नेता झूठ बोलते हैं, वोट के लिए जनता को लड़ाते हैं। विकास के झूठे वादे करते हैं। कुछ ऐसी ही बातें जनता के मन में बैठ गई हैं, तभी तो इस बार के मतदान में नेताओं के प्रति जनता का गुस्सा साफ झलका।
बावजूद इसके कि हमारे मीडिया व प्रबुद्ध वर्ग ने इस बार वोट के लिए बड़े जन जागरण अभियान चलाये ,
इसके उलट खेतों में काम कर रहे किसान व मजदूर यह पूछने पर कि वोट डालने नहीं गये, जवाब रहा कि नेता खायं का न देहैं, पहले आपन पेट देखी। पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव के लिए जिस तरह प्रत्याशियों ने एक पखवारे धमाचौकड़ी की, उस तरह का उत्साह मतदान के दिन नहीं दिखा। सुबह जब बूथों में लंबी लाइन लगने का समय था उस समय इक्का-दुक्का वोटर ही पहुंचकर ईवीएम की बटन दबा रहे थे।
बुजुर्ग व महिला मतदाताओं की तो छोड़ों युवाओं में भी नेताओं के प्रति आज साफ गुस्सा देखा जा सकता है ।
बावजूद इसके कि हमारे मीडिया व प्रबुद्ध वर्ग ने इस बार वोट के लिए बड़े जन जागरण अभियान चलाये ,
वोट के लिए न तो कोई जोश था और न जुनून। तो क्या हमारा तथाकथित शहरी मतदाता को वास्तव में जगाने की जरूरत है या कि गोया वह सोते ही रहना चाहता हो ।मतदान प्रतिशत कम हुआ यह उतना चिंता का विषय नहीं है जितना कि यह है कि शिक्षित वर्ग ने इस बार चुनाव को उपेक्षित किया है। मतदान जैसे अधिकार से दूर हो रहे शिक्षित मतदाताओं के लिए जागरुकता अभियान भी बेकार साबित हो रहा है।
इसके उलट खेतों में काम कर रहे किसान व मजदूर यह पूछने पर कि वोट डालने नहीं गये, जवाब रहा कि नेता खायं का न देहैं, पहले आपन पेट देखी। पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव के लिए जिस तरह प्रत्याशियों ने एक पखवारे धमाचौकड़ी की, उस तरह का उत्साह मतदान के दिन नहीं दिखा। सुबह जब बूथों में लंबी लाइन लगने का समय था उस समय इक्का-दुक्का वोटर ही पहुंचकर ईवीएम की बटन दबा रहे थे।
कहीं जन जागरण के नाम पर हमारे साथियों ने कहीं राष्ट्रीय चुनाव को मुनिसिपलिटी का चुनाव तो नहीं बना दिया जाने - अनजाने में ?इसी के चलते देश भर के कई बूथों से ऐसी खबरें आईं कि सड़क और नाली की समस्यायों को लेकर वोटरों ने बहिष्कार किया ।
बुजुर्ग व महिला मतदाताओं की तो छोड़ों युवाओं में भी नेताओं के प्रति आज साफ गुस्सा देखा जा सकता है ।
क्या वास्तव में ईमानदारी से नेतागीरी बीते जमाने की बात हो चुकी है ?
सामयिक लगा जगदीश सोलंकी का यह काव्य-पाठ भी सुन लें..........
बहुत सही चित्रण .
ReplyDeleteआम आदमी लोकल विकास और दो जून की रोटी ही चाहता है. उसके लिए रेपो रेट या परमाणु संधि से कोई मतलब नहीं.
ReplyDeleteप्रवीण जी बिलकुल सही लिखा है आपने | वोट देने के लिए लोगो में जागरूकता की कमी होती जा रही है लेकिन इसके पीछे कुछ विशेष वजह भी है | आज की राजनीती सिद्धांतविहीन और मूल्यविहीन हो गई है | सत्ता सुख के लिए बेमेल गठजोड़ हो रहा है | राज्य में जो एक दुसरे के दुश्मन बनकर वोट मांगते है वही केंद्र में एक साथ सत्ता का बंदरबांट करते है |व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा राष्ट्रहित पर भरी पड़ रहा है | और भी बहुत सी बाते है.........
ReplyDeleteआप इसी तरह समाज और देश की समस्यायों पर इस ब्लॉग के माध्यम से अपने बहुमूल्य विचारो से अवगत कराते रहिये ज्ञान बांटते रहिये | बहुत-बहुत धन्यवाद
अजीत तिवारी
www.jaimaathawewali.com
बहुत बढ़िया लेख मास्टर जी
ReplyDeleteकाव्य पाठ कहाँ से सुन लें जगदीश जी का । लिक ही नहीं मिल रहा ।
ReplyDeleteसही कहा आपने। अब ईमानदार नेता है ही कहां। चारों ओर टुच्चे लोगों की भरमार है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
चलिये - कम से कम हमने वोट तो दिया। पर विकल्प कोई अच्छे नहीं थे।
ReplyDeleteमेरे विचार से राष्ट्रपतीय प्रणाली में मतदान ज्यादा सार्थक रहता। भारत को अपनी चुनाव व्यवस्था बदलनी चाहिये। सीधे राष्ट्रपति चुनने की बात होनी चाहिये जो कार्यपालिका का प्रमुख हो।
चुनावों से विमुखता अच्छे संकेत नहीं हैं.
ReplyDeleteबहुत दिनों तक अगर व्यवस्था सदी ही रहे तो विमुखता होना स्वाभाविक है.
ReplyDelete@हिमांशु जी !!
ReplyDeleteक्या यु -ट्यूब वीडियो नहीं खुल रहा ??
वैसे असल लिंक है यह है डाउनलोड करके भी देख सकते हैं!!
http://www.youtube.com/watch?v=f8WpnEYmMbw
प्रवीण त्रिवेदी जी।
ReplyDeleteआपने बहुत सही लिखा है।
जब लोकतन्त्र में राजतन्त्र की गन्ध का आभास होने लगे तो ऐसा होना स्वाभाविक ही है। वोट प्रतिशत तो गिरेगा ही।
बधाई।
क्या वास्तव में ईमानदारी से नेतागीरी बीते जमाने की बात हो चुकी है ?
ReplyDeletechunav ke bare me apne sahi kha hai
par neta bhi to purane netao ko hi apna guru mante hai.
गुणवत्ता में तो कोई फ़र्क़ नहीं ही है.
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