पुस्तक चयन के आधार बिंदु

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इसमें दो राय नहीं हैं कि अपने परिवेश के साथ -बाहर की दुनिया को जानने समझने के लिए सेतु की तरह होती हैं किताबें। कैसे पता लगाएं कि कौन सी पुस्तक बच्चों के लिए `खुल जा सिमसिम` बन उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकेगी । ऐसा कोई बना बनाया नुस्खा भी नहीं है जिसके आधार पर बच्चों के लिए किताबें चुनी जा सकें । विद्यालयों के लिए पुस्तकें चुनते समय उम्रगत ख़ासियतों का ध्यान रखते हुए पर्याप्त संख्या में पुस्तकें चुनी जनि चाहिए , ताकि बच्चों तक तरह-तरह की पुस्तकें पहुंच सकें इस कार्य के लिए एक समिति बना लेनी चाहिए । जिसमें बाल साहित्य की समझ रखने वाले लोग, ऐसे उत्साही अध्यापक जो बाल साहित्य का लगातार कक्षा में उपयोग करते हैं और बच्चों की पढ़ने की संस्कृति विकसित करने में लगे हैं शामिल हों । बाल साहित्य प्रकाशकों से पुस्तके मंगवाएं । प्रत्येक पुस्तक को सूचीबद्ध करते हुए उसपर चर्चा करें । यह काम थोड़ा और मुश्किल इसलिए भी लग सकता है क्यों कि जिन विद्यालयों की बात की जा रही है वहां बाल साहित्य के संसार से परिचित होने का अवसर शिक्षकों और बच्चों को मिला ही नहीं होता है। बच्चों की भाषायी क्षमताएं और परिवेश का पूरा ध्यान रखते हुए चयन में काफी लचीलापन रखना ज़रूरी है । भाषा और चित्रों का तो ध्यान रखा ही जाना चाहिए । अच्छी किताबों के जो आमतौर पर कई मानक बनाए जाते हैं हो सकता है हर किताब उस पर पूरी तरह खरी न उतरती हो पर हर किताब में कुछ न कुछ खास ज़रूर है । सफलता इसीमें है कि बच्चों के मन के कितने नज़दीक पहुंच पाते हैं खासतौर पर कम संसाधन वाले माहौल में। पुस्तकों की विषय वस्तु, कथ्य सरल हो, छोटे पर सार्थक सरल संरचना वाले वाक्य हों, चित्र विषय को प्रतिबिंबित करते हों । किताबों में बच्चों की निराली, हंसमुख दुनिया हो, उनका उमंग और चहक भरा अनुभव संसार हो। ऐसे बोलते चित्र हों जो बच्चों को मूर्त अनुभव दे सकें, बहुत सी चित्र शैलियों को गडड़-मडड़ न किया गया हो । बड़ों द्वारा बच्चों के लिए किताबें चुनना मात्र उन्हें उंगली पकड़ कर कुछ कदम चलवाने जैसा है ताकि वे स्वयं दौड़ने के लिए तैयार हो सकें ।

पुस्तकों के चयन के आधार

पुस्तक चयन के लिए अपेक्षित है कि चयन में अनेक ऐसे व्यक्तियों को जोड़ा जाए जो बाल साहित्य के प्रति संवेदनशील हों । बाल साहित्य , विशेषज्ञ ,अध्यापक, चित्रकार साथ मिलकर प्रत्येक पुस्तक पर चर्चा करें और उसे भाषा, चित्रांकन, विषय वस्तु के प्रवाह, सरलता और रंजकता के आधार पर परखें । पाठकों की उम्रगत रूचियों और विशिष्टताओं का बराबर ध्यान रखना ज़रूरी है। प्रकाशकों से पुस्तकें मंगवा लेना भर काफी नहीं है। पुस्तकों के हर पहलू पर बहस होगी तभी स्तरीय पुस्तकों का चुनाव हो सकेगा। ऐसा न हो कि ऐसी किताबें चुन ली जाएं जो बड़ों की समझ से उपयोगी हों पर बच्चों की समझ से परे हों। बच्चे कैसी किताबें पसंद करते हैं -मोटी, छोटी, बड़ी, रंगीन चित्रोंवाली इन सब का अंदाज़ किताबें चुनते समय बड़ों को लगाना होता है।

शब्दरहित चित्र पुस्तकें

ऐसी किताबें लेने का प्रयास होना चाहिए , जिनके चित्रों पर `बात` करने की पर्याप्त गुंजाइश हो । `बात करना` सीखने और सीखें हुए अनुभवों को मज़बूत करने का कारगर तरीका है। तस्वीरें स्त्रोत समझी जाती हैं संवाद की, अभिव्यक्ति की , बच्चों को अपनी बात कहने के अवसर की । भाषायी गतिविधि के रूप में भी बच्चे चित्रों के आधार पर अपनी कल्पना से उसमें बहुत कुछ जोड़ सकते हैं , पूर्व अनुभवों से संबंध स्थापित कर सकते हैं। छोटे बच्चों (कक्षा एक और दो) के लिए शब्द रहित चित्रात्मक पुस्तकें चुनते हुए यह विचार लगातार बना होना चाहिए कि खुशनुमा रंगों के साथ एक चित्र में बहुत सी घटनाएं एक साथ न दर्शाई गईं हों । चित्रों में गति और स्फूर्ति को साथ ही चित्रों के विस्तार में बहुत से छोटे-छोटे पात्र न गुंथे हों क्यों कि इस आयुवर्ग के बच्चे बहुत सी घटनाओं या पात्रों पर एक साथ ध्यान नहीं केंद्रित कर पाते । चित्रों में पुनरावृति हो और कुछ इस तरह कि बच्चों के लिए अनुमान लगा कर पहले ही बताने की गुंजाइश रह सके । आगे की बात पहले ही जान लेना बच्चों को मानसिक संतोष से भर देता है। छोटे बच्चों को स्पष्ट चित्र भाते हैं। अमूर्त छवियां टूटी रेखाएं, हाफटोन बच्चों को प्राय: आकिर्षत नहीं कर पाते।
चित्रात्मक कथा पुस्तकें

स्वकेंद्रित होना इस आयु है। उनके मन में कहानी की एक अपनी संरचना भी होती है।पुस्तक कोने में ऐसी कथा पुस्तकें शामिल की गईं हैं जहां बच्चे का दैनिक जीवन, उसके अपने मनोभाव, व परिवेश प्रतिबिंबित होता हो। जहां एक ओर जानी पहचानी घटनाएं व छवियां हों, अपना परिवार, विद्यालय, दोस्त, पशु-पक्षी हों वहीं कुछ ऐसा भी हो जो उन्हें विस्मित कर सके । कथावस्तु में बच्चे की स्वतंत्र छवि उभरती हो , उसकी सोच और तर्क की पर्याप्त गुजाइश हो । दोहराव वाली कहानियां बच्चों को अच्छी लगती हैं। पूर्व घटनाओं की पुनरावृति बच्चों को स्वयं अंदाज़ लगा पाने की खुशी देती है । किताबों में वर्णित और चित्रित वस्तुओं की ध्वनियों का अनुमान लगाना भी खेल बन जाता है । चित्रों के साथ एक दो पक्तियों का जुडाव हो, वह भी उलझाव भरा न हो जिससे बच्चे शब्दों को जोड़ सकें। शब्दों की पुनरावृत्ति हो । बच्चों की शब्दावली क्षेत्र, वातावरण के अनुसार अनेक स्तरों पर भिन्न हो सकती हैं। भाषा बनावटी न हो । घटनाओं की सहजता, लय और चित्रों में सजीवता ये कुछ मानदण्ड हो सकते हैं एक अच्छी कथा पुस्तक के।
जानकारी परक पुस्तकें

पूर्व अनुभवों के साथ जिज्ञासा भी इस उम्र की स्वभावगत विषेषता होती है। जानकारी सहज हो भले ही बच्चे पूरी तरह न भी समझ पाएं उसके चित्र उन्हें और जानने को प्रेरित करेंगे। इस प्रकार की पुस्तकें उन्हें जिज्ञासु और उत्साही पाठक बनाने में मदद कर सकेंगी।
गतिविधि पुस्तकें

ऊर्जा और सक्रियता से भरपूर, कुछ बनाने, जोड़ने की ओर ले जाने वाली क्रियात्मक पुस्तकें बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ावा दे सकेंगी।
कविता पुस्तकें

इस विधा से बच्चों का परिचय खेल गीतों, मां की गुनगुनी लोरियों के रूप में हो चुका होता है। बाल अनुभवों से जुड़कर, उनके साथ थिरक कर, उनके मन को महसूस कर लिखी गई छोटी-कविताएं उन्हें आनिन्दत करती हैं । कविताओ की लय उन्हें बार बार दोहराना खेल सा लगता है। ऐसी कविता पुस्तकें जो कल्पना के छोटे-छोटे द्वीपों को जोड़ने का प्रयास करें, कहीं हास्य तत्व तो काई मज़ेदार छोटी सी घटना। इस तरह की कविताएं बच्चों के मन में अनजाने ही प्रवेश कर जाती हैं ।
पुस्तकों के साथ
छपी सामग्री से समृद्ध माहौल बच्चों में पढने की संस्कृति के विकास का आधार बन सकता है। अपने पुस्तक कोने की पुस्तकें बच्चे स्वयं पढ़ेंगे, उन पर बात करेंगे ऐसा विश्वास है। अध्यापिका इन पुस्तकों के माध्यम से अनेक भाषायी कौशलों का अनायास ही विकास कर सकेंगी, इसके लिए किसी विशेष आयोजन की भी ज़रूरत नहीं है, बस अध्यापक वृन्द भी इन्हें पढ़ें, बच्चों को पढ़ने दें ।

निम्न ध्यान देना भी जरूरी है-
  • पढ़ने के बाद बच्चे प्रश्न, परीक्षा से मुक्त रहें।
  • पुस्तक के चित्रों पर बात करें, बच्चों को बात करने के लिए प्रोत्साहित करें। । बात इस तरह जारी रखें जहांबच्चेअनुमान लगाएं, अपने अनुभव जोड़ें।
  • ब्च्चों को निस्संकोच, निर्भय अपनी बात कहने का पूरा अवसर हो, माहौल हो।
  • अध्यापिका भी कहानी पढ़ कर सुनाएं हाव-भाव,उतार -चढ़ाव के साथ ।
  • पुस्तक में आए शब्दों के अलावा कुछ और शब्द भी चुन लें जिनका बातचीत के दौरान बार-बार प्रयोग करें।
  • पढ़कर समझने को सुदृढ़ करने के लिए बच्चों को उसी कहानी को पुन: अपने शब्दों में बताने को कहा जा सकताहै।अभिनय करवाया जा सकता है।
  • पुस्तक में दिखाई गई वस्तुओं में से यदि कोई वस्तु कक्षा में लाई जा सके तो वह बच्चों के लिएएकरोमांचकअनुभव व खेल बन सकता है। बच्चों में चिन्तन और कल्पना को बढ़ावा देने का अच्छा माध्यम भी ।
  • कहानी बार बार पढ़ कर सुनाएं बच्चे पुनरावृत्ति से ऊबते नहीं हैं।
  • चित्रों को गौर से देखने दें, चित्रों के पात्रों के चित्र बनाएं,कठपुतली खेल खेलें।
  • इन पुस्तकों को पढ़ कर सुनाने और बच्चों को पढ़ने देने क, चित्र देखने के अवसर को दैनिकचर्या का अंगबनाएं।
  • किताब पढ़ कर सुनाते समय उसका सामान्य परिचय देते हुए मुखपृष्ठ दिखाएं, लेखक व चित्रकार का नाम लें।
  • पुस्तक पढ़ते समय बच्चा कहानी के पात्रों से अपने आप को लगातार जोड़ता है। बच्चों के चिन्तन को बढ़ावादेनेके लिए कहानी के पात्रों के साथ स्वयं को जोड़कर कुछ घटनाएं बताने को कहें।
  • बच्चों के लिए पुस्तकें चुनते समय लगातार बचपन की दुनिया में लौटना होता है। यह प्रक्रिया इतनी आसाननहींहैसंवेदनशील हो कर सोचना ज़रूरी है।

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4Comments
  1. बहुत ही बेहतरीन जानकारी लगी ..सही लिखा है पुस्तकें इस तरह की ही होनी चाहिए

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  2. बहुत इम्प्रेसिव लिखा है मित्र।
    यह तो एक अच्छी पुस्तक का ब्लू-प्रिण्ट हो सकती है पोस्ट!

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  3. प्रभावशील आलेख. सही कहा!

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  4. बढि़या लगा। लंबे समय तक एकलव्‍य से जुड़ा रहा हूं। संभवत: आप भी परिचित होंगे। आपके ही मन मिजाज की जगह है। शिक्षा में महत्‍तवपूर्ण काम है। उनकी कुछ पत्रिकाएं हैं - संदर्भ, चकमक और स्रोत। मुझे उम्‍मीद है आपकी जानकारी में होंगी। वह साहित्‍य भी जिसकी तरफ आपने इशारा किया है। अपने अनुभवों को इन पत्रिकाओं में साझा कर सकते हैं। रुचि हो तो www.eklavya.in को देख लें।

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