केंद्रीय मंत्रिमंडल ने काफी समय से लंबित पड़े शिक्षा के अधिकार संबंधी विधेयक को मंजूरी दे दी है। इसके तहत छह से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है। विधेयक के कानून की शक्ल में आने के बाद छह से 14 साल के हर बच्चे को मुफत व अनिवार्य शिक्षा का हक हासिल हो जाएगा। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर आधारभूत ढांचा मुहैया कराएंगी। कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए 2,28,000 करोड़ रुपए से ज्यादा के खर्च का अनुमान है।
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चुनावी आहट के बीच सरकार को शिक्षा के अधिकार विधेयक की याद आखिर आ ही गई। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने करीब ढाई साल से लटके इस विधेयक को गुरुवार को लंबी चर्चा के बाद मंजूरी दे दी। इससे देश में छह से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा का मार्ग प्रशस्त हो गया है। छह राज्यों में विधानसभा चुनावों की वजह से विधेयक में मौजूद प्रावधानों का सरकार ने फिलहाल कोई खुलासा नहीं किया है। लेकिन चुनाव आयोग से सलाह-मशविरा कर मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह कुछ दिनों में इसका मूल पाठ जारी कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस विधेयक पर लंबी बहस हुई। सूत्रों के अनुसार मंत्रियों के समूह (GOM) ने इस विधेयक में मौजूद करीब-करीब सभी प्रावधानों को जस का तस ही रहने दिया है। ये ऐसे प्रावधान हैं जिनकी वजह से विधेयक विवादों में घिर गया था। इस प्रस्ताव पर लगभग दो साल तक माथापच्ची हुई, जिसके बाद योजना आयोग ने इस पर कुछ सवाल उठाए थे । बाद में इसे मंत्रियों के एक समूह के पास भेज दिया गया. इसमें वित्त मंत्री चिदंबरम के अलावा मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और विज्ञान तकनीक मंत्री कपिल सिब्बल शामिल थे । इस समूह ने प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी और शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल करने की सिफ़ारिश की ।
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी देते हुए शुक्रवार को बताया कि शिक्षा पाना अब बुनियादी अधिकार होगा। केन्द्र और राज्य सरकारें मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराने के लिए कानूनी रूप से बाध्य होंगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल से पास होने के बाद अब इसे संसद में दिसंबर में पेश किया जायेगा । वहां पारित होने के बाद संविधान के 86वें संशोधन के तहत शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल कर लिया जायेगा । इसके साथ ही सरकार का एक बड़ा वादा पूरा हो पायेगा।
केंद्र सरकार ने छह से चौदह वर्ष के बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए विशेष व्यवस्था बनाने का जो इरादा प्रकट किया वह नेक तो है, लेकिन उस पर अमल आसान नहीं। केंद्र सरकार मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के लिए प्रस्तावितकानून में यह प्रावधान करना चाहती है कि सभी स्कूलों में 25 प्रतिशत निर्धन बच्चों के लिए स्थान आरक्षित हो। इस विधेयक में प्रावधान है कि सरकार सबको शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 3 वर्ष के भीतर गुणवत्ता पूर्ण प्राथमिक शिक्षा देने के लिए नजदीक में शिक्षा की व्यवस्था करेगी। ऐसा न होने की सूरत में देश के नागरिक सरकार से ऐसी व्यवस्था करने की मांग कर सकते हैं। दरअसल देश के हर बच्चे को स्कूली स्तर की गुणात्मक शिक्षा मिलनी चाहिए। इसके पक्ष में मजबूत तर्क है कि शिक्षा उसका बुनियादी मानवाधिकार है। शिक्षा से मुख्य प्रभाव एक बेहतर जिंदगी गुजारने की क्षमताओं पर पड़ता है व समाज के विकास में भी प्रभावी भूमिका निभाने पर भी। इस लिए हमारे सभी बच्चों की सार्वजनिक गुणात्मक स्कूली शिक्षा तक निष्पक्ष पहुंच होनी चाहिए.हो। दुर्भाग्य से हमारे देश में ऐसा ही हो रहा है और वह भी उन मामलों में जो देश की तस्वीर और उसका भाग्य बदल सकते है। छह से चौदह वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का मूल विचार 1964 में कोठारी आयोग ने पेश किया था, लेकिन पता नहीं किन कारणों से उसे ठंडे बस्ते में छिपाए रखा गया।
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चुनावी आहट के बीच सरकार को शिक्षा के अधिकार विधेयक की याद आखिर आ ही गई। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने करीब ढाई साल से लटके इस विधेयक को गुरुवार को लंबी चर्चा के बाद मंजूरी दे दी। इससे देश में छह से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा का मार्ग प्रशस्त हो गया है। छह राज्यों में विधानसभा चुनावों की वजह से विधेयक में मौजूद प्रावधानों का सरकार ने फिलहाल कोई खुलासा नहीं किया है। लेकिन चुनाव आयोग से सलाह-मशविरा कर मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह कुछ दिनों में इसका मूल पाठ जारी कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस विधेयक पर लंबी बहस हुई। सूत्रों के अनुसार मंत्रियों के समूह (GOM) ने इस विधेयक में मौजूद करीब-करीब सभी प्रावधानों को जस का तस ही रहने दिया है। ये ऐसे प्रावधान हैं जिनकी वजह से विधेयक विवादों में घिर गया था। इस प्रस्ताव पर लगभग दो साल तक माथापच्ची हुई, जिसके बाद योजना आयोग ने इस पर कुछ सवाल उठाए थे । बाद में इसे मंत्रियों के एक समूह के पास भेज दिया गया. इसमें वित्त मंत्री चिदंबरम के अलावा मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और विज्ञान तकनीक मंत्री कपिल सिब्बल शामिल थे । इस समूह ने प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी और शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल करने की सिफ़ारिश की ।
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी देते हुए शुक्रवार को बताया कि शिक्षा पाना अब बुनियादी अधिकार होगा। केन्द्र और राज्य सरकारें मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराने के लिए कानूनी रूप से बाध्य होंगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल से पास होने के बाद अब इसे संसद में दिसंबर में पेश किया जायेगा । वहां पारित होने के बाद संविधान के 86वें संशोधन के तहत शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल कर लिया जायेगा । इसके साथ ही सरकार का एक बड़ा वादा पूरा हो पायेगा।
केंद्र सरकार ने छह से चौदह वर्ष के बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए विशेष व्यवस्था बनाने का जो इरादा प्रकट किया वह नेक तो है, लेकिन उस पर अमल आसान नहीं। केंद्र सरकार मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के लिए प्रस्तावितकानून में यह प्रावधान करना चाहती है कि सभी स्कूलों में 25 प्रतिशत निर्धन बच्चों के लिए स्थान आरक्षित हो। इस विधेयक में प्रावधान है कि सरकार सबको शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 3 वर्ष के भीतर गुणवत्ता पूर्ण प्राथमिक शिक्षा देने के लिए नजदीक में शिक्षा की व्यवस्था करेगी। ऐसा न होने की सूरत में देश के नागरिक सरकार से ऐसी व्यवस्था करने की मांग कर सकते हैं। दरअसल देश के हर बच्चे को स्कूली स्तर की गुणात्मक शिक्षा मिलनी चाहिए। इसके पक्ष में मजबूत तर्क है कि शिक्षा उसका बुनियादी मानवाधिकार है। शिक्षा से मुख्य प्रभाव एक बेहतर जिंदगी गुजारने की क्षमताओं पर पड़ता है व समाज के विकास में भी प्रभावी भूमिका निभाने पर भी। इस लिए हमारे सभी बच्चों की सार्वजनिक गुणात्मक स्कूली शिक्षा तक निष्पक्ष पहुंच होनी चाहिए.हो। दुर्भाग्य से हमारे देश में ऐसा ही हो रहा है और वह भी उन मामलों में जो देश की तस्वीर और उसका भाग्य बदल सकते है। छह से चौदह वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का मूल विचार 1964 में कोठारी आयोग ने पेश किया था, लेकिन पता नहीं किन कारणों से उसे ठंडे बस्ते में छिपाए रखा गया।
बहु प्रतीक्षित अधिकार मिला तो।
ReplyDeleteदेर आयद दुरुस्त आयद. सहज-सुलभ प्राथमिक शिक्षा किसी भी देश के लिए बहुत ज़रूरी है. यदि समय मिले तो कृपया मेरा छोटा सा लेख "अमेरिका में शिक्षा" ज़रूर पढ़ें.
ReplyDelete" स्कूल बस जब बच्चों को लेने या उतारने के लिए लाल बत्ती जलाती हुई रुकती है तो बाक़ी सभी गाड़ियों को उससे कम से कम १० फ़ीट की दूरी पर रुक जाना होता है ताकि बच्चे निर्भय होकर आ-जा सकें। मेरी दृष्टि में यह लाल-बत्ती वाहनों का एक अनुकरणीय उदाहरण तो है ही, बाल शिक्षा के प्रति एक समूचे राष्ट्र की प्रतिबद्धता भी दिखाता है। "
ReplyDelete""प्राथमिक विद्यालय का शिक्षक।" मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि मैंने अपने जीवन में पहली बार प्राथमिक विद्यालय का शिक्षक बनने को एक व्यवसाय के रूप में इतने आदर के साथ कहे जाते सुना था। "
बिल्कुल सच !
जानकर मजा आया ,
कृपया जुड़े रहें ; शिक्षा को मुद्दा बनाने में
धन्यवाद्!
सृजन गाथा को लिंकित किया जा रहा है !