गिजुभाई का माताओं से विशेष आग्रह

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गिजुभाई का बालदर्शन उस प्रकार का बालदर्शन नहीं था, जो किसी जटिल विचार की स्थापना करता हो। गिजुभाइ बालदर्शन का कोई सिद्धान्त भी प्रतिपादित नहीं करते। वे तो बच्चों में इस प्रकार प्रवेश करते हैं जैसे कोई किसी मन्दिर में प्रवेश करता हो। वे बाल छवि देखकर मुग्ध होते हैं, आंखों में झांक कर उसके सपनों को पढ़ते हैं, उसकी वाणी सुनकर कोमलता का मधुर संगीत सुनते हैं और उसे खेलते, काम करते, उछलते, कूदते या गाते देखकर उसके साथ एकाकार हो जाते हैं। उनके लिए बालक या बालिका एक सम्पूर्ण मानवीय कृति होते हैं। वे बच्चों का तन पढ़ते हैं, बच्चों का मन पढ़ते हैं और उसका जीवन पढ़ते हैं। इसलिए


जब परिवार में या समाज में देखते हैं, तो उन्हें लगता है कि परिवार समाज के लिए तो बच्चा या बच्ची आवश्यक अवश्य है, किन्तु बच्चों के लिए क्या आवश्यक है, क्या नहीं, यह बात कोई नहीं सोचता। बच्चों के संसार में बच्चों के लिए कुछ भी नहीं, सब कुछ प्रौढ़ों का, प्रौढ़ों द्वारा रचा गया और प्रौढ़-निर्णयों से तय किया गया। कितना असहाय होता है, एक बच्चा या बच्ची, जब उसे अपने घर में अपने लायक एक भी कमरा नहीं मिलता। वे नहाने के लिए माता-पिता का बाथरूम काम लाते हैं, खाने के लिए प्रौढ़ों की डाइनिंग टेबल या पाट-पाटे आदि, दोस्तों के साथ बैठने के लिए पिता का ड्राइंग रूम, अपने कपड़ों के लिए माँ या पिता की बड़ी-बड़ी अलमारियां , सोने के लिए माता-पिता के बड़े-बड़े पलंग और कई बार तो खेलने के लिए भी वे चीजें जो उनकी उम्र की और भावनाओं की मांग पूरी नहीं करतीं। ये बड़ी-बड़ी प्रौढ़ों की चीजें बच्चों को स्वावलम्बी या आत्मनिर्भर नहीं बनने देतीं। बड़ी अलमारियों में बच्चे कपड़े रख सकते हैं निकाल सकते हैं, ऊंची ऊंची खूटियाँ या पानी पीने के स्टैण्ड पर बच्चों के हाथ नहीं पहुचते , पिता या माता का बड़ा कमरा या बाथरूम उनके लिए डर पैदा करता है, बड़ी-बड़ी खटिया(चारपाई) या पलंग पर माँ -बापों के साथ या अलग सोने से उन्हें ऐसा नहीं लगता कि वे अपने बिस्तर पर अपने सपने सजा कर सो रहे हैं। इस प्रकार गिजुभाई मानते थे कि हम प्रौढ़ों ने बच्चों को बचपन में ही बूढ़ा मानकर वे साधन उनके आसपास खड़े कर दिए हैं, जो उनके लिए हैं ही नहीं, शारीरिक रूप से, और ही मानसिक रूप से। इसलिए गिजुभाई माताओं से विशेष रूप से आग्रह करते हुए कहते हैं , "यदि आप यह अनुभव करें कि घर में बालक के लिए जैसा चाहिए वैसा एक भी कोना होता नहीं है और घर में जो भी साज सामान रहता है वह बालक के लिए बड़ा और भारी होता है, तो आपको अपने घर की व्यवस्था में जरूरी सुधार कर लेना चाहिए।"


गिजुभाई बच्चों पर प्रौढ़ प्रभुत्व के विरुद्ध थे। बच्चों की स्वतंत्रता के जो तत्व उन्होंने अपनी आदर्श विचारक माण्टेसरी से ग्रहण किए थे, उन्हें वे परिवारों में सार्थक होते देखना चाहते थे। माताओं को संबोधित एक लेख में बच्चों की चीजों, उपकरणों, पोशाकों आदि को लेकर उन्होंने स्पष्ट कहा है , " खुद जिनका उपयोग आसानी से कर सकें, ऐसे छोटे-छोटे बरतन, छोटी लोटिया , छोटी थालिया , छोटी कटोरिया , छोटी मोगरी, छोटी झाडू , छोटे सूप, छोटी बालटिया आदि सामान घर में उनके लिए सुलभ रहना चाहिए, क्योंकि अपने घरों में हम जो भी काम करते हैं, हमारों घरों में रहने वाला बालक भी वे सब काम करना चाहता है। अक्सर माता के नाते आपने देखा होगा कि बालक रोटी बेलने, कड़ी हिलाने, बर्तन माजने, बरतन धोने और झाडू लगाने जैसे काम तत्परता से करना चाहता है , लेकिन चूकि इन सब कामों के लिए घरों में सारा सामान बड़ों के लायक होता है। इसलिए बालक को कहीं कोई चोट लग जाए, इस डर से हम उसको ये सारे काम करने ही नहीं देते। बाद में जब हम उससे ऐसा कोई काम करने को कहते हैं, तो वह उलट कर जवाब देता है और कहा हुआ काम करता नहीं है।"

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2Comments
  1. क्षमा चाहता हूँ की कुछ तकनीकी समस्यायों के कारन कल यह टिपण्णी लिंक खुल नहीं पा रहा था /

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  2. जब आप गिजूभाई पर लिख रहे हैँ तो काशीनाथ त्रिवेदी का भी नम्बर आयेगा।
    अच्छा काम कर रहे हैँ आप ब्लॉगजगत के लिये।

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