठ रही है:)
ReplyDelete"मैं जूनियर का मास्टर जो बन गया : 1 से 8"..
ReplyDeleteचिट्ठे का नाम बदलकर जूनियर का मास्टर तो नहीं हो जाना चाहिये !
महत्वपूर्ण आलेख ! आभार ।
गणित को दो भागो में विभक्त करना चाहिए . एक व्ह्यावारिक गणित जिसमे आम जिन्दगी में काम आने वाली चीजे जैसे जोड़ ,घटाना, गुणा,भाग ,प्रतिशत ,ब्याज ,क्षेत्रफल आदि आदि . और दुसरे भाग में वह चीजे रेखा गणित ,बीजगणित , प्रमेय ,और न जाने क्या क्या जो आम आदमी के काम की नहीं है . यह ल स प ,म स प ,अंडररुड, भिन्न और कितने मैं भूल रहा हूँ की आज तक पढाई के बाद मुझे आवश्यकता नहीं पड़ी . इन्ही कारणों से हाई स्कूल पास करने पर सब से ज्यादा ख़ुशी थी की गणित से पीछा छुटा .
ReplyDeleteका करबौ साहब.. दर्जा १२ गणित से पास करने के बाद भी हम ई विषय का महत्व इतने समझ पाये कि आईआईटी, एआईईईई, और यूपीटीयू का इम्तहान पास करने के लिये ई विषय का ज्ञान बहुते जरूरी है।
ReplyDelete@Arvind Mishra ! और @अजित वडनेरकर !
ReplyDeleteसर जी आशा ही कर सकता हूँ कि यह हूक मष्तिष्क में ना होकर दिल वाली ही होगी ?
सो दुआ करने का पक्का वादा !!
@हिमांशु । Himanshu
ReplyDeleteप्राईमरी और जूनियर के मास्टर में कोई अंतर नहीं देख पा रहा सो अभी इसका समय नहीं?
बकिया कालेज और विश्वविद्यालय में वह आकर्षण कहाँ?
@dhiru singh {धीरू सिंह}
ReplyDeleteतब तो हूक यहाँ भी उठै रही होई ?
@कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra)
सवाल फिर वही अनुत्तरित?
जरूरत या महत्व?
अरे कहा इसे याद दिला दिया, आज तक जिन्दगी के सवालो का जबाब नही ढुढ पाये तो इस के जबाब कहा से ढुढे? लेकिन है मजे दार यह गणित
ReplyDeleteगणित को रोचक शैली में प्रस्तुत किया जाना चाहिए, नहीं तो गणित उबाऊ विषय बन कर ही रह जाएगा. गणित को मूर्त से अमूर्त की ओर बढ़ाना चाहिए. रचनावादी मॉडल के आधार पर गणितीय अध्यापन होना चाहिए ताकि बच्चों में अंतर्निहित गणितीय संभावनाओं को बेहतर ढंग से उभारा जा सके. गणित के विकास में ही भारत का स्वर्णिम भविष्य छिपा है.
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