सबसे अहम् भूमिका शिक्षक की मानी जानी चाहिए , वह है देश के सुयोग्य देश के सुयोग्य देशवासियों के निर्माण की भूमिका । पर हमारे नीति-निर्माताओं के कर्मों व क़दमों से यह बात सिर्फ़ दिखावटी व लिखित आदर्शों में ही बची है । शिक्षकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने आप को उन पुराने आदर्शों के साथ बचाने की है । वैश्वीकरण की चपेट में सबसे ज्यादा शिक्षक व शिक्षा प्रणाली ही आए हैं।
पिछले 15 सालों से विकास की इस अधूरी चाल से विश्व बैंक के कहने से ही हर क्षेत्र की नीतियों का निर्माण किया जा रहा है । इसकी जड़ में हमारी शैक्षिक संस्थान भी आ चुके हैं ।स्कूलों और कालेजों में शिक्षक का कैडर विलुप्त प्राय होता दिख रहा है । शिक्षकों की जगह ऐसे अप्रशिक्षित लोग ले रहें हैं जो न तो मानक योग्यता रखते हैं और न शिक्षण कार्य में उनकी रुचि या स्थायित्व । शिक्षक जिसे गुरु कहा जाता था , अब कहीं शिक्षा मित्र तो कहीं कांट्रेक्ट पर काम-चलाऊ पद नाम धारी । शिक्षक संगठनों ने अपनी कमियों के चलते शुरुवात में किए गए विरोध को भी बंद कर दिया है । जाहिर है की वैश्वीकरण की इस आंधी में आज सबसे बड़ी जरूरत शिक्षक नाम के कैडर को बचाने की है । पर वैश्वीकरण के पुरोधाओं के उच्च पदों पर बैठे होने के चलते यह होता दिखे , यह इतना आसान नहीं लगता है ।
दूसरी चुनौती अपनी शिक्षा प्रणाली को बचाने की है। आर्थिक उदारवाद के इस दौर में आज देश भर में शिक्षा के दुकाने खुल गई हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों की नीतियां सरकारी स्कूलों को तिरष्कृत कर निजी स्कूलों को बढ़ावा देने की हैं । निजी स्कूलों को दिए जा रहे बढावों और महिमा-मंडन से , शिक्षा आम आदमी से दूर होती दिख रही है। सरकार निजी स्कूलों को बढ़ावा तो देती है लेकिन सरकारी स्कूलों को सुधरने या निजी स्कूलों की तर्ज पर विकसित कर जानता को गुणवत्ता - पूर्ण शिक्षा देने में असफल रही है । हमारी परम्परागत शैक्षिक प्रणाली धवस्त होती जा रही है । आगे की पीढियां अच्छे कर्मी तो हो सकते हैं लेकिन सुयोग्य नागरिक बने इसमे संदेह है ।
तीसरी प्रमुख चुनौती है की शिक्षा कैसी हो , यह तय करने वाले शिक्षाविद नहीं बल्कि ब्यूरोक्रेट्स और कारपोरेट घराने के मुखिया हैं। सरकार इनकी गोद में बैठ कर शिक्षा के क्षेत्र में बाजारीकरण को को बढ़ावा देने के लिए पब्लिक -प्राइवेट-पार्टनरशिप का राग अलाप रही है। जबकि असल निशाना उन कारपोरेट घरानों को लाभ पहुचने व शिक्षा के क्षेत्र से अपना पीछा छुडाने का ही है । दर-असल 3p के जरिये शिक्षा के सरकारी संसाधनों को पब्लिक - प्राइवेट लूट को ही आधिकारिक बनने की कोशिश की जा रही है ।
जाहिर है इस मुहिम में सभी को जागरूक करना होगा , नहीं तो कंही देर न हो जाए ?
पिछले 15 सालों से विकास की इस अधूरी चाल से विश्व बैंक के कहने से ही हर क्षेत्र की नीतियों का निर्माण किया जा रहा है । इसकी जड़ में हमारी शैक्षिक संस्थान भी आ चुके हैं ।स्कूलों और कालेजों में शिक्षक का कैडर विलुप्त प्राय होता दिख रहा है । शिक्षकों की जगह ऐसे अप्रशिक्षित लोग ले रहें हैं जो न तो मानक योग्यता रखते हैं और न शिक्षण कार्य में उनकी रुचि या स्थायित्व । शिक्षक जिसे गुरु कहा जाता था , अब कहीं शिक्षा मित्र तो कहीं कांट्रेक्ट पर काम-चलाऊ पद नाम धारी । शिक्षक संगठनों ने अपनी कमियों के चलते शुरुवात में किए गए विरोध को भी बंद कर दिया है । जाहिर है की वैश्वीकरण की इस आंधी में आज सबसे बड़ी जरूरत शिक्षक नाम के कैडर को बचाने की है । पर वैश्वीकरण के पुरोधाओं के उच्च पदों पर बैठे होने के चलते यह होता दिखे , यह इतना आसान नहीं लगता है ।
दूसरी चुनौती अपनी शिक्षा प्रणाली को बचाने की है। आर्थिक उदारवाद के इस दौर में आज देश भर में शिक्षा के दुकाने खुल गई हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों की नीतियां सरकारी स्कूलों को तिरष्कृत कर निजी स्कूलों को बढ़ावा देने की हैं । निजी स्कूलों को दिए जा रहे बढावों और महिमा-मंडन से , शिक्षा आम आदमी से दूर होती दिख रही है। सरकार निजी स्कूलों को बढ़ावा तो देती है लेकिन सरकारी स्कूलों को सुधरने या निजी स्कूलों की तर्ज पर विकसित कर जानता को गुणवत्ता - पूर्ण शिक्षा देने में असफल रही है । हमारी परम्परागत शैक्षिक प्रणाली धवस्त होती जा रही है । आगे की पीढियां अच्छे कर्मी तो हो सकते हैं लेकिन सुयोग्य नागरिक बने इसमे संदेह है ।
तीसरी प्रमुख चुनौती है की शिक्षा कैसी हो , यह तय करने वाले शिक्षाविद नहीं बल्कि ब्यूरोक्रेट्स और कारपोरेट घराने के मुखिया हैं। सरकार इनकी गोद में बैठ कर शिक्षा के क्षेत्र में बाजारीकरण को को बढ़ावा देने के लिए पब्लिक -प्राइवेट-पार्टनरशिप का राग अलाप रही है। जबकि असल निशाना उन कारपोरेट घरानों को लाभ पहुचने व शिक्षा के क्षेत्र से अपना पीछा छुडाने का ही है । दर-असल 3p के जरिये शिक्षा के सरकारी संसाधनों को पब्लिक - प्राइवेट लूट को ही आधिकारिक बनने की कोशिश की जा रही है ।
जाहिर है इस मुहिम में सभी को जागरूक करना होगा , नहीं तो कंही देर न हो जाए ?
आज की शिक्षा लोगों को सिर्फ़ नौकरी के लिए तैयार करती है. इंसान के प्रति इंसान का व्यवहार कैसा हो, इस के प्रति इस शिक्षा का योगदान नगण्य है.
ReplyDeletetechnical education is must for each and every
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